Thursday, 30 June 2016

सरकारी कर्मचारियों की वेतनवृद्धि सर्वहारा के लिये घातक

अर्थव्यवस्था मे अतिरिक्त पैसा उसके विकास को गति देने मे सहायक होता है। आंकडे यही बताते हैं कि यदि यह अतिरिक्त पैसा ग्राहकों  के हाथों मे दिया जाये। ग्राहक इस पैसे को बाजार मे खर्च करता है जिससे बाजार मे मांग बढती है, यह मांग अतिरिक्त उत्पादन के संसाधन विकसित करने और उद्योग लगाने, उद्योग नवीन रोजगार पैदा करने मे सहायक होते हैं। यह आधुनिक अर्थशास्त्र का नियम है। जीडीपी वृद्धि के लिये छटपटाती मोदी सरकार के लिये ऐसे किसी अवसर को न चूकना  उसकी मजबूरी है। हम केन्द्र सरकार के कर्मचारियों को सातवें वेतन आयोग लागू करना इसी द्रष्टि से देखते हैं। टैक्स वृद्धि और मंहगाई से हलाकान ग्राहकों पर इस 1 करोड 2 लाख करोड़ के अतिरिक्त बोझ का घातक असर निश्चित है। केन्द्र सरकार के लगभग 1 करोड़ कर्मचारी हैं, इनमे यदि राज्य सरकारों के कर्मचारियों की संख्या भी मिला ली जाये, क्योंकि उन्हे भी इसीप्रकार की वेतन वृद्धि देनी पडेगी तो संख्या लगभग 5 करोड हो जाती है। सरकारों द्वारा की गई वेतन वृद्धि के कारण बाजार मे मुद्रा का प्रचलन बढेगा, जिसके कारण जन्म लेने वाली मुद्रास्फीर्ति पूरी आबादी पर अपना प्रभाव छोडेगी। पहले से मंहगाई से जूझने वाले ग्राहक को निश्चित रूप से इससे धक्का लगेगा।

सरकारी कर्मचारी के हाथ मे आने वाला पैसा बाजार मे आये, इसी उम्मीद मे लगे हाथ शॉप एण्ड इस्टेब्लिस्मेन्ट कानून बदलकर बाजारों को 24 x 7 घन्टे खोलने की अनुमति दे दी गई है। ग्राहकों के प्रतिनिधि के नाते हम इस कदम का स्वागत करते हैं। परन्तु इससे सम्बन्धित दुनिया के आंकडे देखने पर नहीं लगता कि इससे वह कुछ हासिल हो पायेगा जो प्रचारित कर यह कदम उठाया जा रहा है। बमुश्किल दुनिया के उंगली पर गिने जा सकने वाले शहरों मे ही यह व्यवस्था लागू हो पाई है। रोजगार मे मामूली वृद्धि ही होगी, जबकि व्यापार को इसका लाभ मिलेगा। पहले ही निजी कारखानों मे काम के 8 घन्टे कबके 12 घन्टे बन चुके हैं।

सरकार के इस कदम के साथ ही ग्राहकों को अतिरिक्त टैक्स का भार झेलने के लिये तैयार रहना चाहिये। वर्ष 2016 के 18 लाख करोड़ रूपयों के बजट को देखने से ही यह स्पष्ट हो जाता है। इस बजट मे सरकार की सभी श्रोतों से आय 12 लाख 21. हजार 818 करोड़ रुपये थी, जबकि गैर योजना खर्च 13 लाख 12 हजार 200 करोड़ रुपये यानी आमदनी से 90,372 करोड़ रुपये अधिक, अब इस अतिरिक्त 1 लाख 2 हजार करोड़ रुपये की व्यवस्था का रास्ता ग्राहकों की जेब से ही होकर गुजरने वाला है। वैसे जेटली जी को GST पास होने की उम्मीद से सर्विस टैक्स 15.5 से 18%. हो जाने की भी उम्मीद भी होगी।

मोदी को पंक्ति के अन्तिम छोर पर बैठे जिस व्यक्ति की सर्वाधिक चिन्ता है, उसी के लिये यह कदम सर्वाधिक कष्टदायी हैं। सरकार अार्थिक मामलों में कमोबेश वही कदम उठा रही है, जिनके फलों के स्वाद विश्व के कई देश चख चुके हैं। जो असफल सिद्ध हो चुके हैं। सर्वहारा को आर्थिक सक्षम बनाने तथा आर्थिक असमानता को दूर करने के मार्ग अलग और लीक से हटकर हैं। शायद उनमे भी जोखिम हो, जिसे उठाने को सरकार अभी तैयार न हो, हम उस समय का इन्तजार करेंगे।

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