Wednesday 11 May 2022

राष्ट्रद्रोह कानून की समीक्षा का अर्थ उसका निरस्त होना नहीं?

अंग्रेजों द्वारा 152 वर्ष पूर्व 1870 में बनाये राजद्रोह कानून के औचित्य पर आज प्रश्न उठने स्वाभाविक हैं, वह भी तब जब राज्य धड़ल्ले से अपने विरोधियों को सबक सिखाने के लिए इसके दुरुपयोग में लगे हुए हैं। परन्तु राजद्रोह कानून की आवश्यकता और उसका दुरुपयोग दो भिन्न भिन्न पहलू हैं। जिनके कारण न तो राजद्रोह कानून की आवश्यकता और महत्व कम होता है और न ही उसकी उपयोगिता पर प्रश्न उठता है।


अंग्रेजों के द्वारा अपने शासन के दौरान बनाये गये इस कानून के प्रावधानों और उद्देश्यों पर होने वाली बहस से इस कानून की आवश्यकता और उपयोगिता तनिक भी प्रभावित नहीं होती। हास्यास्पद बात यह है कि इस कानून को आजादी के बाद 70 वर्षों तक ढोने वाले, इसे अधिक सख्त बनाने वाले आज सबसे अधिक ढोल पीट रहे हैं। याद रहे उच्चतम न्यायालय ने राजद्रोह कानून की धारा 124A को रद्द नहीं किया है, अभी सिर्फ इसका उपयोग उस समय तक टालने की हिदायत दी है, जब तक केन्द्र सरकार इसकी समीक्षा न कर ले। केन्द्र सरकार इसके उपयोग के संबंध में कुछ संतुस्तियां जारी करने वाली है, इस कानून का उपयोग करते समय जिनका ध्यान सरकारें रखें।

लेकिन इस कानून को लेकर देश में विपक्षियों के द्वारा जो वातावरण बनाया जा रहा है। उसे देखकर तो यह लगता है कि इस देश में देशद्रोह जैसे कानून की आवश्यकता ही नहीं है। आतंकवादी चाहे जितने विस्फोट कर लें, अर्बन नक्सली चाहे जितनी देश को खंड खंड करने की बातें कर लें, चाहे कोई देश के किसी भाग में तिरंगे को उठाने वाला न मिलने की बात कर लें, लोकतंत्र में लोगों को यह सब करने की छूट होनी चाहिए। 

महत्वपूर्ण बात यह है कि केन्द्र सरकार ने इस कानून के प्रावधानों की समीक्षा करने की बात कही है, रद्द करने की नहीं। समीक्षा होनी भी चाहिए, इसके प्रावधानों को सुसंगत बनाया जाना चाहिए, जिनका उपयोग करने के लिए कठिन और जटिल प्रक्रिया अपनाई जा सकती है। यह प्रश्न भी इसलिए उठे, क्योंकि किसी ने कार्टून बनाया, सार्वजनिक स्थान पर हनुमान चालीसा पढ़ा और उसे देशद्रोही कहकर सलाखों के पीछे भेज दिया। इस कानून की सर्वाधिक आलोचना भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार में इसके हस्तक्षेप के चलते उठी है। परन्तु देश में राष्ट्रद्रोह का अपराध होगा ही नहीं, राष्ट्रद्रोह के अपराध से निपटने के लिए कानून की आवश्यकता ही नहीं, इन बातों से कोई सहमत नहीं होगा। वह भी तब, जब कुछ लोग सरकार व प्रशासन के सामने सशस्त्र विद्रोह पर आमादा हो जाते हैं।

देश उम्मीद करता है कि शीघ्र ही एक सुसंगत, कठोर व संशोधित राष्ट्रद्रोह कानून आकार लेगा, जो देश के द्रोहियों से निपटने में सक्षम होगा।

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