देश में हिन्दू-मुसलमान नया नहीं है और न ही यह आरएसएस के जन्म के बाद से हो रहा है। मुसलमानों द्वारा हिन्दुओं का गला काटना तो उस समय शुरू हो गया था, जब गांधी जी की बात मानकर हिन्दू तुर्की के खलीफा के समर्थन में मुसलमान भाईयों के साथ गले मिल रहे थे। हिन्दू मुसलमानों की खलीफा पद्धति को स्थापित करने में ताकत लगा रहे थे और मुसलमान खिलाफत आन्दोलन समाप्त होते होते, हिन्दुओं के खिलाफ जेहाद छेड़ने की योजनाएं बना रहे थे। इसकी शुरुआत 1921 में मोपला दंगों से हो चुकी थी, जो उस समय मुसलमानों को भड़काकर हिन्दू-मुसलमान के नाम पर षड़यंत्र रच रहे थे। वही लोग आज भी षड़यंत्र रच रहे हैं, लेकिन तथाकथित छद्म सेकुलर अपने एजेंडे के तहत निशाना कहीं और साध रहे हैं। मई 1924 को "लाहौल" नाम के मुस्लिम समाचार पत्र में यह कविता जिसने छपवाई थी, वहीं आज भी हिन्दू मुसलमान दंगों की स्क्रिप्ट लिख रहा है, उस समय छपी कविता में लिखा गया था, "हमें किरार की गीता को जलाना होगा। हम कृष्ण की बांसुरी तोड़ेंगे। ऐ मुसलमानों तलवार उठाओ, किरारों को मारो, उनकी देवियों को नष्ट करो।"
उस समय तक आरएसएस की स्थापना नहीं हुई थी। लेकिन हिन्दू मुसलमान के बीच नफरत के बीज बोए जा रहे थे, उन्हें सहेजा जा रहा था। परंतु यह सेकुलर उस वक्त भी हिन्दू -मुसलमानों के बीच पैदा हुई नफरत की नींव डालने वालों की सच्चाई से आंखें चुरा रहे थे, यह सिलसिला आज तक बदस्तूर जारी हैं। यदि हिन्दू और मुसलमानों के बीच नफरत फ़ैलाने वाले श्रोतों पर तभी समुचित ध्यान दें दिया होता, तो शायद न तो पाकिस्तान बनता, न ही तथाकथित सेकुलरों की रोजी रोटी आज तक चलती। सेकुलर गैंग इसी कारण फलफूल रहा है, वह सच्चाई से नजरें चुरा एकतरफा उस दिशा में वार करता है, जहां इस रोग की जड़ ही नहीं है।
आरएसएस को यह सेकुलर गैंग एक निर्धारित योजना के तहत अपने स्वार्थ पूर्ति के लिए निशाना बनाता है। इस गैंग ने देश के उन सभी महान नेताओं की बातों को हमेशा पूरी तरह अनदेखा किया, जिन के आदर्श वाक्यों को इस गैंग के लोग जब तब उद्धृत कर कर के आरएसएस पर हमला बोलते हैं। कांग्रेस के पट्टाभि सीतारमैया ने 9 व 10 सितंबर 1924 की घटनाओं के बारे में "दि हिस्ट्री ऑफ इंडियन नेशनल कांग्रेस के पृष्ठ 465, पर लिखा है, कोहाट दंगों के बारे में भारतीय विद्यालय कोहाट के प्रधानाचार्य लाला नंदलाल ने दंगों के तुरंत बाद कोहाट शरणार्थी कार्य समिति के लिए एक प्रतिवेदन का प्रकाशन किया था, जिसे पढ़कर पाठक आज भी कांप उठता है।" अन्य कई नेताओं ने भी इसी प्रकार के विचार भिन्न भिन्न स्थानों पर व्यक्त किए हैं, जिनमें एनी बेसेंट, लाला लाजपत राय, अच्युत पटवर्धन, सरदार वल्लभभाई पटेल, डा अम्बेडकर और गांधी जी स्वयं भी है। लेकिन सेकुलर तो बगीचे में गिरे रुपये को बरामदे में उस समय भी ढूंढ रहे थे और आज भी ढूंढ रहे हैं।
डा अम्बेडकर को हिंदू समर्थक नहीं माना जाता था। उनके और गांधी जी के उदाहरण आज भी प्रत्येक सेकुलर की जुबान पर आ जाते हैं। आरएसएस के जन्म पूर्व हुये हिन्दू मुसलमान दंगों पर अम्बेडकर ने अपनी पुस्तक "दि पार्टीशन आफ इंडिया" में लिखा है, 1921 के मोपला दंगे दो मुसलमान संगठनों, खुद्दमे काबा और सेन्ट्रल खिलाफत कमेटी द्वारा कराए गए थे। वह आगे लिखते हैं, "मोपला के मुसलमानों ने मालाबार के हिन्दुओं के साथ जो किया, वह चौंकाने वाला है। मोपलाओं के हाथों मालाबार के हिन्दुओं पर भयानक अत्याचार हुए। नरसंहार, जबरन धर्मांतरण, मंदिरों को तोड़ना, महिलाओं के साथ अपराध, गर्भवती महिलाओं के पेट फाड़े जाने की घटना, यह सब हुआ। हिन्दुओं के साथ सभी प्रकार की क्रूरतायें हुई, असंयमित बर्बरता हुई। मोपला के मुसलमानों ने हिन्दुओं के साथ यह सब तब तक किया, जब तक वहां सेना नहीं पंहुच गई।" यह सब सिर्फ मालाबार या कोहाट तक सीमित नहीं रहा। वर्ष 1923 तक अमृतसर, लाहौर, पानीपत, मुल्तान, मुरादाबाद, मेरठ, इलाहाबाद, सहारनपुर, भागलपुर, गुलबर्गा और दिल्ली तक पंहुच गये थे। देश में हिन्दू -मुसलमान की आंधी उस समय चल रही थी, जब आरएसएस का अस्तित्व भी नहीं था।
देश में आरएसएस को सांप्रदायिकता पर उपदेश गांधी जी का नाम लेकर सौहार्दपूर्ण वातावरण की दुहाइयां देता हुआ, कोई भी सेकुलर देने लगता है। आरएसएस के जन्म से पहले ही हिन्दू -मुसलमान पर गांधी जी क्या कह रहे थे, यह तथाकथित सेकुलर जानते तो हैं, लेकिन कहते नहीं, क्योंकि यह उनके एजेंडे के खिलाफ है। गांधी जी ने वर्ष 1924 में यंग इंडिया में लिखा,"हिन्दुओं ने मुझसे लिखित शिकायत की है कि मै मुसलमानों को संगठित करने और जागरूक बनाने का जिम्मेदार हूं। मैंने मौलवियों को बहुत प्रतिष्ठा दिलाई है। अब जब खिलाफत आन्दोलन ठंडा हो चुका है, मुसलमानों ने हिन्दुओं के खिलाफ जेहाद की घोषणा कर दी है। ...... हिन्दू महिलाओं के बारे में बंगाल से मिले समाचार ग्लानि पैदा करने वाले हैं। यदि उनमें आधी सच्चाई हो तब भी।...... मेरा निजी अनुभव इस विचार की पुष्टि करता है कि मुसलमान स्वभाव से आक्रामक होता है और हिन्दू कायर। क्या हिन्दुओं को अपनी कायरता के लिए मुसलमानों को दोषी ठहराना चाहिए । कायर तो हमेशा पिटेगा। सहारनपुर के मुसलमान अपने जघन्य कार्यों के लिए कोई सफाई नहीं दे सकते। लेकिन हिन्दू होने के कारण मैं हिन्दुओं की कायरता के कारण अधिक लज्जित हूं। मुसलमानों पर मुझे उतना गुस्सा नहीं। जो घर लुटे, उनके मालिकों ने अपनी संपत्ति को बचाने के लिए, अपनी जान पर क्यों नहीं खेल गये। जिन बहनों के बलात्कार हुते, बलात्कार के समय उनके रिश्तेदार कहां थे। मेरी अहिंसा यह नहीं कहती कि संकट के समय अपने प्रियजनों को असहाय छोड़कर भाग खड़े हों।"
मजे की बात है, कि मुसलमानों को विवाद पैदा करने वाला सिर्फ हिन्दू या हिन्दू संगठन ही नहीं कहते। अन्य धर्मों व मतों के लोग भी कहते हैं, फिर भी इन सेकुलरों की आंखें सही विवेचन करने के लिए नहीं खुलती, खुलें भी क्यों, इससे उनका एजेंडा फेल होता है। अब सात बार केरल में विधायक रह चुके ईसाई नेता पी सी जार्ज को, मुसलमानों के विरोध में विवादित सच बोलने की जरूरत क्यों पड़ी, किसी भी निष्पक्ष व्यक्ति या पत्रकार को इसकी तह में जाकर समझना लिखना चाहिए?
सेकुलर न तब हिन्दू-मुसलमान मर्ज की दवा चाहते थे, न आज चाहते हैं। उन्हें इसमें पूरे विश्व में हिन्दू विरोधी ढोल पीटने के अवसर और चंद सिक्कों की खैरात नजर आती है। कल भी यही एजेंडा चल रहा था, आज भी पूरे देश में चलाया जा रहा है। मोपला से जहांगीरपुरी तक की 100 वर्षों की यात्रा में कुछ नहीं बदला है।
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