Wednesday, 5 August 2015

उत्पादन मूल्य बताओ, अच्छे दिन आ जायेंगे

वस्तुओं की बढती कीमतें हमेशा राजनेताओं, अर्थशास्त्रियों और ग्राहकों के निशाने पर रहती हैं। कभी भी किसी ने भी इन बढती कीमतों के भंवरजाल को सुलझाने की कोशिश नहीं की।यह जिम्मेदारी उन्ही को दे दी, जिनसे ग्राहकों को बचाना था। नतीजा वही हुआ जो बिल्ली को दूध की पहरेदारी पर लगाने का होता है। यह विश्व मे होने वाला सबसे बड़ा आर्थिक भ्रष्टाचार है, जो सामान्य वर्ग से उसकी खून पसीने की कमाई छीने जा रहा है। 5 रूपये की वस्तु 50 रूपये मे बेचकर सरेआम आर्थिक भ्रष्टाचार कर उसे गरीबी, भुखमरी और लाचारी के दलदल मे धकेले जा रहा है ।


औद्योगिक क्रान्ति के उदय के साथ ही इससे सम्बन्धित तथाकथित प्रतिष्ठित वर्ग ने व्यूहरचना शुरू कर दी थी। दुनिया के कुल धन के अधिकांश भाग पर शीघ्र से शीघ्र आधिपत्य जमाने की, ताकि यह वर्ग धन बल के सहारे पूरी दुनिया को अपने अधिपत्य मे ले सके। यह तभी सम्भव था जब यह वर्ग शासकों, नेताओं और ग्राहकों को यह समझा सके कि दुनिया की तरक्की के लिये आर्थिक प्रगति आवश्यक है, आर्थिक प्रगति के लिये उद्योगीकरण तथा उद्योगीकरण के लिये उद्योजकों को अधिक से अधिक वित्तीय व अन्य सुविधायें। वैसे उनती बात पूरी तरह गलत भी नहीं थी। उसमे सच्चाई भी थी। किसी भी देश की उन्नति मे उसकी आर्थिक प्रगति का बहुत बड़ा योगदान होता है परन्तु आर्थिक प्रगति के लिये उद्योग के साथ साथ कृषि क्षेत्र का भी विकास आवश्यक है। दोनो में सन्तुलन होना चाहिये, तभी देश के विकास का लाभ बहुतांश लोगों को मिल पाता है। लेकिन यह बात उद्योजक वर्ग की हित साधना मे बाधक थी। क्योंकिब धन वितरण उद्योग के साथ कृषि क्षेत्र मे भी होता। अतः एक नवीन शब्द मंहगाई की कल्पना विकसित कर यह बात फैलाई गई कि यदि कृषि उत्पादों के दामों पर नियन्त्रण नहीं रखा गया तो देश मे मंहगाई बढ़ेगी, सामान्य वर्ग का जीवन दूभर होगा। अतः कृषि उत्पादों की कीमतों को सरकारी नियन्त्रण मे लाया गया। इस बात का विरोध न हो इसलिये इस नियन्त्रण को सरकारी संरक्षण का नाम देकर कृषि क्षेत्र/किसानों के हित से जोड़ दिया गया। कृषि मे पैदा होने वाली वस्तुयें उद्योगों मे कच्चे माल के रूप मे काम आती हैं। अतः उद्योजकों ने कारटेल बनाकर कृषि मे पैदा होने वाली वस्तुओं के दाम नहीं बढने दिये, कृषि उत्पादों को सस्ते दामों पर खरीदा, बाद मे किसानों के हितों की रक्षा के नाम पर कृषि उत्पादों के विक्रय मूल्य पर सरकारी नियन्त्रण लाद दिया गया। दूसरी तरफ औद्योगिक उत्पादनों के विक्रय मूल्य पर उद्योजकों का एकाधिकार कायम रहा, ताकि वह ग्राहकों से अधिक से अधिक धन वसूल सकें, जिसके कारण वर्तमान बाजार मे औद्योगिक उत्पादनों का विक्रय मूल्य उत्पादन मूल्य के 100 से लेकर 1000 गुना तक अधिक है तथा कृषि उत्पादों को बमुश्किल उनकी उत्पादन लागत मिल पाती है।

देश मे भी कृषि लागत एवं मूल्य आयोग है। यह आयोग कृषि उत्पादों के लागत मूल्य का अध्यन कर, उनके समर्थन मूल्य या विक्रय मूल्यों की आयोग की मूल्यनीति के अनुसार प्रतिवर्ष घोषणा करता है। कृषि उत्पादों के विक्रय मूल्य इन्ही घोषित मूल्यों के आसपास रहते हैं, परन्तु औद्योगिक उत्पादनों के सम्बन्ध मे यह नीति नहीं अपनाई गई, उनके विक्रय मूल्यों का निर्धारण उद्योजकों  पर छोड़ कर उन्हे वस्तुओं पर मनमानी MRP लिखने की छूट दे दी गई। इसी छूट का फायदा उठाकर उद्योजक विज्ञापन, फैशन शो आदि विभिन्न हथकंडे अपनाकर अपने उत्पादनों के बदले ग्राहकों से कई गुना अधिक कीमत वसूल कर ग्राहकों को लूट रहे हैं।


अप्रैल 1999 तक देश मे औद्योगिक उत्पादनों के उत्पादन मूल्य का अध्यन करने के लिये ब्यूरो आफ इन्डस्ट्रियल कास्ट एण्ड प्राइसेज (BICP) था। अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत द्वारा लगातार उत्पादन मूल्य घोषित करने का दबाव बनाने के कारण इसका टैरिफ कमीशन (TARIFF COMMISSION) मे विलय कर दिया गया तथा इसका कार्य टैक्स निर्धारित करने के उपयोग तक मर्यादित कर दिया गया। यह जानते समझते हुये भी कि उद्योजक ग्राहकों को बुरी तरह लूट रहे हैं, इस तरफ से आँख बन्द कर ली गई। पिछली दो लोकसभाओं मे चन्द्रपुर (महाराष्ट्र) से सांसद व वर्तमान मे रसायन व उर्वरक राज्य मन्त्री हंसराज अहीर ने उत्पादन मूल्य बताने से सम्बन्धित बिल निजी बिल के रूप मे रखा था। अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत की मांग है कि हंसराज अहीर जी के उस बिल को वर्तमान सरकार, सरकारी बिल के रूप मे अपनाकर आवश्यक कानून बनाये।

ग्राफ के माध्यम से विषय अधिक स्पष्ट होगा। रेखा OB मूल्य निर्देशित करती है तथा रेखा OA वर्ष। CD वस्तुओं के उत्पादन मूल्य बताने वाली रेखा है। बिन्दु वाली रेखा EF कृषि वस्तुओं के विक्रय मूल्य को निर्देशित करती है, जो कभी उत्पादन मूल्य रेखा के ऊपर तो कभी उत्पादन मूल्य रेखा के नीचे, कुल मिलाकर उत्पादन मूल्य रेखा के इर्द गिर्द ही दिखाई देती है, जिसका अर्थ है कृषि उत्पादों की कीमत बाजार मे उनकी मांग व पूर्ति के आधार पर कभी उत्पादन मूल्य से कम व कभी अधिक रहती है, परन्तु यह कीमत उत्पादन मूल्य के आस पास ही रहती है । औद्योगिक उत्पादनों के विक्रय मूल्य की रेखा GH हमेशा उत्पादन मूल्य की रेखा से बहुत ऊपर लगभग लम्बवत रहती है। इसे बाजार मे MRP का सहारा भी प्राप्त है, जिसे बाजार मे इस तरह प्रचारित कर ग्राहकों को लूटा जाता है, मानो वह सरकार द्वारा निर्धारित वैधानिक मूल्य हो।


उत्पादन मूल्य घोषित करना अच्छे दिनों की आहट है। जिसका अर्थ है औद्योगिक उत्पादनों के विक्रय मूल्य को उत्पादन मूल्य आधारित बनाना। आज ग्राहकों से MRP के नाम पर अनाप शनाप कीमतें वसूल कर उन्हे लूटा जा रहा है। अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत की मांग है कि MRP को रद्द कर उसके स्थान पर उत्पादन मूल्य लिखना अनिवार्य किया जाये, ताकि औद्योगिक उत्पादनों के दाम भी कृषि उत्पादों की तरह उत्पादन मूल्य के आसपास रहें। लाभ अर्जित करना उत्पादकों का अधिकार है, परन्तु लाभ उचित होना चाहिये, न कि ग्राहकों को लूटने वाला। वर्तमान बाजार मे MRP के नाम पर जबरदस्त आर्थिक भ्रष्टाचार चल रहा है। ग्राहकों को इससे राहत मिलेगी तो उसकी क्रय शक्ति बढेगी, वह अपने परिवार के लिये अधिक वस्तुयें खरीद पाने की स्थिति मे होगा। यदि ग्राहक बचत करता है तो भी यह पैसा सरकार द्वारा खुलवाये करोड़ों बैंक खातों मे जमा होकर देश के विकास मे योगदान देगा। अतः वर्तमान सरकार को चाहिये कि उत्पादन मूल्य बतायें, अच्छे दिन लायें।

1 comment:

  1. नरेश चौहान14 September 2016 at 17:36

    आर्थिक सुधार के लिए यह अत्यंत आवश्यक एवं महत्वपूर्ण प्रकिया हैं। शोषण मुक्त समाज की कल्पना इसके बिना छलावा मात्र ही हैं।

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