Saturday 10 December 2022

जीएम सरसों सभी की अपनी अपनी ढ़पली

 



देश में जीएम सरसों की प्रायोगिक खेती की अनुमति देने को लेकर वातावरण गर्म है। एक तरफ सरकार खाद्य तेलों का आयात कम करने तथा खाद्य पदार्थों में आत्मनिर्भरता बढ़ाने के लिए नई नई विधियां अपनाने के लिए प्रयोग करने को उत्सुक है। वहीं दूसरी तरफ कुछ संस्थाएं और पर्यावरणविद जीएम फसलों से जुड़े विभिन्न मुद्दों को उछाल कर सरकार के प्रयासों में रोड़ा अटका रहे हैं। जीएम सरसों का मुद्दा भी कुछ इन्हीं परिस्थितियों के आसपास झूल रहा है। कुछ पर्यावरणविद तो इस मुद्दे को लेकर उच्चतम न्यायालय भी गए हैं। वहां उन्होंने न्यायालय से मांग की है कि सरकार को जीएम सरसों की प्रायोगिक बुवाई को अनुमति देने से रोका जाए। क्योंकि इससे पर्यावरण और उसमें पलने वाले जीवो पर विपरीत प्रभाव पड़ने की संभावना है। उच्चतम न्यायालय ने भी सरकार को उसके द्वारा फैसला लिए जाने तक, कोई कदम न उठाने की सलाह दी है।


वर्तमान वर्ष में देश ने 157 लाख करोड़ रुपए खाद्य तेलों के आयात पर खर्च किये है। खाद्य तेलों के आयात की रकम, देश में किसी भी वस्तु के आयात पर खर्च की जाने वाली तीसरे नंबर की रकम है। साल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अनुसार वर्ष 2021 के नवंबर से फरवरी 2022 तक देश ने 8,43377 टन सूर्यमुखी का तेल यूक्रेन से आयात किया था, जो कुल आयातित तेल का 85% था। शेष में 14.3 % रुस से वह बाकी अर्जेंटीना से आयात किया गया था। इसके साथ ही सरकार बड़ी मात्रा में इंडोनेशिया और मलेशिया से पाम ऑयल का आयात भी कर रही है। अतः सरकार का प्रयास है की देश में सरसों की पैदावार जो कई वर्षों से 1260 किलो प्रति हेक्टेयर पर रुकी हुई है, उसे बढ़ाया जाए सरसों की पैदावार में विश्व का औसत 2000 किलो प्रति हेक्टेयर है, देश में सरसों की पैदावार इससे काफी कम है। इसीलिए सरकार दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर दीपक पेंटल द्वारा विकसित की गई जीएम सरसों DMH11 को फील्ड ट्रायल की अनुमति देने के लिए तैयार हो गई है ।भारत सरकार के कृषि विभाग और आईसीएआर ने रबी के आने वाले सीजन में DMH11 के लिए प्रायोगिक खेती कर पर्यावरणीय प्रभावों के परीक्षण करने की तैयारी के लिए कमर कस ली है।


देश में खाद्य तेल की कमी एक गंभीर विषय है। सरकार हर तरह से प्रयासरत है की तेल बीज के उत्पादन को बढ़ाया जाए और खाद्य तेलों के मामले में आत्मनिर्भरता हासिल की जाए। जीएम सरसों को सरकार ने इसी आधार पर अनुमति दी है। वैसे यदि देखा जाए तो विश्व के कई देशों में जीएम खाद्य पदार्थों की खेती की जा रही है, जिनमें अमेरिका ब्राज़ील अर्जेंटीना कनाडा ऑस्ट्रेलिया आदि है। हाल ही में ऑस्ट्रेलिया ने भी दी DMH11 के समकक्ष किस्म की खेती करने की अनुमति दे दी है। उसका उद्देश्य दक्षिण एशियाई देशों में खाद्य तेलों की बढ़ती मांग को पूरा करने का है।


मजे की बात यह है कि देश में आज भी 2 से 2.5 मीट्रिक टन सोयाबीन और 1 से 1.5 मीट्रिक टन कैनोला तेल का आयात किया जा रहा है। जो जीएम फसलों के बीजों से निकाला गया है। इसके साथ ही देश में जीएम कॉटन सीड से 1.5 मीट्रिक टन तेल निकाला जा रहा है। जिनका देश में लगातार सेवन किया जा रहा है। सरकार अपने पक्ष में यह दलील भी दे रही है। सरकार का कहना है कि वर्तमान में प्रायोगिक आधार पर जीएम सरसों DMH11 की खेती करने में कोई हर्ज नहीं है। सरकार का यह भी कहना है की दी DMH11 की खेती के कारण पढ़ने वाले पर्यावरणीय प्रभावों का विस्तृत अध्ययन किया जाएगा तथा यह सुनिश्चित किया जाएगा की डीएमएच फसल के कारण मानव, पशु तथा पर्यावरण पर विपरीत प्रभाव ना पड़े। परंतु वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए यह आवश्यक हो गया है कि खाद्य तेल के मामले में देश में तेल बीजों का उत्पादन बढ़ाकर आत्मनिर्भरता की तरफ कदम बढ़ाया जाए।


वास्तविकता यह है कि विश्व में वैज्ञानिक एवं कृषि अनुसंधानकर्ता जीएम खाद्य फसलों के मामले में एकमत नहीं है। कुछ का मानना है कि यह फसलें मानव उपयोग के लिए सुरक्षित हैं। वही अन्य का कहना है कि इससे मानव तथा जीवों के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा। वर्ष 2009 में अमेरिका की अंतर्राष्ट्रीय संस्था "द अमेरिकन एकेडमी ऑफ एनवायरमेंट मेडिसिन" ने जीएम फूड के बारे में चेतावनी जारी करते हुए कहा था, जीएम फूड सेहत के लिए खतरनाक है, पशुओं पर किए गए अध्ययन से मालूम हुआ है कि इसके कारण नपुंसकता, इम्यून समस्याएं,  तेजी से बुढ़ापा आना, इंसुलिन के प्रभावों का बेअसर होना, प्रमुख अंगों एवं गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल सिस्टम में बदलाव के संकेत मिले हैं। वहीं दूसरी ओर वर्ष 2013 में "यूरोपीयन नेटवर्क ऑफ साइंटिस्ट फॉर सोशल एंड एनवायरमेंटल रेस्पॉन्सिबिलिटी" ने लगभग 300 अनुसंधानकर्ताओं के हवाले से बयान जारी कर कहा था कि जीएम फूड और फसलों के बारे में विश्व के वैज्ञानिकों में कोई सहमति नहीं बनी है। जो लोग जीएम फूड और फसलों को मानव, पशु और वातावरण के लिए असुरक्षित या सुरक्षित बताते हैं । वह भ्रामक बयान देते हैं। उनका कहना है कि इस संबंध में प्रकाशित रिपोर्टों में एक दूसरे से विरोधी बातें प्रकाशित की गई हैं।

1 comment:

  1. बहोत अच्छा संकलन है l भारतीय डॉक्टर द्रारा भी GM food के विषय में अपना मत दिया हैं , की मनुष्य के लिये वह हानिकारक है l

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