26 जनवरी गणतंत्र दिवस पर विपक्षी राजनीतिक दलों से सांठगांठ कर, ट्रेक्टर परेड निकाल सरकार को घेरने का, किसान नेताओं का प्लान फेल हो गया है। अब यह किसान नेता लम्बे नपेंगे? राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर पिछले 60 दिन से चल रहे किसानों का प्रदर्शन और विज्ञान भवन में सरकार के साथ की जाने वाली वार्ता की आड़ में तथाकथित किसान नेताओं द्वारा गणतंत्र दिवस पर दिल्ली को बंधक बनाने की योजना, मोदी विरोधी राजनीतिक दलों के साथ सांठगांठ कर बनाई गई थी। उनका सोचना था कि इस तरह की अव्यवस्था फैलाने पर पुलिस के साथ मुठभेड़ में कम से कम 1000 किसान मरेंगे, उसके बाद वह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हाय तौबा मचाकर, हत्याओं का ठीकरा सरकार के सिर फोड़, अपने राजनीतिक स्वार्थों को साधेंगे। जाने अनजाने राकेश टिकैत के मुंह से एक पत्रकार से बात करते हुए, यह बात निकल भी गई थी कि सरकार की योजना किसानों पर लाठी गोली चलाने की है, जिसमें 1000 तक किसान मर सकते हैं।
इस देश के बेचारे किसान का दुर्भाग्य यही है कि कभी भी उसकी न्यायोचित मांगें सही तरीके से उठाई ही नहीं जाती, उसकी बदहाली का उपयोग विपक्षी राजनीतिक दल तथा उनके पिट्ठू किसान नेता अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए उसे आंदोलन करने के लिए भड़काने में करते हैं। इस बार भी यही हो रहा था, किसान को उसकी फसल का लाभकारी मूल्य मिले, इसके लिए आवश्यक कृषि सुधारों को चिन्हित कर लागू किए जाने के स्थान पर किसान नेता कानून - कानून की शतरंजी चालें खेल रहे थे, किसान और सरकार को अपनी चालों में उलझाकर, गणतंत्र दिवस के दिन देश में अनहोनी घटित करने की तैयारी में लगे थे।
किसान नेता जानते थे कि गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में ट्रैक्टर परेड निकाल कर उन्हें क्या करना है। जाने अनजाने उनके मुंह से सच्ची बात निकल भी जाती थी। राकेश टिकैत ने पत्रकारों से कहा भी था, हम ट्रैक्टर परेड लालकिले से निकालकर इंडिया गेट तक ले जायेंगे। लालकिले और इंडिया गेट पर पंहुचना उनकी ट्रैक्टर परेड का लक्ष्य था। दिल्ली के गाजीपुर बार्डर से चल कुछे किसान लालकिले पर पहुंचे और कुछ किसान आईटीओ पर इंडिया गेट जाने के लिए अंत तक जोर लगाते रहे।
किसान नेता ऊपरी दिखावा करते हुए, गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या तक दिल्ली पुलिस की सभी शर्तों को मानने और कानून व्यवस्था बनाए रखने का ऊपर से नाटक करते रहे। परन्तु उनके मन में जो कपट था, वह गणतंत्र दिवस की सुबह से ही बाहर आने लगा, ट्रैक्टर परेड निकालने का तय समय दिन में 12 बजे का था, लेकिन ट्रैक्टर सुबह 9 बजे के लगभग ही कूच करने लगे और वह भी तयशुदा मार्ग से अलग दिशा में ? किसान नेताओं को मालूम था कि दिन में क्या होने वाला है, इसीलिए वह पुलिस के साथ तय शर्तों में से एक, ट्रैक्टर परेड में सबसे आगे रहकर परेड का मार्गदर्शन करने के स्थान पर वहां से नदारद हो गये और दिनभर नजर नहीं आये।
ट्रैक्टर परेड को दिल्ली में जहां जाना था, वहां गयी, उसे जो करना था, उसने किया, इसको पूरी दुनिया ने देखा। किसान नेताओं का सोचना था, ट्रैक्टर परेड को दिल्ली में जो काम करने के लिए भेजा गया है, उसके बाद दिन में दिल्ली की सड़कों पर जो मार-काट मचने वाली है, उससे, उन्हें और विपक्षी राजनीतिक दलों को पूरी दुनिया में सरकार पर जबरदस्त कीचड़ उछालने का मौका मिल जायेगा और इस हाहाकार में उनकी कुटिल चालों की तरफ किसी का भी ध्यान नहीं जायेगा।
सरकार और दिल्ली पुलिस किसान नेताओं की इन चालों से अनजान नहीं थी, वह पूरे घटनाक्रम को अच्छी तरह समझ रही थी। सरकार और दिल्ली पुलिस बार बार ट्रैक्टर परेड में अनहोनी घटने व हिंसा होने की बात कह रही थी, जिसे किसान नेता लगातार कुटिलता से मना कर रहे थे। सरकार और दिल्ली पुलिस यदि चाहती तो ट्रैक्टर परेड को निकालने की इजाजत देने से मना कर सकती थी। परंतु इससे किसान नेताओं को सहानुभूति मिलती और किसान नेताओं की कुटिलता देश के सामने नहीं आती।
अतएव सरकार और दिल्ली पुलिस ने इस बात को अच्छी तरह समझते हुए भी कि दिल्ली की सड़कों पर किसान नेताओं की क्या करने की योजना है, उन्हें ट्रैक्टर परेड निकालने की इजाजत थमा दी। वह भी लिखित में शर्तों के साथ, उनसे शर्तों का पालन करने के आश्वासन भी ले लिये, अब यही लिखित प्रमाण इन किसान नेताओं की मुश्कें कसने के काम आयेंगे। लिखित में ट्रैक्टर परेड निकालने की इजाजत का कागज पाकर किसान नेता खुश थे कि उनके हाथ ट्रैक्टर परेड निकालने की इजाजत का सबूत आ गया है। अब सरकार और दिल्ली पुलिस उन पर लांछन नहीं लगा सकेगी। योगेन्द्र यादव ने मीडिया से कहा भी था, पहली बार पुलिस ने ट्रैक्टर परेड निकालने की इजाजत लिखित में दी है, इसके पूर्व तो वह मौखिक ही कह दिया करते थे। अब सुरक्षा की जिम्मेदारी दिल्ली पुलिस की है।
विपक्षी राजनीतिक दल और किसान नेता खुश थे कि सरकार को घुटनों पर लाने की उनकी योजना सफल हो गई है। इधर सरकार और दिल्ली पुलिस ने अपनी पूरी रणनीति बदल ली, अब वह किसान नेताओं के दिल में छिपी गंदगी को देश के सामने बेनकाब करने की योजना बनाने में जुट गई।
उनकी योजना के चार मुख्य भाग थे -
1. किसान नेताओं द्वारा अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए देश के गौरव और अस्मिता को तार तार करने से भी नहीं चूकना।
2. किसान आन्दोलन के खालिस्तान और अर्बन नक्सलियों से संबंध होना।
3. किसानों की आक्रामकता और हिंसा चार की भावना देश के सामने लाना।
4. किसानों की आक्रामक शक्ति को सड़क पर खड़े अवरोधों में ही बर्बाद करवाना।
5. किसानों से सीधे भिड़ने से बचना, कम से कम बल प्रयोग करना।
सरकार अपनी नीति में पूरी तरह सफल रही, इसका पूरा श्रेय दिल्ली पुलिस और अन्य सुरक्षा बलों को है। देश ने पूरी दिल्ली में किसानों के द्वारा किया जाने वाला उग्र प्रदर्शन, पुलिस पर जानलेवा हमला करना देखा। इन किसानों का नेतृत्व करने वाले किसान नेताओं का बिल में छिपना भी देखा। वहीं सरकार और पुलिस का कठिन समय में भी, धैर्य और सहिष्णुता बनाते रखना देखा। सरकार और दिल्ली पुलिस उन सभी घटनाओं को टालने में सफल रही, जिनकी योजना विपक्षी राजनीतिक दलों और किसान नेताओं ने बनाई थी।
यदि सरकार और दिल्ली पुलिस मजबूत व प्रोफेशनल न होती, तो कल की घटनाओं के बाद दिल्ली में लाशों के ढेर लगे होते। आज जो देश किसान नेताओं और विपक्षी दलों को पानी पी पीकर कोस रहा है, वह किसानों के प्रति सहानुभूति और संवेदनाएं दिखा रहा होता। सरकार और दिल्ली पुलिस यह सफाई दे रहे होते कि किसानों ने ट्रैक्टर परेड की तय शर्तों को नहीं माना, दिल्ली की सड़कों पर हिंसा करने लगे। लेकिन सरकार और दिल्ली पुलिस की यह बातें नक्कारखाने में तूती की आवाज बनकर रह जाती, उनको कोई नहीं सुनता।