Tuesday 10 May 2022

राष्ट्रद्रोह कानून में भी सिब्बल नेहरू को घसीट लाये

देश में जब भी किसी बदलाव की बात शुरू होती है। कांग्रेस का कोई न कोई नेता उसमें कूद कर उस बदलाव को गांधी, नेहरू से जोड़ने में तनिक भी कोताही नहीं बरतता। उच्चतम न्यायालय में देशद्रोह कानून की धारा 124A पर बहस के दौरान भी यही हुआ? कांग्रेस के कपिल सिब्बल बहस में कूद पड़े और अदालत को यह समझाने लगे कि नेहरू और गांधी भी इस धारा के सख्त खिलाफ थे।



इस देश की विडंबना यही है कि नेहरू खानदान इस देश में करना सब चाहता था, लेकिन तीन पीढ़ियों के द्वारा 70 वर्षों तक शासन करने के बाद भी किया कुछ नहीं। कपिल सिब्बल को यह कहते शर्म नहीं आई कि नेहरू 1951 में राष्ट्रद्रोह के प्रावधानों में बदलाव चाहते थे, उन्होंने कहा था,"मैं राष्ट्रद्रोह के प्रावधानों के सख्त खिलाफ हूं। इन्हें किसी भी कानून में, किसी भी कारण कोई स्थान नहीं मिलना चाहिए।" वर्ष 2013 तक बाबासाहेब के संविधान में 98 संशोधन हो चुके थे। लेकिन नेहरू की तीन पीढ़ियों में से किसी ने इस कानून की गली में झांका तक नहीं। अब जब मोदी सरकार इस दिशा में सकारात्मक और गंभीर कदम उठाने के लिए आगे बढ़ी है, तब सिब्बल को नेहरू सपने में आकर याद दिला रहे हैं।

कांग्रेसियों की बेशर्मी की हद देखिए, देशद्रोह कानून में कितने जाने वाले बदलावों को नेहरू गांधी की इच्छा से जोड़ने वाले कपिल सिब्बल स्वयं मानव संसाधन और कानून मंत्री रह चुके हैं। उस दौर में कभी भी नेहरू गांधी ने उनके स्वप्न में आकर यह नहीं कहा कि देशद्रोह कानून की धारा 124A उनकी आत्मा को अत्यधिक कष्ट दे रही है। अतः वह इस संबंध में कुछ करें।

देश अब आगे बढ़ चला है, उसे अपना इतिहास जानने में रुचि अवश्य है, लेकिन उसे न तो आजादी की लड़ाई के दौरान नेहरू के जेल पर्यटन के विषय में जानने में कोई रुचि है और न ही नेहरू द्वारा नाभा की जेल में सिर्फ 12 दिनों में हलकान होने के बाद उनके पिता मोतीलाल नेहरू ने वायसराय के दरबार में नाक रगड़कर नेहरू की दो साल की सजा माफ करने की गुहार लगाई। वायसराय अपने खिदमतगार की दुहाई पर पिघले और नेहरू ने माफीनामे के साथ बांड भर कर दिया कि वह कभी भी नाभा राज्य की सीमा में प्रवेश नहीं करेंगे। उसके बाद नेहरू कभी भी नाभा नहीं गये। देश आजाद होने के बाद भी नहीं।

देश बार बार न तो नेहरू गांधी की गलतियों को याद करना चाहता है, न उनका रोना रोना चाहता है। वह भूतकाल था, गुजर गया, अब आगे की सोचो, परंतु कांग्रेसी हर बात में नेहरू गांधी को घसीट लाते हैं, उन पर चर्चा शुरू कर देते हैं, जिसके कारण देश को नेहरू और उनके बाद के कालखंड की परतें उघाड़ती पड़ती हैं। कांग्रेस के नेता शायद नेहरू खानदान के शासनकाल से खफा हैं, वह चाहते हैं कि देश उनकी कारगुज़ारियों पर लानत मलानत भेजे, इसीलिए वह सभी विषयों में नेहरू को खींच लाकर, उनकी असफलताओं को उघाड़ते हैं। जब कपिल सिब्बल कहेंगे कि नेहरू राष्ट्रद्रोह की धारा के खिलाफ थे। वर्ष 1951 में उन्होंने इसका विरोध किया था, तो प्रश्न स्वाभाविक है कि अब तक नेहरू और उनके वंशज इस बारे में अकर्मण्य क्यों रहे।

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