आज उत्तर प्रदेश के शामली जिले की कैराना तहसील पूरे देश मे चर्चा मे है। कहा यह गया कि कैराना मे मुस्लिम बहुल आबादी मे गुण्डागर्दी से परेशान क्षेत्र के हिन्दू अ्ल्पसंख्यक अपना घर, व्यापार, खेती बेचकर पलायन करने लगे। देश मे जब तब सेकुलर, असहिष्णुता की बयार जब तब बहती है। अत: यह लॉबी भी ताल ठोक कर मैदान मे उतर पड़ी। यह लोग भी मानते हैं कि कुछ लोगों ने कैराना छोड़ा, पर अपने बेहतर भविष्य के लिये। वर्तमान मे दोनो आमने सामने हैं। अपने अपने तर्कों को लेकर। हम सभी बातों का सिलसिलेवार बेबाकी से विश्लेषण करेंगे। परन्तु पहले कैराना और उसके आसपास के क्षेत्र की भौगोलिक, सामाजिक, राजनीतिक तथा आर्थिक परिस्थितियों को समझ लेते हैं।
कैराना उत्तर प्रदेश की उत्तर पश्चिमी सीमा पर यमुना नदी के किनारे हरियाणा के पानीपत की सीमा से लगा है। पहले कैराना मुजफ्फरनगर जिले की तहसील हुआ करता था। वर्ष 2011 मे मायावती द्वारा शामली को जिला बनाने के बाद कैराना शामली की तहसील बन गया। सिर्फ 1998 और 2013 मे ही यहां से बीजेपी सांसद ने जीत हासिल की। 2011 जनगणना के मुताबिक़ कैराना तहसील की की जनसंख्या एक लाख 77 हजार 121 है. कैराना नगर पालिका की आबादी करीब 89 हजार है. कैराना नगर पालिका परिषद के इलाक़े में 81% मुस्लिम, 18% हिंदू और अन्य धर्मों को मानने वाले लोग 1% हैं. यूपी में साक्षरता दर 68% है लेकिन कैराना में 47% लोग ही साक्षर हैं। कैराना पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर से 80 किमि, मेरठ से 72 किमि, मुजफ्फरनगर से 53 किमि, बिजनौर से किमि की दूरी पर है। यह सभी जिले अत्यधिक संवेदनशील जिले हैं। इन सभी जिलों मे वह खाद पानी पर्याप्त मात्रा मे उपलब्ध है, जो दो समुदायों के बीच सौहार्द बिगाड़ने की भूमिका निभाता है। इसपर यदि प्रशासन और कानून व्यवस्था ढीली ढाली हो तो सोने मे सोहागा। अखिलेश राज मे शासन प्रशासन की चुस्ती का अंदाज कुछ दिन पहले मथुरा मे घटित जवाहरबाग कांड से मालुम पड़ जाता है। पिछले दो-तीन वर्षों मे इन सभी स्थानों पर दंगे हो चुके हैं। यह सब हम राज्य सरकार तथा उन सेकुलर लोगों की याददाश्त ताजा करने के लिये बता रहे हैं, जिन्हे हिन्दुओं पर हुये किसी भी अत्याचार को नकारने तथा उसे जल्दी से भूलने की बीमारी है। यह भी विचित्र संयोग है कि हम जिन जिन घटनाक्रमों का जिक्र कर रहे हैं। सभी के तमगे उत्तर प्रदेश की समाजवादी अखिलेश सरकार के नाम हैं।
सेकुलर दोस्तों और राजनीतिक दलों को सहारनपुर के कांग्रेस नेता इमरान मसूद का 2014 चुनावों मे दिया भाषण भी सुनने और गौर करने योग्य है। जिसमे वह हिन्दुओं और मोदी की स्तुति कर रहा है। सितम्बर 2013 मे मुजफ्फरनगर के कावल से हिन्दू -मुस्लिम दंगे की शुरूवात हुई, जिसने मुजफ्फरनगर और शामली जिले को अपनी चपेट मे ले लिया था, मई 2014 मे मेरठ दंगे की आग मे झुलसा, मुरादाबाद की कांठ तहसील मे जुलाई 2014 मे दंगे की चिंगारी फूटी, जुलाई 2014 मे ही सहारनपुर ने भी दंगे की आंच झेली। यह सब घटनाक्रम यह समझने के लिये पर्याप्त हैं कि कैराना से 50 से 80 कि मी की दूरी पर उस क्षेत्र का साम्प्रदायिक माहौल क्या और कैसा है। वहां पिछले 2-3 वर्षों से चल क्या रहा था। इस माहौल मे कभी भी पलायन शुरू होने की सम्भावना से इन्कार स्वार्थी तत्व ही करेंगे, आज भी कर रहे हैं।
अब कैराना की वर्तमान घटनाओं पर आते हैं। इस क्षेत्र के स्थानीय अखबारों मे कैराना मे हिन्दुओं के डर और पलायन की छुटपुट खबरें कुछ समय से छप रही थी। एक समाचार चैनल का ध्यान इन खबरों पर गया और उसने स्टोरी करने का विचार किया। जब चैनल का संवाददाता स्टोरी कवर करने के लिये ग्राउन्ड जीरो पर पँहुचा, वहां का जो माहौल उसने देखा, उसके हाथों के तोते उड़ गये। इस तरह कैराना का जिन्न बन्द बोतल के बाहर आया। इस जिन्न ने देश की सेकुलर जमात और राज्य सरकार को बेचैन कर दिया। पलायन का सच नंगी आँखों से चुपचाप देखा महसूस किया जाता है। वह जो इसे टीवी इन्टरव्यू या गवाह की शक्ल मे देखना चाहते हैं, सिर्फ एक वर्ग को वोट के लालच मे सन्तुष्ट करने के लिये नौटंकी कर रहे हैं। आज वहां जो हालात हैं, उनको कैमरे या किसी प्रशासनिक अधिकारी को बताने मे अच्छे अच्छों की पैन्ट गीली हो जाती है। वह भी उन अधिकारियों को जिनके पक्षपाती रवैये के कारण यह स्थितियां बनी हैं। कैराना के सांसद द्वारा कैराना से पलायन करने वाले 346 तथा कांधला से पलायन करने वाले 63 लोगों की सूची पर उंगली उठाना बुनियादी रूप से गलत है। इस लिस्ट के 100-150 नाम गलत होने का सवाल उठाने वाले शेष 196 सही नामों पर खामोश रहकर, जवाबदेही से बचने का षडयन्त्र रचने मे लगे हैं।
देश और समाज के सामने झूठी छाती पीट पीट कर शोर मचाने वाले इस वर्ग विशेष के रूदाली रूदन को देश ने हैदराबाद मे रोहित वैमूला की आत्महत्या के समय सुना, देखा और समझा। जहां रोहित का करीबी दोस्त इनसे छिटककर हकीकत बयान करता दिखा। दादरी मे अखलाक की मौत के समय देखा, जहां बाद मे मथुरा लैब की रिपोर्ट आने पर इन्हे अपने शब्दों को वापस निगलना पड़ा। जेएनयू मे देशद्रोही नारे लगाने वालों का पक्ष लेकर बंगाल चुनाव मे उतर अपनी ऐसी तैसी कराने तथा वीडियो क्लिपें सही साबित होने पर बेशर्मों की खिलखिलाते देखा और अब एक बार यह वर्ग फिर कैराना की घटनाओं को झुठलाने की कोशिश मे है। इस वर्ग के साथ किस प्रकार का व्यवहार करना है, यह निर्णय देश और समाज को करना है।
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