अन्ना हज़ारे ने केजरीवाल को आईना दिखा दिया। अन्ना की भ्रष्टाचार विरोधी छवि का फायदा उठाकर ,पहले अन्ना के साथ अपना नाम चमकाने और फिर अन्ना से अलग होकर राजनैतिक दल बनाने वाले केजरीवाल की हरकतों से अन्ना हतप्रभ ही नहीं क्षुब्ध भी थे।सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में विख्यात ,बेदाग छवि के अन्ना राजनीति से कोसों दूर थे। वह ठगा महसूस कर रहे थे जब केजरीवाल अन्ना के नाम का दिल्ली में भ्रम फैलाकर,रात दिन कांग्रेस को कोसने के बाद भी कांग्रेस की ही मदद से दिल्ली का मुख्यमन्त्री बन गया। शासन में आने के बाद केजरीवाल ने कभी बंगले के नाम पर ,कभी सुरक्षा के नाम पर तो कभी आम लोगों के काम करने के नाम पर जिस तरह की उछल कूद मचाई उससे अन्ना की जिंदगी भर में कमाई छवि को नुकसान पहुँच रहा था। दूसरे अन्ना यह भी समझ चुके थे कि केजरीवाल अपने विदेशी आकाओं के इशारे पर, देश के खिलाफ षड्यंत्र कर रहा है। अतः उनके लिए यह ज़रूरी हो गया था कि न सिर्फ केज़रीवाल से दूरी बढ़ाएं बल्कि केजरीवाल का कद बढ़ाने में मदद करके उन्होंने जो पाप किया था उसका प्रायश्चित भी करें। अन्ना के लिए यह बहुत ज़रूरी हो गया था कि केजरीवाल को उसकी औकात बतायें।
अन्ना समझ गए थे कि शीर्ष पर बने रहने के लिए दो रास्ते होते हैं ,पहला लगातार आगे आगे बढ़ते जाना ,दूसरा जो आगे बढ़ रहा है उसकी टांग खींचकर उसे पीछे धकेलना। आजकल विश्व के शीर्षस्थ देश दूसरा रास्ता अपना रहे हैं। चारो और दुनिया के देशो में जो अराजकता तेजी से बढ़ी है उसके पीछे यही कारण है। यह करने के लिए शीर्षस्थ देशों की कार्यप्रणाली भी अजीब है ,वह उसी देश के लोग चुनते हैं जिसकी टाग खींचनी
होती है।शीर्षस्थ देश उस देश के एन जी ओ को धन देकर उनके माध्यम से उसी देश की जनता को विरोध करने के लिए खड़ा करते हैं। एक उद्धरण है सभी जानते हैं कि देश में बिजली की कितनी कमी है ,इसे पूरा करने के लिए हमे तेजी से पॉवर प्लांट लगाने होंगे , यदि हम इस दिशा में तेजी से बढ़ना चाहते हैं तो परमाणु पॉवर प्लांट से बेहतर कोई विकल्प नहीं है। कुछ दिन पहले तमिलनाडु के कुडानकुलम में परमाणु बिजली घर लगाया गया था। शीर्षस्थ देश नहीं चाहते कि हमारा देश जल्दी जल्दी उन्नति करे ,उन्होंने खड़ा कर दिया अपने धन से पलने वाले एन जी ओ को विरोध करने के लिए। आप सभी जानते हैं किस तरह से विरोध हुआ था। दूसरी तरफ 2009 से कांग्रेस पार्टी अपनी पकड़ खोती जा रही थी। जो खेमा मज़बूत होकर उभर रहा था वह उसी अटल बिहारी बाजपेयी के दल से सम्बंधित था जिसने अमेरिका के लाख विरोध के बाद भी पोखरण परमाणु परीक्षण करवा दिया था।यही नहीं अमेरिका के प्रतीबन्धो की परवाह न करते हुए प्रतिबन्ध समाप्त करवाने में उसे घुटने टेकने पर मज़बूर कर दिया था। देश में स्वाभिमान जागने लगा था। बाद में कारगिल युद्ध के समय जब अमेरिका ने भारत और पाकिस्तान के प्रधानमन्त्रियों को समझौते के लिए बुलाया था ,भारत ने मना कर दिया था। अमेरिका उस समय खून के घूंट पीकर रह गया था। इस बार तो मोदी आगे था ,जो हट में अटल जी से कहीं आगे हैऔर अमेरिका ने वीसा मामले में उनसे पहले ही पंगा पाल रखा है।
अतः अमेरिका ने फोर्ड फाउंडेशन के माध्यम से 2005 से 2010 तक करोड़ों रुपया खाने वाले केजरीवाल को तलब किया। तय यह हुआ कि भ्रष्टाचार का शोर मचाकर भीड़ जुटाई जाये। केजरीवाल कि औकात नहीं थी कि लोगों को इकठ्ठा कर सके। तलाश शुरू हुई ,अन्ना जो महाराष्ट्र में काफी काम कर चुके थे, साफसुथरी छवि के गाँधीवादी थे ,उन्हें केजरीवाल ने पटाया ,अन्ना सीधे साधे गांव के निवासी थे झांसे में आ गए।और भी लोगों को जोड़ा गया ,अधिकतर एन जी ओ वाले ही थे। दिल्ली में अनशन शुरू हुआ भीड़ बढ़ी। केजरीवाल खुश हो गया। उसने तो अन्ना का बलिदान करने के योजना बना ली थी ताकि देश में अशांति फ़ैल जाये ,उस समय रामलीला मैदान पर अन्ना के खींचते अनशन के बारे में सोचिये ,अग्निवेश द्वारा किये खुलासे के बारे में सोचिये और बाद के घटनाक्रम जिसमे अन्ना कि परवाह करे बिना राजनैतिक पार्टी बना ली गई ,अन्ना को दूध कि मक्खी की तरह निकाल कर जिस तरह फेंक दिया,गया पूरे घटनाक्रम को एक साथ रखकर सोचिये। योजना तो दूसरी थी। शुरू में अन्ना चुप रहे ,अन्ना के चुप रहने का शातिर केजरीवाल ने फायदा उठाया और दिल्ली के चुनावों में अन्ना के नाम का उपयोग करके आगे बढ़ने में सफलता प्राप्त कर ली।
इसीलिए ज़िन्दगी भर राजनीति से दूर रहने वाले अन्ना ने भी केजरीवाल की तरह ही एक चाल चली.उन्होंने मुख्यमन्त्री केजरीवाल पर कटाक्ष करना शुरू किया , बंगाल की मुख्यमन्त्री ममता बनर्जी कि तारीफ करनी शुरू कर दी ,यही नहीं ममता को हर मामले में केजरीवाल से अच्छा बताया और तो और खुद भी ममता का प्रचार करने के लिए आगे बढे ,मंच साझा किया ,वह सब किया जो उन्होंने ज़िंदगी में कभी नहीं किया था। पूरा देश उन्हें हतप्रभ सा देख रहा था ,कुछ तो यह भी कह रहे थे कि अन्ना सठिया गए हैं , पर अन्ना चुपचाप प्रायश्चित करने में लगे थे। कुछ बोले बिना केजरीवाल की औकात देश को बता रहे थे। देश के लोगों को केजरीवाल की असलियत दिखा रहे थे। सबने देखा होगा कि इन्ही दिनों केजरीवाल का विरोध ही नहीं बढ़ा बल्कि दिल्ली के लोग भी तरह तरह की आलोचनाएं करने लगे। ममता की दिल्ली रैली तक अन्ना ने यह सब चलने दिया ,उसी दिल्ली तक जहाँ उन्होंने देश को समझाया था कि वह तो सामाजिक कार्यकर्ता हें ,राजनीति से उनका कोई लेना देना नहीं है।जिन दिल्ली के नागरिकों को केजरीवाल ने उनके नाम पर गुमराह किया था , उन्हें इशारों इशारों में समझा दिया कि केजरीवाल नौटंकी है ,उससे उनका कोई लेना देना नहीं है, वापस रालेगाव सिद्धी लौट गए अपने उसी पुराने सामाजिक परिवेश में।अब पूरा देश समझ चुका है ,सामाजिक कार्यकर्ताओं को धोखा देने वाला मदांध केजरीवाल कितनी भी उठा पटक कर ले. देश कि जनता समझ गयी है। अन्ना ने अपना बदला ले लिया है। 16 मई को देश की जनता इस सामाजिक जरासन्ध का वध करने वाली है , केजरीवाल और उसकी आप पार्टी दोनों का विसर्जन होना है।
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