डा राममनोहर लोहिया का खुद को चेला बताकर ,समाजवादी होने का ढोंग रचाकर ,परिवारवाद की राजनीति करने वाले मुलायम सिंह का न तो लोहिया से कुछ लेना देना है ,न ही समाजवाद से। हमेशा मुलायम उसी कांग्रेस की गोद में बैठने को तैयार रहते हैं ,जिसके विरुद्ध उनके गुरु डा राममनोहर लोहिया कदम कदम पर लड़ने को तैयार रहते थे। एक तरफ जहाँ डा राममनोहर लोहिया कांग्रेस के विरोध में सभी विरोधी दलों को एक साथ लेने के लिए तत्पर रहते थे ,मुलायम उनके साथ सिर्फ अपना मतलब सिद्ध करने के लिए जाते हैं। ऐसा नहीं कि कांग्रेस में अब कोई बहुत बड़ा परिवर्तन आ गया है , वह तो पहले से अधिक स्वार्थी और भृष्ट हो गई है.अपने साथ साथ उसने मुलायम को भी भृष्ट कर दिए है और समाजवाद को भी।
60 के दशक में विभिन्न प्रदेशों में संविद सरकारें देश में पहली बार बनी थीं। इसके पीछे की लोहिया की भूमिका को मुलायम भूल सकते हैं देश नहीं। उस समय डा राममनोहर लोहिया ने किन राजनैतिक दलों को साथ लिया था उसे जानबूझ कर मुलायम इसलिए नहीं याद करना चाहते क्योंकि इससे उनके परिवार की राजनैतिक महत्वकाँक्षाऐं प्रभावित होती हैं यह सभी बातें उनके दिमाग में इस तरह घुस गई हैं की वह देश समाज सभी को भूलकर अनर्गल प्रलाप करने लगे हैं ,सामाजिक विखंडन करने में लग गए हैं।
संघ और बी जे पी को पानी पानी पी पी कर कोसने वाले मुलायम के गुरु राममनोहर लोहिया राष्ट्रीय स्वयम सेवक संघ की सहायता से ही कांग्रेस के नेहरू को चुनौती देने में सक्षम हुए वह संघ की ताकत पर ही चुनाव लड़ने को तैयार हुए। बात 1962 चुनाव की है ,लोहिया प्रयाग प्रभुदत्त ब्रह्मचारी जी से यह अनुरोध करने के लिए आये थे कि ब्रह्मचारी जी नेहरू जके खिलाफ प्रयाग से चुनाव लड़ें ,ब्रह्मचारी जी ने कहा कि 1952 में वह चुनाव दूसरे प्रश्नों के कारण लड़े थे अभी जो प्रश्न हैं उन पर आप अच्छा काम कर सकते हैं। यही नहीं ब्रह्मचारी जी ने लोहिया को प्रयाग से नेहरू के खिलाफ चुनाव लड़ने को कहा। लोहिया का कहना था कि प्रयाग सीट पर उनका बहुत कम काम है अतः वह कैसे लड़ सकते हैं। इस पर ब्रह्मचारी जी ने उन्हें प्रयाग के जिस व्यक्ति से मिलने को कहा वह थे राष्ट्रीय स्वयम सेवक संघ के चतुर्थ सरसंघचालक श्री रज्जु भैया जी ,लोहिया रज्जु भैया जी से मिले जो उन दिनों वहीँ पर संघ कार्य करते थे , रज्जूभैया जी ने लोहिया को सभी बातें विस्तार से समझाईं कि ब्रह्मचारी जी का चुनाव कैसे लड़ा गया ,क्या मुद्दे थे ,कैसे वोट मिले ,क्या बातें सामने आयीं , नेहरू को कैसे अच्छी टक्कर दी जा सकती है आदि आदि। लोहिया का कहना था कि उस क्षेत्र में उनकी 2 ,3 स्थानों पर भी कमेटियां नहीं हैं ,जनसंघ से भी कभी कभी ही बात होती है , इस स्थिति में काम कौन करेगा। रज्जू भैया जी ने उन्हें समझाया की संघ की उस क्षेत्र में 60 शाखाएं हैं अतः संपर्क का लाभ उठाया जा सकता है ,यदि आप खड़े होते हैं तो उन लोगों के लिए काम करने में कोई कठिनाई नहीं होगी। रज्जु भैया जी की इस बात से लोहिया जी खुश हो गए और कहने लगे यदि 60 जगह पर आपका संपर्क है तो ठीक है सभी जगह कह देना। लोहिया जी प्रयाग से राष्ट्रीय स्वयम सेवक संघ की सहायता से चुनाव लड़े , अच्छा लड़े। नेहरू जो उन दिनों सबकी जमानत जब्त करवा देते थे लोहिया की जमानत जब्त नहीं करा पाये।
आज मुलायम के पास न तो समाजवाद का सिद्धान्त है न ही कोई विचारधारा। एक भीड़ है जिसके सहारे वह वह तमाम हथकंडे अपनाकर सत्ता में रहना चाहते हैं। जहाँ विचारधारा समाप्त हो जाती है ,देश समाज के विषयों का महत्व ख़त्म हो जाता है। इसका स्पष्ट चित्र देश के सामने है ,इस तरह के दल और व्यक्ति का क्या करना चाहिए सब जानते हैं विशेष रूप से आज का प्रबुद्ध युवा मतदाता।
No comments:
Post a Comment