Tuesday 14 August 2018

GST : हम तो लुट गये तेरे प्यार में .......

मुझे देश में GST लगने के पहले का समय याद आ रहा है। सभी इसके गुणों का विष्लेषण करने में व्यस्त थे, सरकार, विपक्ष, उद्योगपति, उत्पादक, व्यापारी और यहां तक कि ग्राहक संगठन। विपक्ष तो आज GST का विरोध कर राजनीति कर रहा है। व्यापारी को GST की जटिल प्रक्रिया से शिकायत है, परन्तु ग्राहक संगठन जो GST लागू होने के कालखंड में 'बेगानी शादी के अब्दुल्ला बन गये थे' आज सीन से ही गायब हैं। देश का अग्रणी ग्राहक संगठन भी अपने कुछ कागजी नेताओं के सहारे यही कर  आ रहा था। टैक्स कम होंगे, ग्राहक को बाजार में सामान सस्ता मिलेगा आदि आदि। जब भी मौका मिला समझाने की कोशिश की, कि अर्थशास्त्र, बाजार और मार्केटिंग का चिन्तन करो, उस आधार पर GST के कारण ग्राहक पर पड़ने वाले प्रभावों की बात करो। इससे ग्राहकों को कुछ नहीं मिलने वाला है, सिर्फ और सिर्फ मंहगाई बढ़ेगी, परन्तु सही बात को बाद में ही पहचान मिलती है।



बाजार में वस्तुओं के मूल्य कम होने की अवधारणा के खिलाफ इंग्लैंड के अर्थशास्त्री डूमशीयर व हैफल बोवर का सिद्धांत स्पष्ट था, वह अपनी पुस्तक 'इकनामिक्स विद एप्लीकेशन टु एग्रीकल्चर' में लिखते हैं,  उनके समय में इंग्लैंड में डबलरोटी की कीमत 4.2 सेन्ट थी, उनका कहना था, "यदि किसान बेकरी वाले को गेहूं मुफ्त में दे दे, चक्की वाला बिना कोई मूल्य लिए गेहूं की पिसाई कर दे, कोई ट्रान्सपोर्टर आटे को फ्री में बेकरी तक पंहुचा दे, तो भी डबलरोटी का मूल्य कम होने वाला नहीं, 4.2 सेन्ट ही रहेगा?" यही बात GST के बारे में लागू थी, लागू हुई।

GST मात्र एक टैक्स सुधार था, अत: इसके महत्व को नकारा नहीं जा सकता, परन्तु इस दिशा में हम एक कदम आगे ही आ पाये हैं, कई टैक्सों को समाप्त कर एक टैक्स लागू करना। सबसे महत्वपूर्ण पक्ष सरकार द्वारा टैक्स कलेक्शन की है। टैक्स की चोरी समाप्त कर अधिक से अधिक राजस्व प्राप्त करना। यहां कुछ विशेष सफलता नहीं मिली, आज भी बिना बिल वाला कारोबार पूरे देश में बेधड़क चालू है। करोड़ों रुपयों की टैक्स चोरी इक्का दुक्का छापों में ही पकड़़ी गई है। GST लागू करने का सबसे बड़ा लाभ यही मिलने वाला था, जहां सरकार पूरी तरह फेल है।

ग्राहक की बात करें तो उसकी जेब पर GST के नाम पर बेइंतहा बोझ आया है। उसे टैक्स पर टैक्स कई बार देना पड़ रहा है। उसके लिए GST सिंगल प्वाईंट टैक्स नहीं है। वस्तु बाजार में जितने हाथों से होकर गुजरती है, उतनी बार उसकी कीमत में टैक्स जुड़ता जाता है, व्यापारी तो अपने हिस्से का रिफंड ले लेता है, पर ग्राहक द्वारा खरीदी जाने वाली वस्तु में GST तीन से चार बार जुड़ती है। क्योंकि अन्तिम छोर पर बैठा ग्राहक टैक्स के क्युमलेटिव प्रभाव को झेलने के लिए बाध्य है। जिसके कारण वस्तुओं की कीमतों में अप्रत्याशित वृद्धि हो गई है।

मैं दस वर्ष पूर्व सिंगापुर में रहता था, अभी कुछ दिन पहले दोबारा वहां जाना हुआ। मैं आश्चर्यचकित था, वहां 10 वर्ष पूर्व उपभोक्ता वस्तुओं की जो कीमतें थी, आज भी वही हैं, कुछ वस्तुओं की कीमतें यदि बढ़ी भी हैं तो मामूली, न के बराबर, यह होती है सरकार की जिम्मेदारी।

बाबासाहेब आंबेडकर का नाम अपने देश में सबसे अधिक लिया जाता है। राजनेताओं में तो प्रतिस्पर्धा चलती है कि कौन अपने को बाबासाहेब के सबसे करीब सिद्ध कर पाता है। पर इनमें से किसी ने भी न तो बाबासाहेब को जाना समझा है, न ही उन्होंने जो बातें कही समझाई थी, उस पर ध्यान दिया है। बाबासाहेब ने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ 'प्राब्लम आफ रुपी' में जो लिखा, कहा सिंगापुर ने उसे अपनाया, नतीजतन वहां आज वस्तुओं के दाम तो लगभग 10 वर्ष पूर्व की स्थिति में ही हैं, परन्तु उनका डालर जो 10 वर्ष पूर्व 30रु था, आज 50रु के पार छलांग लगा रहा है।

ग्राहकों को GST लागू करते समय कुछ इसी तरह के सपने दिखाए गए थे, जो आज न जाने कहां पड़े धूल खा रहे हैं।

अशोक त्रिवेदी
राष्ट्रीय सचिव (पूर्व)
अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत

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