Sunday, 5 February 2017

ट्रेन में यात्रियों से रोज 4 करोड़ 60 लाख लूट रहे पैन्ट्री वाले

एक अनुमान के अनुसार रेल में प्रतिदिन 2.3 करोड़ यात्री सफर करते हैं। इन यात्रियों को. अधिकृत वेटरों द्वारा खाना सप्लाई करने में अबाधित लूट का सिलसिला कई वर्षों से चल रहा है। इस लूट में वेटर, पैन्ट्री मैनेजर, कैटरिंग ठेकेदार व रेल अधिकारी सभी सम्मिलित हैं। लगातार लगातार​ सघन प्रवास के बाद भी हमारा ध्यान इस तरफ इसलिए नहीं जा सका क्योंकि हमारे भोजन का प्रबंध हमारे कार्यकर्ता करते हैं, जो बीच सफर में भी स्टेशन पर आकर हमें भोजन दे जाते हैं। ट्रेन यात्रियों की भोजन में होने वाली लूट की तरफ हमारा ध्यान हमारे एक मित्र ने खींचा, जिसने इस लूट के खिलाफ आवाज उठाई। हम उसकी आवाज को आगे बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं। आगे की कहानी मै अपने मित्र के ही शब्दों में बताता हूं।


अपने कार्य की प्रकृति के कारण मुझे अक्सर सफर करना पड़ता है। ट्रेन में मिलने वाले खाने को लेकर मैं अक्सर आशंकित रहता था कि कहीं कुछ गलत हो रहा है। पिछले सप्ताह मैं विशाखापट्टनम से हावड़ा का सफर यशवंतपुर हावड़ा एक्सप्रेस द्वारा कर रहा था। मैने वेटर से एक शाकाहारी खाना लाने के लिये कहा। कीमत पूछने पर वेटर ने मुझे ₹90 बताया। अब मैं खाने की सही कीमत जानने के प्रयास में लगा। मैं हैरान रह गया जब मैंने IRCTC Help: IRCTC Latest Food Menu Rates, नाम की वेबसाइट खोली। ट्रेन में वेटर यात्रियों को जो शाकाहारी खाना ₹90 व मांसाहारी भोजन ₹100 में बेच रहा था, वेबसाइट पर उसकी कीमत क्रमश: ₹50 व ₹55 ही लिखी हुई थी। इसके अतिरिक्त एक अन्य विकल्प स्टैन्डर्ड थाली मील के रूप में ₹35 शाकाहारी व ₹40 मांसाहारी के लिए भी मौजूद था। अपनी लूट को व्यापक बनाने के लिए पैन्ट्री वाले इस विकल्प को हमेशा नदारद ही रखते हैं।

जब वेटर पैसे लेने आया और उसने मुझसे ₹90 मांगे तो मैंने उससे रेट कार्ड दिखाने को कहा। वेटर ने रेट कार्ड जैसी किसी वस्तु के अपने पास होने से इनकार किया। जब मैंने उसे वेबसाइट पर लिखे रेट पढ़ाये तो वह मुझसे ₹50 लेने के लिए तैयार नहीं गया और प्रार्थना करने लगा कि मैं यह बात किसी. और से न कहूं। मैं इतने अधिक गुस्से में था कि 13 बोगियों वाली ट्रेन के सभी डिब्बों में, खाना लेने वाले सभी यात्रियों को यह बात बता आया। मैं पैन्ट्री कार में भी गया। वहां जब मैंने मैनेजर से रेटकार्ड मांगा तो पहले तो वह टालमटोल करने लगा, फिर बोला रेट कार्ड खो गया है, वह जल्दी ही दूसरा ले आयेगा। पैन्ट्री का मैनेजर भी वेटर की तरह ही, लगभग वही जवाब दे रहा था,. जैसे यह पहले से ही तय था कि इस तरह की स्थिति आने पर किस को क्या कहना और करना है। लगभग यही स्थिति सभी ट्रेनों की पैन्ट्री कारों व जिन ट्रेनों में पैन्ट्री नहीं होती, स्टेशनों से खाना सप्लाई किया जाता है, वहां की है।

पैन्ट्री का मैनेजर हर सम्भव कोशिश कर रहा था कि मैं कम्पलेन्ट बुक में शिकायत न लिखूं। अत: काफी हीला हवाली और आधा घंटा लगाने के बाद उसने कम्पलेन्ट बुक मुझे यह कहते हुये दी कि इसको कौन देखता है और उनके नीचे से ऊपर तक सम्बन्ध हैं। यही नहीं उसने मेरी शिकायत शिकायत​ पर यह टिप्पणी भी लिखी कि यह यात्री इरादतन जब भी सफर करता है शिकायत करता है तथा इससे अमुक अमुक बिल नम्बर के द्वारा ₹50 ही लिए गये हैं।

ट्रेन में रोजाना 2.3 करोड़ सफर करने वाले यात्रियों में यदि 5% यात्री भी खाना लेते हैं, तो यह संख्या 11,50,000 होती है। ₹40 प्रति यात्री अधिक वसूलने पर रोजाना 4 करोड़ 60 लाख रुपये यात्रियों से लूट लिए जाते हैं। यह स्थिति सभी ट्रेनों की पैन्ट्री कारों व जिन ट्रेनों में पैन्ट्री नहीं होती, स्टेशनों से खाना सप्लाई किया जाता है, वहां की है। रेलों की खानपान सेवा में यह अपराध संगठित रूप से चल रहा है। रेल मंत्रालय इस तरफ आंख बन्द कर बैठा है।

अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत रेल मंत्रालय से मांग करती है कि इस लूट को तुरंत रोका जाये। रेल स्टेशनों व ट्रेनों में जगह जगह खान-पान सेवा के रेट कार्ड बोर्ड लगाकर इसे प्रचारित किया जाये। रेल पैन्ट्रियों व स्टेशनों पर भोजन के दोनों विकल्प पर्याप्त मात्रा में यात्रियों को उपलब्ध कराये जायें। ग्राहक पंचायत को अनेकों यात्रियों से शिकायत मिलती है कि वेटर मांगने पर भी बिल नहीं देते। अत: पारदर्शी व्यवहार के लिए यात्रियों को बिल देना अनिवार्य किया जाये। यात्री भी रेलों में कोई भी खाद्य पदार्थ खरीदते समय रेट कार्ड दिखाने का आग्रह करें तथा बिल मांगें। अपनी शिकायत लिखने में किसी प्रकार की कोताही न करें।

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