स्वतन्त्रता पूर्व से ही कांग्रेस नेता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रति विद्वेष पाले हुए थे। यद्यपि उन्हें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बारे में तनिक भी जानकारी नहीं थी। न जाने किन राजनैतिक कारणों से उनमें यह ग़लतफ़हमी थी। जबकि संघ के कई पुराने स्वयंसेवक आज़ादी से पूर्व
कांग्रेस के साथ मिलकर स्वतन्त्रता की लड़ाई में लगे हुए थे। संघ की प्रारम्भ से ही प्रचार विमुख रहने की आदत रही है , जिसके कारण संघ ने कभी समाज को अपने बारे में अधिक कुछ बताया नहीं और कांग्रेस के नेता दुस्प्रचार करते हुए समाज के मन में विष का बीजारोपण करते रहे , संघ के स्वयंसेवकों द्वारा राजनैतिक दल जनसंघ कि स्थापना के बाद से तो उनका संघ और जनसंघ पर हमला और तेज हो गया। दूसरे कांग्रेस के नेहरू इस बात का खास ख्याल रख रहे थे कि उनके लिए कोई भी राजनैतिक दल चुनौती न बन पाये , आतः उन्होंने धर्मगत, जातिगत सभी समीकरण बैठा ली थी। उन्हें अन्य किसी दल से तो खतरा था ही नहीं ,सिर्फ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों के जनसंघ से खतरा था कि कालान्तर में यही दल कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती बन सकता है। अतः उन्होंने प्रारम्भ से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और जनसंघ पर साम्प्रदायिकता कि मुहर लगानी शुरू कर दी थी। आज भी देश में कांग्रेस और अन्य दल इसी साम्प्रदायिकता के आरोप के सहारे जनसंघ के संवर्धित स्वरुप भा ज पा से चुनाव में मुकाबला करते हैं।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के चतुर्थ सरसंघचालक प्रो रज्जू भैया के बारे में पड़ते हुए एक प्रकरण सामने आया जिससे पता चलता था कि कांग्रेस के बड़े नेता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बारे में कुछ भी नहीं जानते थे फिर भी उसके विरुद्ध विष वमन करते थे। गांधी जी की हत्या के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया था , अन्य स्वयंसेवकों के साथ रज्जू भैया भी जेल में थे , उनकी माता जी उनसे मिलने आती थी , उन्होंने लगभग ५ महीने बाद रज्जू भैया के पिताजी से जो कि चीफ इंजीनियर थे और बहुत व्यस्त रहते थे से कहा कि आप भी एक बार अपने बेटे से जेल में मिल आइये। जब रज्जू भैया के पिता जी उनसे मिलने रेल से जा रहे थे ,शास्त्री जी भी उसी डिब्बे में थे। उन्होंने पूछा कि कहाँ जा रहे हो। रज्जू भैया के पिताजी ने कहा मेरा बड़ा बेटा राजेन्द्र जेल में है ,उसीसे मिलने जा रहा हूँ। शास्त्री जी ने कहा आपका बेटा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का बड़ा कार्यकर्ता है। उसे समझाईये कि संघ जैसे खतरनाक संगठन में न जाये। रज्जू भैया के पिताजी ने थोडा रूककर कहा कि मैं संघ के बारे में तो अधिक नहीं जानता ,परन्तु अपने पुत्र को अच्छी तरह जनता हूँ , अगर मेरा पुत्र उस संस्था में है तो वह संस्था ख़राब नहीं हो सकती। तब शास्त्री जी ने कहा कि अपने पुत्र से कहिये कि संघ के विषय में बताते हुए एक पत्र मुझे लिखे। रज्जू भैया ने शास्त्री जी को पत्र लिखा, यह पत्र बाद में पाञ्चजन्य में भी छापा था। शास्त्री जी ने 2 - 3 दिन बाद ही 5 - 6 स्वयंसेवकों के रिलीज आर्डर भिजवा दिए। इस घटना से स्पष्ट है कि कांग्रेस के बड़े नेता भी संघ के बारे में नहीं जानते थे , जिसे पता चल जाता था वह संघ के प्रति आदर भाव से भर जाता था। संघ कि प्रचार विमुखता इसमें और बाधक बनी। कांग्रेस के नेता समाज को संघ के बारे में उल्टी सीधी बातें बता कर भ्रमित करते रहे , बाद में तो राजनैतिक कारणों से सम्प्रदाय विशेष को अपने से मिलाने के खेल में, यह कांग्रेस के लिए शिगूफा ही बन गया।तब से आज तक कांग्रेस के नेताओं ने संघ के खिलाफ साम्प्रदायिकता की गेंद उछालने में लगे हुए हैं , दूसरे दलों को भी यह बात अपेक्षाकृत सरल लगती है , इसीलिए वह भी इस में शामिल हो जाते हैं। आज भी बहुत से लोग संघ के विषय में न जानते हैं, न समझते हैं। कांग्रेस के नेता अपनी राजनेतिक रोटियां सेंकने के लिए समाज को भ्रम में बनाये रखने में लगे हुए हैं।
2014 का जो चुनाव महंगाई , भृष्टाचार को केन्द्र में रख कर लड़ा जाना चाहिए , वह आज साम्प्रदायिकता पर केंद्रित हो रहा है। कोई भी दल कांग्रेस से महंगाई , भृष्टाचार को केंद्र में न रख कर सवाल नहीं पूछ रहा है। सभी भा ज पा को सांप्रदायिक ठहराने में जी जान से जूटे हैं। और तो और जिनका जन्म ही भृष्टाचार का विरोध करने के लिए हुआ था ,वह भी इसी राग का रियाज करने में जुट गए हैं। यह तो बात चुनाव के समय की है। संघ के स्वयंसेवकों के सामने, समाज की ग़लतफ़हमी दूर करने का यह बहुत बड़ा कार्य है। अब समय भी अधिक नहीं है , कार्य बढ़ने के लिए और देश की प्रगति के लिए यह बहुत ज़रूरी है।
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