Thursday, 3 April 2014

कांग्रेस जानबूझकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बारे में ग़लतफ़हमी फैला रही है

स्वतन्त्रता पूर्व से ही कांग्रेस नेता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ  प्रति विद्वेष पाले हुए थे। यद्यपि उन्हें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बारे  में तनिक भी जानकारी नहीं थी। न जाने किन राजनैतिक कारणों से उनमें यह ग़लतफ़हमी थी। जबकि संघ के कई पुराने स्वयंसेवक आज़ादी से पूर्व
कांग्रेस के साथ मिलकर स्वतन्त्रता की लड़ाई में लगे हुए थे। संघ की प्रारम्भ से ही प्रचार विमुख रहने की आदत रही है , जिसके कारण संघ ने कभी समाज को अपने बारे में अधिक कुछ बताया नहीं और कांग्रेस के नेता दुस्प्रचार करते हुए समाज के मन में विष का बीजारोपण करते रहे , संघ के स्वयंसेवकों द्वारा राजनैतिक दल जनसंघ कि स्थापना के बाद से तो उनका संघ और जनसंघ पर हमला और तेज हो गया। दूसरे कांग्रेस के नेहरू इस बात का खास ख्याल रख रहे थे कि उनके लिए कोई भी राजनैतिक दल चुनौती न बन पाये , आतः उन्होंने धर्मगत, जातिगत सभी समीकरण बैठा ली थी। उन्हें अन्य किसी दल से तो खतरा था ही नहीं ,सिर्फ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों के जनसंघ से खतरा था कि कालान्तर में यही दल कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती बन सकता है। अतः उन्होंने प्रारम्भ से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और जनसंघ पर साम्प्रदायिकता कि मुहर लगानी शुरू कर दी थी। आज भी देश में कांग्रेस और अन्य दल इसी साम्प्रदायिकता के आरोप के सहारे जनसंघ के संवर्धित स्वरुप भा ज पा से चुनाव में मुकाबला करते हैं। 

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के चतुर्थ सरसंघचालक प्रो रज्जू भैया के बारे में पड़ते हुए एक प्रकरण सामने आया जिससे पता चलता था कि कांग्रेस के बड़े नेता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बारे में कुछ भी नहीं जानते थे फिर भी उसके विरुद्ध विष वमन करते थे। गांधी जी की हत्या के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया था , अन्य स्वयंसेवकों के साथ रज्जू भैया भी जेल में थे , उनकी माता जी उनसे मिलने आती थी , उन्होंने लगभग ५ महीने बाद रज्जू भैया के पिताजी से जो कि चीफ इंजीनियर थे और बहुत व्यस्त रहते थे से कहा कि आप भी एक बार अपने बेटे से जेल में मिल आइये। जब रज्जू भैया के पिता जी उनसे मिलने रेल से जा रहे थे ,शास्त्री जी भी उसी डिब्बे में थे। उन्होंने पूछा कि कहाँ जा रहे हो। रज्जू भैया के पिताजी ने कहा मेरा बड़ा बेटा राजेन्द्र जेल में है ,उसीसे मिलने जा रहा हूँ। शास्त्री जी ने कहा आपका बेटा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का बड़ा कार्यकर्ता  है। उसे समझाईये कि संघ जैसे खतरनाक संगठन में न जाये। रज्जू भैया के पिताजी ने थोडा रूककर कहा कि मैं संघ के बारे में तो अधिक नहीं जानता ,परन्तु अपने पुत्र को अच्छी तरह जनता हूँ , अगर मेरा पुत्र उस संस्था में है तो वह संस्था ख़राब नहीं हो सकती। तब शास्त्री जी ने कहा कि अपने पुत्र से कहिये कि संघ के विषय में बताते हुए एक पत्र मुझे लिखे।  रज्जू भैया ने शास्त्री जी को पत्र लिखा, यह पत्र बाद में पाञ्चजन्य में भी छापा था। शास्त्री जी ने 2 - 3 दिन बाद ही 5 - 6 स्वयंसेवकों के रिलीज आर्डर भिजवा दिए। इस घटना से स्पष्ट है कि कांग्रेस के बड़े नेता भी संघ के बारे में नहीं जानते थे , जिसे पता चल जाता था वह संघ के प्रति आदर भाव से भर जाता था। संघ कि प्रचार विमुखता इसमें और बाधक बनी। कांग्रेस के नेता समाज को संघ के बारे में उल्टी सीधी बातें बता कर भ्रमित करते रहे , बाद में तो राजनैतिक कारणों से सम्प्रदाय विशेष को अपने से मिलाने के खेल में,  यह कांग्रेस के लिए शिगूफा ही बन गया।तब से आज तक कांग्रेस के नेताओं ने संघ के खिलाफ साम्प्रदायिकता की गेंद उछालने में लगे हुए हैं , दूसरे दलों को भी यह बात अपेक्षाकृत सरल लगती है , इसीलिए वह भी इस में शामिल हो जाते हैं।  आज भी बहुत से लोग संघ के विषय में न जानते हैं, न समझते हैं। कांग्रेस के नेता अपनी राजनेतिक रोटियां सेंकने के लिए समाज को भ्रम में बनाये रखने में लगे हुए हैं।  

2014 का जो चुनाव महंगाई , भृष्टाचार को केन्द्र में रख कर लड़ा जाना चाहिए , वह आज साम्प्रदायिकता पर केंद्रित हो रहा है। कोई भी दल कांग्रेस से महंगाई , भृष्टाचार को केंद्र में न रख कर सवाल नहीं पूछ रहा है।  सभी भा ज पा को सांप्रदायिक ठहराने में जी जान से जूटे  हैं। और तो और जिनका जन्म ही भृष्टाचार का विरोध करने के लिए हुआ था ,वह भी इसी राग का रियाज करने में जुट गए हैं। यह तो बात चुनाव के समय की  है। संघ के स्वयंसेवकों के सामने, समाज की ग़लतफ़हमी दूर करने का यह बहुत बड़ा कार्य है।  अब समय भी अधिक नहीं है , कार्य बढ़ने के लिए और देश की प्रगति के लिए यह बहुत ज़रूरी है। 

Wednesday, 2 April 2014

अन्ना ने केजरीवाल को उसकी औकात बता दी ,अपने अपमान का बदला ले लिया

अन्ना हज़ारे ने केजरीवाल को आईना दिखा दिया। अन्ना की भ्रष्टाचार विरोधी छवि का फायदा उठाकर ,पहले अन्ना  के साथ अपना नाम चमकाने और फिर अन्ना से अलग होकर राजनैतिक दल बनाने वाले केजरीवाल की हरकतों से अन्ना हतप्रभ ही नहीं क्षुब्ध भी थे।सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में विख्यात ,बेदाग छवि के अन्ना राजनीति से कोसों दूर थे। वह ठगा महसूस कर रहे थे जब केजरीवाल अन्ना  के  नाम का दिल्ली में भ्रम फैलाकर,रात दिन कांग्रेस को कोसने के बाद भी कांग्रेस की  ही मदद से दिल्ली का मुख्यमन्त्री  बन गया। शासन में आने के बाद केजरीवाल ने कभी बंगले के नाम पर ,कभी सुरक्षा के नाम पर तो कभी आम लोगों के काम करने के नाम पर जिस तरह की उछल कूद मचाई उससे अन्ना की जिंदगी भर में कमाई छवि को नुकसान पहुँच रहा था। दूसरे अन्ना यह भी समझ चुके थे कि केजरीवाल अपने विदेशी आकाओं के इशारे पर, देश के खिलाफ षड्यंत्र कर रहा है।  अतः उनके लिए यह ज़रूरी हो गया था कि न सिर्फ केज़रीवाल से दूरी बढ़ाएं बल्कि  केजरीवाल का कद बढ़ाने में मदद करके उन्होंने जो पाप किया था उसका प्रायश्चित भी करें। अन्ना के लिए यह बहुत ज़रूरी हो गया था कि केजरीवाल को उसकी औकात बतायें।

अन्ना समझ गए थे कि शीर्ष पर बने रहने के लिए दो रास्ते होते हैं ,पहला लगातार आगे आगे बढ़ते जाना ,दूसरा जो आगे बढ़ रहा है उसकी टांग खींचकर उसे पीछे धकेलना। आजकल विश्व के शीर्षस्थ देश दूसरा रास्ता अपना रहे हैं। चारो और दुनिया के देशो में जो अराजकता तेजी से बढ़ी है उसके पीछे यही कारण है। यह करने के लिए शीर्षस्थ देशों की कार्यप्रणाली भी अजीब है ,वह उसी देश के लोग चुनते हैं जिसकी टाग खींचनी
होती है।शीर्षस्थ देश उस देश के एन जी ओ को धन देकर उनके माध्यम से उसी देश की जनता को विरोध करने के लिए खड़ा करते हैं।  एक उद्धरण है सभी  जानते हैं कि देश में बिजली की कितनी कमी है ,इसे पूरा करने के लिए हमे तेजी से पॉवर प्लांट लगाने होंगे , यदि हम इस दिशा में तेजी से बढ़ना चाहते हैं तो परमाणु पॉवर प्लांट से बेहतर कोई विकल्प नहीं है। कुछ दिन पहले तमिलनाडु के कुडानकुलम में परमाणु बिजली घर लगाया गया था। शीर्षस्थ देश नहीं चाहते कि हमारा देश जल्दी जल्दी उन्नति करे ,उन्होंने खड़ा कर दिया अपने धन से पलने वाले एन जी ओ को विरोध करने के लिए। आप सभी जानते हैं किस तरह से विरोध हुआ था। दूसरी तरफ 2009 से कांग्रेस पार्टी अपनी पकड़ खोती जा रही थी। जो खेमा मज़बूत होकर उभर रहा था वह उसी अटल बिहारी बाजपेयी के दल से सम्बंधित था जिसने अमेरिका के लाख विरोध के बाद भी पोखरण परमाणु परीक्षण करवा दिया था।यही नहीं अमेरिका के प्रतीबन्धो की परवाह न करते हुए प्रतिबन्ध समाप्त करवाने में उसे घुटने टेकने पर मज़बूर कर दिया था। देश में स्वाभिमान जागने लगा था। बाद में कारगिल युद्ध के समय जब अमेरिका ने भारत और पाकिस्तान के प्रधानमन्त्रियों को समझौते के लिए बुलाया था ,भारत ने मना कर दिया था। अमेरिका उस समय खून के घूंट  पीकर रह गया था। इस बार तो मोदी आगे था ,जो हट में अटल जी से कहीं आगे हैऔर अमेरिका ने वीसा मामले में उनसे पहले ही पंगा पाल रखा है।

 अतः अमेरिका ने फोर्ड फाउंडेशन के माध्यम से 2005  से 2010 तक करोड़ों रुपया खाने वाले केजरीवाल को तलब किया। तय यह हुआ कि भ्रष्टाचार का शोर मचाकर भीड़ जुटाई जाये। केजरीवाल कि औकात नहीं थी कि लोगों को इकठ्ठा कर सके। तलाश शुरू हुई ,अन्ना जो महाराष्ट्र में काफी काम कर चुके थे, साफसुथरी छवि के गाँधीवादी थे ,उन्हें केजरीवाल ने पटाया ,अन्ना सीधे साधे गांव  के  निवासी थे झांसे में आ गए।और भी लोगों को जोड़ा गया ,अधिकतर एन जी ओ वाले ही थे।  दिल्ली में अनशन शुरू हुआ भीड़ बढ़ी। केजरीवाल खुश हो गया। उसने तो अन्ना का बलिदान करने के योजना बना ली थी ताकि देश में अशांति फ़ैल जाये ,उस समय रामलीला मैदान पर अन्ना के खींचते अनशन के बारे में सोचिये ,अग्निवेश द्वारा किये खुलासे के बारे में सोचिये और बाद के घटनाक्रम जिसमे अन्ना कि परवाह करे बिना राजनैतिक पार्टी बना ली गई ,अन्ना को दूध कि मक्खी की तरह निकाल कर जिस तरह फेंक दिया,गया पूरे  घटनाक्रम को एक साथ रखकर सोचिये। योजना तो दूसरी थी। शुरू में अन्ना चुप रहे ,अन्ना के चुप रहने का शातिर केजरीवाल ने फायदा उठाया और दिल्ली के चुनावों में अन्ना के नाम का उपयोग करके आगे बढ़ने में सफलता प्राप्त कर ली।

इसीलिए ज़िन्दगी भर राजनीति से दूर रहने वाले अन्ना ने भी केजरीवाल की तरह ही एक चाल चली.उन्होंने मुख्यमन्त्री केजरीवाल पर  कटाक्ष करना शुरू किया , बंगाल की मुख्यमन्त्री ममता बनर्जी कि तारीफ करनी  शुरू कर दी ,यही नहीं ममता को हर मामले में केजरीवाल से अच्छा बताया और तो और खुद भी ममता का प्रचार करने के लिए आगे बढे ,मंच साझा किया ,वह सब किया जो उन्होंने ज़िंदगी में कभी नहीं किया था। पूरा देश उन्हें हतप्रभ सा देख रहा था ,कुछ तो यह भी कह रहे थे कि अन्ना सठिया गए हैं , पर अन्ना चुपचाप प्रायश्चित करने में लगे थे। कुछ बोले बिना केजरीवाल की औकात देश को बता रहे थे। देश के लोगों  को केजरीवाल की असलियत दिखा रहे थे। सबने देखा होगा कि इन्ही दिनों केजरीवाल का विरोध ही नहीं बढ़ा बल्कि दिल्ली के लोग भी तरह तरह की आलोचनाएं करने लगे। ममता की दिल्ली रैली तक अन्ना ने यह सब चलने दिया ,उसी दिल्ली तक जहाँ उन्होंने देश को समझाया था कि वह तो सामाजिक कार्यकर्ता हें  ,राजनीति से उनका कोई लेना देना नहीं है।जिन  दिल्ली के नागरिकों को केजरीवाल ने उनके नाम पर गुमराह किया था , उन्हें इशारों इशारों में समझा दिया कि केजरीवाल नौटंकी है ,उससे उनका कोई लेना देना नहीं है, वापस रालेगाव सिद्धी लौट गए अपने उसी पुराने सामाजिक परिवेश में।अब पूरा देश समझ चुका है ,सामाजिक कार्यकर्ताओं को धोखा देने वाला मदांध केजरीवाल कितनी भी उठा पटक कर ले. देश कि जनता समझ गयी है। अन्ना  ने अपना बदला ले लिया है। 16 मई को देश की जनता इस सामाजिक जरासन्ध का वध करने वाली है , केजरीवाल और उसकी आप पार्टी दोनों का विसर्जन होना है। 


Tuesday, 1 April 2014

मिनिमम बैलेंस नहीं और सभी शुल्क भी ख़त्म करे रिज़र्व बैंक

बैंक उन ग्राहकों से पेनल्टी वसूल न करें जो अपने खातों में मिनिमम बेलेन्स सुचारु रूप से नहीं रख पाते हैं , रिजर्व बैंक का आज जारी किया गया यह निर्देश स्वागत योग्य है। अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत रिज़र्व बैंक द्वारा उठाये इस कदम के लिए उन्हें धन्यवाद देती है, बहुत से लोग जो देश को जानते पहचानते नहीं हैं ,इस बात को नहीं समझ पायेंगे कि देश का सामाजिक आर्थिक जीवन किस स्तर का है। विभिन्न आर्थिक गतिविधियों में उनका सहभाग रहे , इसके लिए क्या आवश्यक है। आजकल बैंक जिस तरह का आचरण अपना रहे हैं, उसे देखकर लगता है कि हम एक विकसित अर्थव्यस्था में रह रहे हैं। हमारे देश के ग्राहक खुशहाल हैं तथा किसी भी तरह का आर्थिक बोझ उठाने में सक्षम है। अतः वह विभिन्न सेवाओं के नाम पर तरह तरह के सेवा शुल्क ग्राहकों से वसूलने में लगे हैं। बैंक एक तथ्य को पूरी तरह नकार रहे  है कि सरकार चाहती है कि अधिकतर  आर्थिक लेन देन बैंकों के माध्यम से हों ताकि टैक्स की चोरी को रोका जा सके, काले धन पर काबू पाया जा सके। इसके लिए जरुरी है कि देश के बहुसंख्य लोग बैंकों के माध्यम से ही अपना आर्थिक व्यवहार करें, जिसके लिए आवश्यक है कि ग्राहकों को बैंक व्यवहार के लिए प्रोत्साहित किया जाये , परन्तु बैंकों का आचरण इसके ठीक विपरीत है, जब भी कोई साधारण ग्राहक बैंक व्यवहार के लिए जाता है, बैंक अपनी विभिन्न सेवाओं के माध्यम से उससे इतने पैसे वसूल लेते हैं कि ग्राहक बैंक को दूर से ही नमस्कार करने में अपनी बेहतरी समझता है। रिज़र्व बैंक को ऐसे समय में ग्राहक कि मदद करनी चाहिए, परन्तु वह भी अपने हाथ खड़े कर देता है। ग्राहक क्या करे ,इस तरह से देश का काले धन का कारोबार किस तरह रुकेगा।  अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत ने इस सम्बन्ध में एक पत्र रिज़र्व बैंक के गवर्नर को लिखा था ,परन्तु उनके कार्यालय ने विषय कि गम्भीरता को दर किनार करते हुए ,ग्राहक पंचायत को अपना रुटीन उत्तर भेज दिया।रिज़र्व बैंकों को ग्राहक पंचायत के प्रतिनिधियों को चर्चा के लिए बुलाना चाहिए, उनसे चर्चा करके बैंकों कि शुल्क नीति में बदलाव करना चाहिए था।  

देश के सामाजिक आर्थिक पक्ष को थोड़ी देर के लिए छोड़ भी दें , हालाँकि रिज़र्व बैंक का गठन इसी पक्ष के हित लाभ की  रक्षा करने के लिए हुआ है , तो भी बैंक व्यवहार एक द्विपक्षीय करार है जो बैंक तथा ग्राहक के बीच तब होता है जब ग्राहक बैंक में अपना खाता खोलता है।  सारी  शर्तें उसी वक्त तय हो जाती हैं , यदि उन शर्तों में किसी तरह का बदलाव लाना है तो यह बदलाव दोनों पक्षों कि सहमति से तय करके होना चाहिए। रिज़र्व बैंक को इसमें मध्यस्थ की भूमिका निभानी चाहिए ,परन्तु देश में हो उल्टा रहा है, रिज़र्व बैंक ने इस व्यवहार से हाथ धो लिए हैं, सभी बैंक ग्राहक को अपनी जागीर समझते हैं , जब जिस तरह का मन में आता है ग्राहक के खाते से पैसे काटने लगते हैं।  रिज़र्व बैंक को बैंकों द्वारा वसूले जाने वाले  सभी तरह के शुल्कों पर तुरंत प्रभाव से रोक लगनी चाहिए , पहले वह इन शुल्कों के विषय में ग्राहकों के प्रतिनिधि अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत से शुल्कों के विषय में चर्चा करें , सहमति बनने  कि दशा में ही शुल्कों को लागू किया जाये , यह ग्राहकों का सवैधानिक अधिकार है।     

ग्राहक पंचायत इस विषय को लेकर गम्भीर है, रिज़र्व बैंक से निवेदन करता है कि विषय की गम्भीरता को समझे।  विशेषकर इस संदर्भ में कि सरकार् देश के गरीब ग्राहकों को भी बैंक खाते खुलवाने के लिए मज़बूर कर रही है ,ताकि वह बैंकों के माध्यम से विभिन्न सरकारी योजनाओं के पैसे ग्राहकों के खातों तक पहुंचा सके। खुलने वाले बैंक खाते गरीब ग्राहकों के लिए सजा बनते जा रहे हैं। बैंकों द्वारा वसूले जाने वाले शुल्क अधिक, अतार्किक ,अनैतिक तथा गैरकानूनी हैं। ग्राहक पंचायत इस अन्याय के विरुद्ध ग्राहकों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए , विभिन्न प्लेटफॉर्मों पर अपनी लड़ाई लड़ने का विकल्प खुला रखती है।

Thursday, 20 March 2014

आंकड़ों के मकड़जाल में उलझकर रह गया देश का गरीब ग्राहक


देश समाज में गरीबी या गरीबों की जब भी बात होती है।राजनीतिज्ञ ,अर्थशास्त्री तथा बुद्धिवादी आंकड़ों को लेकर पिल पड़ते हैं। इन आंकड़ों के इर्दगिर्द अपने तर्कों कि गाठें लगाकर पूरे विषय को आंकड़ों के मकड़ जाल में उलझकर जस का तस छोड़ देते हैं। हर बार यही होता है ,कोई उपाय या मार्ग खोज पाना कठिन होता जाता है  ,आंकड़ों का सहज सरल विश्लेषण शायद इन बुद्धिवादिओं की बुद्धि पर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर दे इस दर से यह कभी इस पचड़े में नहीं पड़ते। हम आंकड़ों कि विश्वसनीयता पर प्रश्न चिन्ह नहीं लगा रहे हैं। चाहे वह सरकारी,निजी या अन्य किन्ही व्यवस्थाओं से प्राप्त किये गए हों। प्रश्न चिन्ह तो इन आंकड़ों के आधार पर किये विश्लेषण द्वारा निकले निष्कर्ष पर लगता है। जिन्हे आप कहीं भी ,कभी भी ,किसी भी स्थान पर परखने का प्रयास कर के देख लीजिये। आप को आंकड़ों के आधार पर निस्पादित निष्कर्ष से कहीं अधिक भयावह वास्तविकता  मिलेगी। औसत के आधार पर जुटाए यह आंकड़े ,काल्पनिक स्थितियों का ही अधिक वर्णन करते हैं। आश्चर्य इस बात का है कि इस बात को सभी जानते हैं ,फिर भी न जाने  किस कारण, क्यों देश के गरीब ग्राहकों को कभी समझ न आने वाली इस बात को समझाने का प्रयास कर उन्हें इस मकड़जाल में उलझाने  में लगे रहते हैं। यह बुद्धिवादी न तो इससे निकलने का कोई प्रयास करते दिखाई देते हैं ,न ही कोई वैकल्पिक मार्ग खोजते। शायद उन्हें यह पचड़ा लगता हो और वह किसी पचड़े में न पड़ना चाहते हों। तब तक आजकल कोई किसी मामले में हाथ नहीं डालता ,खासकर वह जिसकी जिंदगी आराम से चल रही हो ,जब तक कोई मामला उसके गले मैं फांस बनकर न अटक जाए। अतः सभी इस मुद्दे से कन्नी काटना ही बेहतर समझते हैं। यह साधारण सी बात जो मेरे जैसे अल्पबुद्धि कि समझ में आती है ,वह यह कि औसत के आधार पर निकले आंकड़ों का महत्व तभी होता है जब न्यूनतम और अधिकतम आंकड़ों के बीच अंतर 5 प्रतिशत से अधिक न हो। तभी औसत के आधार पर निकाले आंकड़े वास्तविकता के नज़दीक होते हैं। अगर एक व्यक्ति कि आय १००० रुपये हो ,दूसरे कि 100 रुपये व् तीसरे कि 50 रुपये तो औसत  के अधर पर तीनों कि आय 383 रुपये बताना हास्यास्पद होगा , आजकल देश में हो यही रहा है तभी देश कि कुल सम्पत्ति का 70 प्रतिशत मात्र 8200 लोगों के हाथों में सिमट कर रह गई है। और देश कि पूरी कि पूरी आबादी 30 प्रतिशत कि हिस्सेदार होकर रह गई है।  इन परिस्थितियों में वाही होता है जो देश में हो रहा है। जब तक हमारे नीति निर्माता इन स्थितियों को को सुलझाने कि तैयारी नहीं दिखायेंगे तब तक बात नहीं बननें  वाली। गरीबों की स्थितियों में सुधार नहीं होने वाला। 

गरीबों की स्थितियों में सुधार की योजनायें बनाने के लिए धन की आवश्यकता होगी। अतः महत्वपूर्ण यह देखना होगा कि सरकार  इस अतिरिक्त धन कि व्यवस्था कैसे करती है। अपनी आय के श्रोत कैसे बढाती है। आय के श्रोत बढ़ाने में किस वर्ग पर अधिक बोझ डालती है। स्वाधीनता के बाद से देश कि कुल आय के श्रोत और इस आय के नियोजन के कुल आंकड़े निकाल  कर देख लीजिये। यह वस्तुस्थिति सामने आ जायगी कि सभी सरकारें गरीबों से धन वसूल कर (अप्रत्यक्ष कर ) उसका अधिकतर भाग अमीरों पर लुटाती रही हैं ,नतीज़तन गरीब निचुड़ता चला गया और अमीर अधिक अमीर बनता चला गया। स्वाधीनता के बाद कि आय को 3 श्रेणियों में बांटना है। 

1 देश का बुनियादी ढांचा विकसित करने में। 
2 गरीब लोगों के लिए बनाई योजनाओं में। 
3  उद्योग /व्यापार को दी सुविधाओं पर किया खर्च।

बुनियादी सुविधाओं पर किये खर्च को भी गरीबों पर किया खर्च समझा जाये ,क्योंकि गरीब भी इससे लाभान्वित होते है। इसमें से भ्रष्टाचार के धन को निकाल दें , क्योंकि भ्रष्टाचार में गया धन प्रभावशाली लोगों की  जेब में  जाता है। उसी तरह उद्योग /व्यापार को दी सुविधाओं पर खर्च में ,उन्हें सस्ती दर पर दी जमीन ,टैक्स की छूट ,कस्टम ड्युटी की छूट तथा दिए गए विभिन्न अनुदानों को जोड़ लें ,जिनमें बिजली ,पानी ,सस्ती दर पर कोयला आदि सभी आ जाता है। स्थितियां खुद ब् खुद सामने आ जायेंगी ,धन आया किधर से है और गया किधर है। यह न समझा जाये कि हमें किसी देश की प्रगति में उद्योग का महत्व नहीं मालूम। उद्योग देश के विकास तथा रोजगार सृजन में क्या भूमिका निभाते हैं। परन्तु यहाँ बात तो गरीबों से वसूले धन के नियोजन की चल रही है। विडंबना यह कि गरीबों से वसूल कर उद्योग /व्यापार को तो धन दिया ही गया ,उद्योग /व्यापार ने भी गरीब ग्राहकों को चूसने में कोई कसर नहीं बाकी रहने दी। नतीजतन गरीब लूटकर और गरीब होता चला गया और अमीर अधिक अमीर। 

दरसल सरकार दोनों में सन्तुलन रखने की भूमिका निभाती है। दुर्भाग्य से सरकार ने दबाव व् स्वार्थ के चलते उससे हाथ खींच लिए। 60 सालों से यही चलता आ रहा है। उद्योग /व्यापार को कितना भी मुनाफा ग्राहक से वसूलने कि छूट है। अतः उद्योग /व्यापार दोहरा लाभ कमा रहे हैं , सरकार से सुविधायें लेकर ,ग्राहकों से जबरदस्त मुनाफा वसूलकर ,जिसकी वजह से जो पैसा गरीब ग्राहकों के हाथों में रहना चाहिए वह उद्योग /व्यापार के हाथों में सिमटता जा रहा है।एक बात तो साफ़ है सरकार कोई भी बने स्थापित लीक पर चलने से कुछ नहीं होने वाला। इन परिस्थितियों को बदलने के लिए नवीन सम्भावनाएं तलाश करनी होंगी। यह रास्ता कठिन तो होगा ही ,बाधाओं से भी भरा होगा। क्योंकि स्थापित लीक के समर्थन में देश के प्रभावशाली लोग खड़े होंगे। परन्तु नवीन व्यवस्था को छोटे उद्योगों तथा कृषि को ,जो पिछले 10 वर्षों में हाशिये पर चले गए हैं ,सम्भालना होगा। हमारे देश में यही अधिकतम रोजगार का सृजन करते हैं और यही आर्थिक असुंतलन को कम करते हैं। आज जो  देश की जी डी पी 4. 5 % के करीब बची हुई  है ,इसी की  वज़ह से। 

विगत 10 वर्षों का विश्व के तथाकथित अर्थशास्त्रियों के शासन को देश ने बहुत अधिक भुगता है। आज अर्थव्यवस्था उस अन्धे मोड़ पर है ,जहाँ चारो और अँधेरा ही अँधेरा है। बात यहीं समाप्त नहीं होती है ,वर्तमान नेतृत्व ने देश को उन तमाम अंतर्राष्ट्रीय करारों में जकड दिया है ,जिनके कारण आने वाले नेतृत्व को लीक से हटने के साथ साथ राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उन तमाम स्थापित व्यवस्थाओं से लड़ना होगा ,उन्हें तोडना होगा जो देश के सर्वांगीण विकास की राह की बेड़ियां बन चुकी हैं। अतः देश को एक शक्तिशाली नेतृत्व कि आवश्यकता है , जो इस कठिन दौर से देश को निकाल सके। 

ग्राहकों को कुछ ही दिनों में देश का नेतृत्व चुनने का मौका मिलने वाला है। अवसर गम्भीरता से विचार कर निर्णय लेने का है। परिवर्तन करने का है। देश की  भावी पीढ़ियों के भविष्य का है। सभी ग्राहक सावधानी से निर्णय लें ,सरकार  चुननें उखाड़ने में शत प्रतिशत सहभाग  करें। वोट जरूर दें। 

Thursday, 23 January 2014

TRANSACTION TAX REQUIRES LOT'S OF RETHINKING

Let me clear in the beginning that we are not one, who oppose any new idea. But before advocating anything specially one associated with economics, needs lot of innovative thinking. On paper any scheme appears to be good, but in practice it comes out different.Those advocating the schemes are talking, only superficially. Specially in our
country where every one takes Law by words, not by spirit. Transaction Tax requires lot of thinking, we feel. It is some what like PURCHASE TAX proposed by Dr Ram Manohar Lohia. The idea is well explained in the different books of Dr. Lohia. Once you go through it you will find that the idea is not just vague. If it is implemented every one have to share burden of tax as per his purchasing capacity. Rich one will pay more tax in comparison with the poor one who has very little for purchasing. But it has nothing to do with the price rise. For the purpose Dr. Lohia suggests another alternative ,DAM BANDHO' fix the rates. No one advocated for it, not even SAMAJVADIS. Therefore it remained only in books. Anyway we are not discussing it.



Presently government has only asked to link Aadhar card with the  bank accounts. And we are the people finding it hard and tiresome for the consumers. Presently our country is not ready for it. Bank's can not take burden of all accounts. As per Reserve Bank of India, out of 6,30000 villages only 4,00,000 villages are having connectivity with Bank's. As per World Bank Findex Survey, only 35 adults in India have Bank Accounts. How we are going to cover our entire population by Bank's. We should think of creating infrastructure first. Even developed countries with strong Bank infrastructure could not dare to try any such formula. We are aware about the literacy rate of our country. We have to teach people how to work with the banks. It is also a herculean task. 

Secondly it is not eradicating cash transactions completely. Notes below 100 rs. denomination will be in transactions. Looking to present market people will need to carry heavy amount of notes with them. It is going to create new problems. We have to take estimation of cash transactions before proceeding in this direction. And how we are going to cover these transactions under the umbrella of tax.
We are aware that in olden times we were having BARTER system. In which no cash transactions were required to be made. Only commodities exchanged. Later on PRONOTE and HUNDI system came in. In these systems one person writes on paper that he has to pay certain amount to the holder of that paper. One who have that paper in his possession can exchange it with anything having that much value. Those having good reputation need not to have that much holding of money in their possession. Only under the belief that the person writing the Hundi, Pronote is reputed one. That paper moves in the market doing number of transactions, no one doubts it. That is how paper currency came in existence. If such system developed again for avoiding TAX, then what.

Our opinion is different, it is not the tax which effects price of a commodity in the market but several other factors contributes a lot in deciding the price of a commodity in the market. Specially greed of earning multiples higher profit. We are observing in the market that selling price of a commodity is 100,200 or 1000 times higher to its production cost. Several time govt. gives relaxation in tax, with an intention of passing i to consumers. But consumers never get the benefit of this relaxation. We feel that price rise is a mentality, not effect of any tax. This is not going to effect that mentality.

One thing is important to mention, it is not the system that works but intentions of the society. If intentions are good anything will work, otherwise nothing. The system is not foolproof as supporters are claiming a long way to go, a lot to be discussed

Thursday, 9 January 2014

BANK'S ARE GOING TO INVITE PROBLEM IF THEY GO FOR CHARGING 'ATM' FEE,( AKHIL BHARTIYA GRAHAK PANCHAYAT)

                                

Akhil Bhartiya Grahak Panchayat strongly condemn the initiative of Bank's to start charging on ATM withdrawals. Since RBI had given free hand to bank's for deciding their charges. Consumers are feeling cheated for the exorbitant  service charges imposed by the Bank's. These service charges are swelling every now and then. Beside exorbitant difference in the interest rate the Bank's are paying and charging. The bank's are making the consumers to cough out a good money only in the name of service. Reserve Bank not only intervene in the matter,but take regulation of  the service charges in his hand. An intervention in regulation of service charges is necessary to save consumers from exploitation. 

Akhil Bhartiya Grahak Panchayat desist Bank's to stop such practice, forget charging on ATM for withdrawals. Otherwise we will be forced to start nation wide agitation against the Bank's. We promise Bank's are going to invite problem, if they go for charging ATM fee.

After the ATM incident of Bangalore, bank's are directed of providing security to the consumers. And in the name of making provision of Guard at ATM, Bank's are crying for increase in their cost. In the name of this increased cost they are asking for ATM fee, which is no where in the world. Bank's think there is no one to raise voice for the consumers therefore they are free to charge any amount, to make any statement, to give any reason. But Grahak Panchayat will not allow it to happen. In fact it is responsibility of the bank to provide safety when consumer enters in their ATM. Because Consumer only avails banking services inside ATM box, which are promised by the bank. Therefore it is not different from Bank premises. Argument for cost increase in provision of Guard is a foolish argument. Which we are unable to digest. Bank's are not erecting ATM's in any fancy mood. But they are opting it to save their cost. In fact consumer is obliging bank's by using ATM. This cooperation of the consumers have given opportunities to the bank's, for making deep savings in their manpower cost. The Bank's should part with the consumer with this amount saved and should reduce other service charges.

Bank's should not take it lightly. They should come forward and withdraw their statements and apologize consumers. If they are having any slight ray of hope, that they will be able to introduce withdrawal charges from ATM. They should prepare themselves to face the music of the consumers ire in the leadership of Akhil Bhartiya Grahak Panchayat, in every town of the country. 

While agitating we may request the consumers to stop using ATM. Instead personally go to the Bank branch for each and every transaction. We will also see that the bank branch is forced to provide service to each and every consumer with in a fair/prescribed time span. It is headache of Bank Branch and bank officers to manage the show within a fair prescribed time period. It may be 2000 or 5000 consumers in the bank branch for withdrawal of money at a time. We are serious and we want Bank's also to take it seriously.




Wednesday, 25 December 2013

IT IS EASY TO CUT DOWN ELECTRICITY RATE BY 50%

Yes, it is easy to cut electricity rate by 50%. This conclusion came in a discussion with the experts on the eve of Consumer Day i.e. 24th Dec at Institution of Engineers, Nagpur. Various experts were present in the discussion, including those consumer affair, electric generation, distribution, representing consumer side at Electricity Regulatory Board. 

It's a political-technical nexus drafted intelligently to exploit consumers. The political leadership busy in eating out capital of electricity, realized that they will not be able to suck consumers blood for a long time. Because whenever they were increasing electricity rate they were cursed by the people. Which was also not good for their political career. Therefore in the name of bringing more transparency to the consumers, they drafted legislation for the constitution of Electricity Regulatory Commission. An independent body to look in to the affairs of consumers and electricity generators, distributors. It is shown that the govt. have to do nothing, it is in between consumer and supplier. In case of any grievance, one who feel problem can approach ERC. It is completely ignored that in India how consumer can fight a legal battle with a commercial institution. How an illiterate consumer will be able to quote various sections of the ERC law and scrutiny of the account containing thousands of pages, prepared by those expert in this field. In short illiterate consumer is entrusted with the responsibility of defending himself in the court of law, by challenging generation cost, distribution expenses, transit loss and various other technical, economical and legal aspects. One can make it out what kind of transparency is awarded to the consumers by en-thrusting ERC regulation. In a way sheep (consumer) is thrown before lion with a warning of defending himself. Not only ERC but all other regulatory bodies created in the name of safe guarding consumer interests are biggest source of consumer exploitation. Actually these institutions are created for adjusting the beurocrates after retirement and have nothing to do with the consumers interest.

In the discussion it came on the surface that though these electric companies have outstanding of several thousand crores on government and other big consumers. In case this revenue is made available to the electric company by clearing outstanding. Electric company will come out of red easily, without increasing rate of the electricity. But to hatch consumer is an easy option. Therefore instead of going for this tough option of making recovery of their money from the government and other prosperous companies in the shelter of politicians. ERC always permits tariff increase one, two three and even four time in a year. How one can go against their masters, it is tough. Consumer is easily available.

Generation is the other area, where plants are working at lower capacity. Using costly imported coal as a fuel to serve interests of certain blocks. Purchasing of the electricity at higher rate. Even if the power is available at cheaper rate rules are drafted so that they have to go for costlier options. In a way all monopolistic practices are in practice to sell electricity to the consumers at exorbitant rates.

Distribution is another area where electricity bills are drafted in such a way that one has to apply his all skills for understanding calculations made in the bill. Even then it is not easy for him to understand it. Consumers are again exploited in the name of transition loss. Though standard norms are there but suppliers need not to care for it as his interests are well protected by the ERC. 

It is not possible to go for any reduction in electricity cost, unless these ERC's are scraped. Level field is given to all private operators for distributing electricity generated by them. One thing to remember consumer elects his representatives for his protection. It is duty of the elected representative to safeguard his interests from all odds. Not to ask him to protect his interests by going through complicated legal procedures.

One thing emerged in the discussion clearly that it is easy to bring down cost of the electricity, if interruption of ERC's is eliminated, electricity companies are forced to perform, the payment from the government and political patronized companies are regularized.