खुदरा क्षेत्र की मुद्रास्फीति पिछले 10 महीनों के उच्चतम स्तर पर 7.8% पंहुच गई है। मुद्रास्फीति दर में 7.8% की वृद्धि असाधारण है। देश के वित्तीय प्रबन्धक इसके विरोध और समर्थन में अनेकों तर्क देकर इसकी अच्छी या बुरी विवेचना कर सकते हैं। परन्तु इससे सर्वहारा वर्ग की आर्थिक स्थिति में तनिक भी अंतर पड़ने वाला नहीं है। इस भयंकर मुद्रास्फीति की मार उसे ही झेलनी है, इसकी कीमत उसे अपनी संपत्ति को खोकर चुकानी है। उसे अधिक साधनहीन होना है।
सरल शब्दों में मुद्रास्फीति का अर्थ होता है कि 10 माह पहले 100 रुपयों में आप जितनी वस्तुएं खरीद सकते थे। अब उन्हें खरीदने के लिए आपको 107.80 रुपये खर्च करने पड़ेंगे, यानि यह भी कहा जा सकता है कि आपकी संचित पूंजी 7.8% कम हो गई है। सरकारी बैंकों वह अन्य विभिन्न योजनाओं में जमाकर्ताओं को मिलने वाली ब्याज की दरें 5.5% से लेकर 6.5% तक हैं। जिसका अर्थ है आपकी जमा पर बैंक व वित्तीय संस्थान ब्याज तो दे रहे हैं। परन्तु आपके धन का मूल्य 2.3% से लेकर 1.3% तक कम हो रहा है।
देश की विकास दर बढ़े, इसके लिए आवश्यक होता है कि उत्पादन बढ़े। साधारणतया उत्पादन दर में वृद्धि के लिए उद्योग क्षेत्र ब्याज दरों को घटाने की मांग अक़्सर सरकार से करते रहते हैं। ब्याज दरों पर नियंत्रण रिजर्व बैंक समय समय पर रेपो दर में बदलाव लाकर करता रहता है। जो किसी भी देश की मौद्रिक नीतियों के अंतर्गत आने वाली व्यवस्था होती है। वर्तमान वित्तीय परिस्थितियों को देखते हुए कोई संभावना नहीं है कि रिजर्व बैंक ब्याज दरों में किसी प्रकार की कटौती कर सके।
मोदी सरकार के आलोचक मुद्रास्फीति दरों के 10 माह के उच्चतम पर पंहुचने की आलोचना कर सकते हैं, परन्तु हकीकत यह है कि यूपीए शासनकाल में वर्ष 2008 से लेकर वर्ष 2013 तक मुद्रास्फीति की दर 8.35 से लेकर 11.99% के बीच रही थी, जो वर्तमान मुद्रास्फीति की दर से कहीं अधिक थी। जबकि मोदी सरकार के काल में वर्ष 2014 से लेकर आज तक मुद्रास्फीति की दर 3.3 से लेकर वर्तमान 7.8% तक रही है। इस आधार पर मोदी सरकार का वित्तीय प्रबंधन मनमोहन सिंह सरकार से कहीं बेहतर है।
वित्तीय प्रबंधन में विभिन्न आर्थिक घटकों के व्यवहार के चलते अर्थव्यवस्था के मापदंडों में नरमी गर्मी का आना स्वाभाविक है। इसके प्रभाव से ग्राहकों को बचाना या इसकी आंच ग्राहकों तक कम से कम पंहुचने देना, सरकार के वित्तीय प्रबंधकों का कार्य है। इस बात में दो मत नहीं हो सकते कि वर्तमान में मुद्रास्फीति के उच्चतम स्तर पर पंहुचने के कारणों में एक प्रमुख कारण डीजल और पेट्रोल के भावों में होने वाली निरंतर वृद्धि है। देश के प्रमुख ग्राहक संगठन अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत को वर्तमान स्थिति का पूर्वानुमान था। इसीलिए पिछले माह उसने हरियाणा के फरीदाबाद में हुई अपनी वार्षिक बैठक में डीजल व पैट्रोल को जीएसटी के दायरे में लाने की मांग केन्द्र सरकार से की थी। ताकि डीज़ल पैट्रोल के दामों में होने वाली अप्रत्याशित वृद्धि के कारण अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले दुष्परिणामों से देश को बचाया जा सके। इस संबंध में केंद्र सरकार को गंभीरता से विचार करने तथा यदि आवश्यक हो तो डीज़ल पैट्रोल को जीएसटी के दायरे में लाने पर श्वेत पत्र प्रकाशित करने की आवश्यकता है।