Saturday, 1 September 2018

बाढ़ जैसे हालात



बदरा छाए कि आया सावन झूम के, कह कर लोगों के चेहरे खिल उठते थे, लेकिन आजकल बदरा अाते ही सावन के झूम कर आने का अन्दाज लोगों को अन्दर तक डरा ही नहीं हिला भी रहा है। घंटा दो घंटा बारिश हुई नहीं कि छोटे शहर गांवों की तो छोड़िए, मैट्रो शहरों की सड़कों पर भी नावें चलने लगती हैं और हम रुके रुके कारवां गुजरने के गुबार को नहीं ताकते, बल्कि लुटे पिटे अपने घर में घुसे पानी के उतरने का इंतजार कर रहे होते हैं।


हमें राहत देने के लिए आजकल आनन फानन में सरकारी अमला या उसकी भेजी मदद नहीं पंहुचती, बल्कि पहुंच जाती है मीडिया और उसके कैमरे, उस मुसीबत की घड़ी में भी टीवी पर हमारे दिख जाने की उम्मीद में दिल को बड़ा सुकून दे जाती हैं। सुकून मिले भी क्यों न, आखिर वही तो है जो हमारी आवाज में आवाज मिलाकर सरकार और उसके द्वारा मानसून के लिए की गई तैयारियों को कोसते हैं।


पानी भरने से पीड़ित लोग हों या मीडिया या फिर विरोधी राजनीतिक पक्ष, सभी की दलीलें पानी के निकास की उचित व्यवस्था न किये जाने के इर्द-गिर्द घूमती हैं। बड़ी अजीब बात है यह सब पानी निकलने की न ‌जाने कौन सी उड़न छू व्यवस्था चाहते हैं, जिसमें मौजूदा ढांचे को चरमराकर तोड़ने वालों के खिलाफ न तो एक शब्द कहा जाता है, न ही सख्त कार्रवाई में सहयोग करने का भरोसा दिया जाता है।


आप शायद ठीक समझ रहे हैं, हम शहरों की गलियों में पानी निकासी के लिए बनाई उन्ही नालियों के बारे में कह रहे हैं, जो अतिक्रमण कर या तो हृदय विकार पैदा करने वाली धमनियों की तरह बहुत पतला मार्ग बनकर रह गई हैं या फिर चबूतरे, फुटपाथ या दुकान के शोकेस के नीचे दब कर दम तोड़ चुकी हैं। अब पानी निकले तो निकले कहां से और सरकार तुम तो पानी निकासी का कोई हवाई मार्ग ढूंढो, खबरदार जो अतिक्रमण की तरफ नजर भी डाली, हमारे कैमरे, जुलूस और हड़ताल सब तैयार हैं, तुम्हारे अतिक्रमण हटाने वाले अत्याचार और मानव अधिकार के हनन पर छाती पीटने के लिए। 

Wednesday, 22 August 2018

कंट्रोल दवाओं की कीमत बढ़ाने की मांग



स्वास्थ्य मंत्रालय के सूत्र बताते हैं कि दवा निर्माता कंपनियां सरकार के पास यह मांग लेकर पंहुची हैं कि नियंत्रित दवाओं के मूल्यों की अधिकतम सीमा को बढ़ाया जाए।  सरकार अगर दवा निर्माताओं की यह मांग मानती है तो यह कदम दवा मूल्य नियंत्रण आदेश (DPCO) 2013 के अन्तर्गत उठाया गया अब तक का एक दुर्लभ कदम होगा।

दवा निर्माता कंपनियों ने सरकार को एक प्रकार की चेतावनी देते हुए कहा है कि कुलचे मार की कीमतों में हुई बढ़ोतरी के कारण उनके लाभ बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। अतः वह दवा उत्पादन में कटौती करेंगे, जिसके कारण बाजार में दवाओं की उपलब्धता प्रभावित होगी। दवा कंपनियों के अनुसार आयातित औषधीय पदार्थों या फ्लर्ट ड्रग के मूल्य पिछले कुछ समय में 20 से 90 प्रतिशत तक बढ़े हैं।

अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष, नारायण भाई शाह ने सरकार से कहा है कि वह बार बार वस्तुओं की मूल्य निर्धारण प्रक्रिया में उलझने के बजाय, वस्तुओं पर उनकी उत्पादन कीमत लिखना अनिवार्य कर दे। वस्तुओं के विक्रय मूल्य की चिंता बाजार वह ग्राहक स्वयं देख लेंगे।

- अशोक त्रिवेदी

रेलों में फ्लैक्सी किराया सिस्टम रद्द होने की संभावना नहीं



यात्री भारतीय रेल में 'परिवर्तनीय किराये' (Flexi fare) की मार सितंबर 2016 में इस व्यवस्था को लागू किए जाने के समय से झेलने को विवश है। इस व्यवस्था में जैसे जैसे यात्रियों द्वारा आरक्षण करवाया जाता है, रेल विभाग स्वयं संचालित तकनीक से यात्री किराया बढ़ाता जाता है। रेलवे ने यह व्यवस्था 2016 में सभी राजधानी, दूरंतो तथा शताब्दी गाड़ियों में जिनकी संख्या लगभग 268 है, लागू की थी। रेलवे द्वारा इसी तरह की एक अन्य विशेष किराये वाली व्यवस्था कुछ विशेष रेलगाड़ियों में भी लागू की थी।

ग्राहक संगठन रेल किराए की इन दोनों व्यवस्थाओं का विरोध कर रहे थे। उनका कहना था कि सरकार को इस तरह की व्यवस्थाओं को लागू करने से बचना चाहिए, जो यात्री यात्री में फर्क करने के साथ ही यात्रियों की मजबूरी का लाभ उठाती हैं। रेलवे द्वारा सामान्य तौर पर लागू प्रणाली पहले आओ, पहले पाओ ही बेहतर प्रणाली है। ग्राहक संगठनों की मांग को उस समय बल मिला, जब भारत के 'नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक' ने इस वर्ष के प्रारंभ में जारी की गई अपनी रिपोर्ट में यह कहा कि इस व्यवस्था को लागू  करने से, सिर्फ दूरंतो गाड़ियों के स्लीपर दर्जे को छोड़कर अन्य सभी की यात्री संख्या में भारी गिरावट दर्ज की गई है, यह रिपोर्ट संसद में भी रखी गई थी। इससे यह उम्मीद बंधी थी कि रेल मंत्री ग्राहक संगठनों की मांग को ध्यान में रखकर शायद इस व्यवस्था को रद्द कर दें। रेलमंत्री ने 'परिवर्तनीय किराये' व्यवस्था का पुनरावलोकन करने के लिए रेलवे बोर्ड से कहा भी था।

रेलवे बोर्ड ने अपनी रिपोर्ट रेलमंत्री पीयूष गोयल को सौंप दी है तथा रेलमंत्री शीघ्र ही इस विषय में निर्णय लेने वाले हैं। परन्तु रेल मंत्रालय से मिलने वाले संकेतों के अनुसार, रेलमंत्री ग्राहकों को अंगूठा दिखाने वाले हैं अर्थात 'परिवर्तनीय किराये' वाली व्यवस्था में किसी भी प्रकार के बदलाव की संभावना नहीं है। हां, रेलमंत्री उन कुछ रेलमार्गों के बारे में कुछ विचार कर सकते हैं, जिन पर 'परिवर्तनीय किराये' की व्यवस्था लागू करने के बाद यात्री संख्या में भारी गिरावट आई है।

'परिवर्तनीय किराये' की व्यवस्था लागू होने के बाद से थर्ड एसी क्लास, जो मात्र रेल विभाग को लाभ कमा कर देने वाला एकमात्र क्लास है, यात्री संख्या में उल्लेखनीय गिरावट आई है। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट के अनुसार थर्ड एसी क्लास में फ्लैक्सी सिस्टम लागू होने के बाद 4.46 प्रतिशत सीटें खाली जाने लगी, जबकि पूर्व में मात्र 0.66 प्रतिशत सीटें ही खाली जाती थी। यदि यात्रियों की संख्या की बात करें तो रिपोर्ट में कहा गया है कि इन विशिष्ट रेलों में फ्लैक्सी किराया लागू होने के पूर्व 2,47,36,469 यात्री संख्या थी, जो यह व्यवस्था लागू होने के बाद घटकर 2,40,79,899 ही रह गई। यानी यात्री संख्या में 2.65% की सीधी गिरावट, जबकि वर्तमान में सीटों की संख्या में काफी वृद्धि भी हुई है, यह राष्ट्रीय संपत्ति के समुचित उपयोग नहीं किया जाना है। महानियंत्रक ने अपनी रिपोर्ट में आगे कहा कि इस व्यवस्था पर अधिक ध्यान देने तथा मात्र अधिक राजस्व के लक्ष्य को केन्द्र न मानते हुए, अधिक से अधिक यात्री संख्या बढ़ाने पर लक्ष्य केन्द्रित करने की जरूरत है।

अशोक त्रिवेदी
राष्ट्रीय सचिव (पूर्व)
अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत

Tuesday, 14 August 2018

GST : हम तो लुट गये तेरे प्यार में .......

मुझे देश में GST लगने के पहले का समय याद आ रहा है। सभी इसके गुणों का विष्लेषण करने में व्यस्त थे, सरकार, विपक्ष, उद्योगपति, उत्पादक, व्यापारी और यहां तक कि ग्राहक संगठन। विपक्ष तो आज GST का विरोध कर राजनीति कर रहा है। व्यापारी को GST की जटिल प्रक्रिया से शिकायत है, परन्तु ग्राहक संगठन जो GST लागू होने के कालखंड में 'बेगानी शादी के अब्दुल्ला बन गये थे' आज सीन से ही गायब हैं। देश का अग्रणी ग्राहक संगठन भी अपने कुछ कागजी नेताओं के सहारे यही कर  आ रहा था। टैक्स कम होंगे, ग्राहक को बाजार में सामान सस्ता मिलेगा आदि आदि। जब भी मौका मिला समझाने की कोशिश की, कि अर्थशास्त्र, बाजार और मार्केटिंग का चिन्तन करो, उस आधार पर GST के कारण ग्राहक पर पड़ने वाले प्रभावों की बात करो। इससे ग्राहकों को कुछ नहीं मिलने वाला है, सिर्फ और सिर्फ मंहगाई बढ़ेगी, परन्तु सही बात को बाद में ही पहचान मिलती है।



बाजार में वस्तुओं के मूल्य कम होने की अवधारणा के खिलाफ इंग्लैंड के अर्थशास्त्री डूमशीयर व हैफल बोवर का सिद्धांत स्पष्ट था, वह अपनी पुस्तक 'इकनामिक्स विद एप्लीकेशन टु एग्रीकल्चर' में लिखते हैं,  उनके समय में इंग्लैंड में डबलरोटी की कीमत 4.2 सेन्ट थी, उनका कहना था, "यदि किसान बेकरी वाले को गेहूं मुफ्त में दे दे, चक्की वाला बिना कोई मूल्य लिए गेहूं की पिसाई कर दे, कोई ट्रान्सपोर्टर आटे को फ्री में बेकरी तक पंहुचा दे, तो भी डबलरोटी का मूल्य कम होने वाला नहीं, 4.2 सेन्ट ही रहेगा?" यही बात GST के बारे में लागू थी, लागू हुई।

GST मात्र एक टैक्स सुधार था, अत: इसके महत्व को नकारा नहीं जा सकता, परन्तु इस दिशा में हम एक कदम आगे ही आ पाये हैं, कई टैक्सों को समाप्त कर एक टैक्स लागू करना। सबसे महत्वपूर्ण पक्ष सरकार द्वारा टैक्स कलेक्शन की है। टैक्स की चोरी समाप्त कर अधिक से अधिक राजस्व प्राप्त करना। यहां कुछ विशेष सफलता नहीं मिली, आज भी बिना बिल वाला कारोबार पूरे देश में बेधड़क चालू है। करोड़ों रुपयों की टैक्स चोरी इक्का दुक्का छापों में ही पकड़़ी गई है। GST लागू करने का सबसे बड़ा लाभ यही मिलने वाला था, जहां सरकार पूरी तरह फेल है।

ग्राहक की बात करें तो उसकी जेब पर GST के नाम पर बेइंतहा बोझ आया है। उसे टैक्स पर टैक्स कई बार देना पड़ रहा है। उसके लिए GST सिंगल प्वाईंट टैक्स नहीं है। वस्तु बाजार में जितने हाथों से होकर गुजरती है, उतनी बार उसकी कीमत में टैक्स जुड़ता जाता है, व्यापारी तो अपने हिस्से का रिफंड ले लेता है, पर ग्राहक द्वारा खरीदी जाने वाली वस्तु में GST तीन से चार बार जुड़ती है। क्योंकि अन्तिम छोर पर बैठा ग्राहक टैक्स के क्युमलेटिव प्रभाव को झेलने के लिए बाध्य है। जिसके कारण वस्तुओं की कीमतों में अप्रत्याशित वृद्धि हो गई है।

मैं दस वर्ष पूर्व सिंगापुर में रहता था, अभी कुछ दिन पहले दोबारा वहां जाना हुआ। मैं आश्चर्यचकित था, वहां 10 वर्ष पूर्व उपभोक्ता वस्तुओं की जो कीमतें थी, आज भी वही हैं, कुछ वस्तुओं की कीमतें यदि बढ़ी भी हैं तो मामूली, न के बराबर, यह होती है सरकार की जिम्मेदारी।

बाबासाहेब आंबेडकर का नाम अपने देश में सबसे अधिक लिया जाता है। राजनेताओं में तो प्रतिस्पर्धा चलती है कि कौन अपने को बाबासाहेब के सबसे करीब सिद्ध कर पाता है। पर इनमें से किसी ने भी न तो बाबासाहेब को जाना समझा है, न ही उन्होंने जो बातें कही समझाई थी, उस पर ध्यान दिया है। बाबासाहेब ने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ 'प्राब्लम आफ रुपी' में जो लिखा, कहा सिंगापुर ने उसे अपनाया, नतीजतन वहां आज वस्तुओं के दाम तो लगभग 10 वर्ष पूर्व की स्थिति में ही हैं, परन्तु उनका डालर जो 10 वर्ष पूर्व 30रु था, आज 50रु के पार छलांग लगा रहा है।

ग्राहकों को GST लागू करते समय कुछ इसी तरह के सपने दिखाए गए थे, जो आज न जाने कहां पड़े धूल खा रहे हैं।

अशोक त्रिवेदी
राष्ट्रीय सचिव (पूर्व)
अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत

Tuesday, 19 June 2018

Mr Finance minister, capital infusion from tax income not a cure for sick banks http://www.indiasamvad.co.in/bizeconomy/mr-finance-minister--capital-infusion-from-tax-income-not-a-28236#.WyjcGQ6uDnE.twitter

Wednesday, 17 January 2018

Traders are minting money in the name of GST

The traders of the city have started practising Zero Business tactics in post GST regime. They are making sales to the customers without issuing bills. Traders are minting money by doing it. While making the centre, the state and the consumers to suffer heavy losses, said C V Anand commissioner of civil supplies and legal metrology. Mr Anand had initiated state vide drive against GST violators in the past month and booked nearly 1500 cases.
Raids are conducted recently by civil supplies, commercial taxes and legal metrology officials. They have booked more than 300 cases against the traders using malpractices. A fine of 5.14 lakh was recovered from them, in the form of penalties.


It’s observed that large scale violations were unearthed in Kotti, Mehdipatnam, Begum Bazar, Raniganj, Malakpet, Nampalli, Siddiamber and Dilsukhnagar. Traders are found in Charminar, Ghosamahal, Uppal, Dilsukhnagarand Borabonda areas making their purchase without bills. Traders are procuring Gutka, a 28 GST item, without bill and invoices from other states. They are procuring Palm Oil and Ghutka from Kakinada and Krishnapatnam ports in AP and construction material, electrical, electronics items from Chennai port. Cloth merchants are procuring textile material from Gujarat without bills and selling it to the prospective consumers after charging mandatory GST, without issuing bills to them.
Commercial tax officials requested the consumers to insist for bills while making their purchases.

Tuesday, 16 January 2018

Indian Medical Association failed in specifying nicety of their strike against medical bill

Indian Medical Association failed in specifying nicety of their strike against medical bill http://www.indiasamvad.co.in/states-metros/medical-association-failed-in-specifying-nicety-of-strike-27241#.WktidU7oino.twitter