Friday, 9 September 2016

रेल किराये में दाम बढ़ाने वाली नीति का क्या औचित्य

शुक्रवार का दिन देश में फिल्म उद्योग के नाम है। लगभग सभी नई फिल्में इसी दिन सिनेमाघरों में दर्शकों के लिये लगाई जाती हैं। आप इतिहास जांच लीजिये, यह दिन इसी काम के नाम है। हमारे कर्मठ रेल मन्त्री सुरेश प्रभु जी शुक्रवार के दिन पर इस एकाधिकार से खुश नहीं हैं। अतः उन्होने 9 सितम्बर शुक्रवार को रेल किराये में एक नई तेजी से किराया बढ़ने वाली नीति का आगाज किया है। अब रेल यात्री भी शेयर बाजार में लगे सटोरियों की तरह पल क्षण किराये की तख्ती निहारता, यह चढ़ा - वह बढ़ा चिल्लाया करेगा। दोनों ही भाग्यवादी होंगे, परन्तु रेल यात्री और सटोरिये के भाग्य में इतना अन्तर अवश्य होगा कि सटोरिये को कभी कभी दाम लुढ़कने की उम्मीद तो रहेगी और दाम लुढ़केंगे भी, पर रेल यात्री बुखार नापने वाले थर्मामीटर की तरह सिर्फ पारे को चढ़ते हुये ही देखेगा। तापमान कितना भी कम हो जाये उसका उससे कोई सरोकार नहीं रहेगा। रेल मन्त्रालय द्वारा फिलहाल तीन ट्रेनों राजधानी, दूरन्तो व शताब्दी के यात्री किरायों को तय करने के लिये कुछ इसी तरह की दाम तेजी से बढ़ने वाली (Surge Pricing Policy) अपनाई जा रही है।

दाम तेजी से बढ़ने वाली इस Surge Pricing को Dynamic Pricing सक्रिय मूल्यनीति भी कहा जाता है। इसमें वस्तु की मांग बढ़ने के साथ उसके दाम भी बढ़ते जाते हैं। सरल उदाहरण से इस बात को समझते हैं। श्रीनगर में कर्फ्यू लगा है, इन स्थितियों में दूध की मांग तो है, परन्तु आपूर्ति नहीं है। अतः 40 रूपये लीटर बिकने वाला दूध, दूधवाला पहले 60 फिर 80 उसके बाद 100 और फिर अधिक और अधिक दामों पर बेच रहा है, जैसे जैसे कर्फ्यू की मियाद बढ़ती जायेगी, दूध के दाम भी बढ़ते जायेंगे। मै यह उदाहरण देना नहीं चाहता था, परन्तु ग्राहकों को समझाने के लिये इससे सरल कोई दूसरा उदाहरण मेरे पास नहीं था। रेल सरकार ने टिकट के दामों के बढ़ने के मामलेे में उच्चतम सीमा निर्धारित कर, मिर्च का धुआं उड़ाकर, आंसू पोछने के लिये रूमाल जरूर थमाया है कि किराया अधिकतम डेढ़ गुना ही होगा।


साधारणतया इस प्रकार की मूल्य नीति उपभोग को हतोत्साहित करने के लिये की जाती है। लन्दन शहर में सड़कों पर  बहुत अधिक यातायात की समस्या थी। जिसके कारण वहां के जनजीवन की गुणवत्ता प्रभावित हो रही थी। अतः लन्दन की सड़कों पर यातायात को हतोत्साहित करने के लिये London Congestion charges नाम का शुल्क वर्ष 2003 से लगाया जाने लगा। अब जो भी लन्दन में अपना वाहन लेकर जायेगा, उसे निर्धारित शुल्क देना पड़ेगा। इस कदम से लन्दन की सड़कों पर यातायात 10% कम हो गया। परन्तु वहां भी इस बात का ध्यान रखा गया कि साधारण लोग इस शुल्क से प्रभावित न हों, अतः शनिवार, रविवार तथा त्योहारों को इस शुल्क से मुक्त रखा गया। हम नहीं जानते रेल मन्त्री के मन में भी यदि इसी तरह का कोई विचार हो।

इस मूल्य पद्धति का व्यवसायिक स्वरूप में कोई विशेष लाभ नहीं होता, सिवाय इस बात के कि इसमें व्यर्थ जाने वाली क्षमता का भी उपयोग हो जाता है या व्यक्ति विशेष को कुछ अतिरिक्त इनसेन्टिव मिल जाती है। अब रेल मन्त्री को इन ट्रेनों का उपयोग करने से लोगों को हतोत्साहित करना है या किसी को इन्सेन्टिव देना है यह तो वह जानें। अपने देश में यह मूल्य प्रणाली कुछ एअर लाईनों तथा रेडिओ टैक्सी सेवा में लागू है, लेकिन ओपन एन्डेड है, जिसका अर्थ है कि ग्राहक को सामान्य किराये से कम पर भी यात्रा करने का अवसर उपलब्ध हो जाता है। आप सुनते होंगे कि किसी को हवाई यात्रा का टिकट 1.5 या 2 हजार में ही मिल गया। टैक्सी सेवा में भी व्यस्त समय में सर्ज प्राइसिंग के कारण मांग अधिक होने के कारण किराया बढ़ता है, परन्तु जैसे जैसे दूसरे ड्राइवर भी आन लाईन होते जाते हैं, किराये में कमी आने लगती है। यानी किराया अधिक होने पर यदि ग्राहक ने थोड़ी देर इन्तजार कर लिया तो किराया कम होने की पूरी सम्भावना रहती है। मतलब यह कि गाड़ी दोनो दिशाओं में दौड़ती है। पर हमारे रेलमन्त्री तो गाड़ी एक ही दिशा में दौड़ा रहे हैं।

रेल विभाग के कार्यकलाप सेवाक्षेत्र के अन्तर्गत आते हैं। सेवा उद्योग की मूल भावना ही इसके विपरीत है। पैसे वालों को मदद करना, उस गरीब व्यक्ति को इससे वंचित करना, जिसे इसकी जरूरत है। विशेष रूप से तब जब उसे चलाने वाली संस्था सरकारी हो, सरकार व्यक्ति विशेष या समूह विशेष में अन्तर नहीं कर सकती। आर्थिक आधार पर तो बिल्कुल नहीं। सभी नागरिकों को समान स्वरूप की सेवायें उपलब्ध करवाना उसका कर्तव्य है। उसके लिये आदर्श स्थित पहले आओ, पहले पाओ वाली ही है। हम मोदी सरकार से आदर्श स्थिति की अवहेलना की अपेक्षा नहीं कर सकते। अतएव तीन ट्रेनों में ही सही वर्तमान रेल यात्री किराया बढ़ने वाली प्रणाली को रद्द कर पूर्ववत व्यवस्था ही लागू की जाये।

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