Tuesday, 1 April 2014

मिनिमम बैलेंस नहीं और सभी शुल्क भी ख़त्म करे रिज़र्व बैंक

बैंक उन ग्राहकों से पेनल्टी वसूल न करें जो अपने खातों में मिनिमम बेलेन्स सुचारु रूप से नहीं रख पाते हैं , रिजर्व बैंक का आज जारी किया गया यह निर्देश स्वागत योग्य है। अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत रिज़र्व बैंक द्वारा उठाये इस कदम के लिए उन्हें धन्यवाद देती है, बहुत से लोग जो देश को जानते पहचानते नहीं हैं ,इस बात को नहीं समझ पायेंगे कि देश का सामाजिक आर्थिक जीवन किस स्तर का है। विभिन्न आर्थिक गतिविधियों में उनका सहभाग रहे , इसके लिए क्या आवश्यक है। आजकल बैंक जिस तरह का आचरण अपना रहे हैं, उसे देखकर लगता है कि हम एक विकसित अर्थव्यस्था में रह रहे हैं। हमारे देश के ग्राहक खुशहाल हैं तथा किसी भी तरह का आर्थिक बोझ उठाने में सक्षम है। अतः वह विभिन्न सेवाओं के नाम पर तरह तरह के सेवा शुल्क ग्राहकों से वसूलने में लगे हैं। बैंक एक तथ्य को पूरी तरह नकार रहे  है कि सरकार चाहती है कि अधिकतर  आर्थिक लेन देन बैंकों के माध्यम से हों ताकि टैक्स की चोरी को रोका जा सके, काले धन पर काबू पाया जा सके। इसके लिए जरुरी है कि देश के बहुसंख्य लोग बैंकों के माध्यम से ही अपना आर्थिक व्यवहार करें, जिसके लिए आवश्यक है कि ग्राहकों को बैंक व्यवहार के लिए प्रोत्साहित किया जाये , परन्तु बैंकों का आचरण इसके ठीक विपरीत है, जब भी कोई साधारण ग्राहक बैंक व्यवहार के लिए जाता है, बैंक अपनी विभिन्न सेवाओं के माध्यम से उससे इतने पैसे वसूल लेते हैं कि ग्राहक बैंक को दूर से ही नमस्कार करने में अपनी बेहतरी समझता है। रिज़र्व बैंक को ऐसे समय में ग्राहक कि मदद करनी चाहिए, परन्तु वह भी अपने हाथ खड़े कर देता है। ग्राहक क्या करे ,इस तरह से देश का काले धन का कारोबार किस तरह रुकेगा।  अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत ने इस सम्बन्ध में एक पत्र रिज़र्व बैंक के गवर्नर को लिखा था ,परन्तु उनके कार्यालय ने विषय कि गम्भीरता को दर किनार करते हुए ,ग्राहक पंचायत को अपना रुटीन उत्तर भेज दिया।रिज़र्व बैंकों को ग्राहक पंचायत के प्रतिनिधियों को चर्चा के लिए बुलाना चाहिए, उनसे चर्चा करके बैंकों कि शुल्क नीति में बदलाव करना चाहिए था।  

देश के सामाजिक आर्थिक पक्ष को थोड़ी देर के लिए छोड़ भी दें , हालाँकि रिज़र्व बैंक का गठन इसी पक्ष के हित लाभ की  रक्षा करने के लिए हुआ है , तो भी बैंक व्यवहार एक द्विपक्षीय करार है जो बैंक तथा ग्राहक के बीच तब होता है जब ग्राहक बैंक में अपना खाता खोलता है।  सारी  शर्तें उसी वक्त तय हो जाती हैं , यदि उन शर्तों में किसी तरह का बदलाव लाना है तो यह बदलाव दोनों पक्षों कि सहमति से तय करके होना चाहिए। रिज़र्व बैंक को इसमें मध्यस्थ की भूमिका निभानी चाहिए ,परन्तु देश में हो उल्टा रहा है, रिज़र्व बैंक ने इस व्यवहार से हाथ धो लिए हैं, सभी बैंक ग्राहक को अपनी जागीर समझते हैं , जब जिस तरह का मन में आता है ग्राहक के खाते से पैसे काटने लगते हैं।  रिज़र्व बैंक को बैंकों द्वारा वसूले जाने वाले  सभी तरह के शुल्कों पर तुरंत प्रभाव से रोक लगनी चाहिए , पहले वह इन शुल्कों के विषय में ग्राहकों के प्रतिनिधि अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत से शुल्कों के विषय में चर्चा करें , सहमति बनने  कि दशा में ही शुल्कों को लागू किया जाये , यह ग्राहकों का सवैधानिक अधिकार है।     

ग्राहक पंचायत इस विषय को लेकर गम्भीर है, रिज़र्व बैंक से निवेदन करता है कि विषय की गम्भीरता को समझे।  विशेषकर इस संदर्भ में कि सरकार् देश के गरीब ग्राहकों को भी बैंक खाते खुलवाने के लिए मज़बूर कर रही है ,ताकि वह बैंकों के माध्यम से विभिन्न सरकारी योजनाओं के पैसे ग्राहकों के खातों तक पहुंचा सके। खुलने वाले बैंक खाते गरीब ग्राहकों के लिए सजा बनते जा रहे हैं। बैंकों द्वारा वसूले जाने वाले शुल्क अधिक, अतार्किक ,अनैतिक तथा गैरकानूनी हैं। ग्राहक पंचायत इस अन्याय के विरुद्ध ग्राहकों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए , विभिन्न प्लेटफॉर्मों पर अपनी लड़ाई लड़ने का विकल्प खुला रखती है।

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