Saturday 12 April 2014

जब मुलायम के गुरु लोहिया संघ की मदद से चुनाव लड़े

डा राममनोहर लोहिया  का खुद को चेला  बताकर ,समाजवादी होने का ढोंग रचाकर ,परिवारवाद की राजनीति करने वाले मुलायम सिंह का न तो लोहिया  से कुछ लेना देना है ,न ही समाजवाद से। हमेशा मुलायम उसी कांग्रेस की गोद में बैठने को तैयार रहते हैं ,जिसके विरुद्ध उनके गुरु डा राममनोहर लोहिया कदम कदम पर लड़ने को तैयार रहते थे। एक तरफ जहाँ डा राममनोहर लोहिया कांग्रेस के विरोध में सभी विरोधी दलों को एक साथ लेने के लिए तत्पर रहते थे ,मुलायम उनके साथ सिर्फ अपना मतलब सिद्ध करने के लिए जाते हैं। ऐसा नहीं कि कांग्रेस में अब कोई बहुत बड़ा परिवर्तन आ गया है , वह तो पहले से अधिक स्वार्थी और भृष्ट हो गई है.अपने साथ साथ उसने मुलायम को भी भृष्ट कर दिए है और समाजवाद को भी।

60 के दशक में विभिन्न प्रदेशों में संविद सरकारें देश में पहली बार बनी थीं। इसके पीछे की लोहिया की भूमिका को मुलायम भूल सकते हैं देश नहीं। उस समय डा राममनोहर लोहिया  ने किन राजनैतिक दलों को साथ लिया था उसे जानबूझ कर मुलायम इसलिए नहीं याद करना चाहते क्योंकि इससे उनके परिवार की राजनैतिक महत्वकाँक्षाऐं प्रभावित होती हैं यह सभी बातें उनके दिमाग में इस तरह घुस गई हैं की वह देश समाज सभी को भूलकर अनर्गल प्रलाप करने लगे हैं ,सामाजिक विखंडन करने में लग गए हैं।

संघ और बी जे पी को पानी पानी पी पी कर कोसने वाले मुलायम के गुरु राममनोहर लोहिया राष्ट्रीय स्वयम सेवक संघ की सहायता से ही कांग्रेस के नेहरू को चुनौती देने में सक्षम हुए वह संघ की ताकत पर ही चुनाव लड़ने को तैयार हुए। बात 1962 चुनाव की है ,लोहिया प्रयाग प्रभुदत्त ब्रह्मचारी जी से यह अनुरोध करने के लिए आये थे कि ब्रह्मचारी जी नेहरू जके खिलाफ प्रयाग से चुनाव लड़ें ,ब्रह्मचारी जी ने कहा कि 1952 में वह चुनाव दूसरे प्रश्नों के कारण लड़े थे अभी जो प्रश्न हैं उन पर आप अच्छा काम कर सकते हैं। यही नहीं ब्रह्मचारी जी ने लोहिया को प्रयाग से नेहरू के खिलाफ चुनाव लड़ने को कहा। लोहिया का कहना था कि प्रयाग सीट पर उनका बहुत कम काम है अतः वह कैसे लड़ सकते हैं।  इस पर ब्रह्मचारी जी ने उन्हें प्रयाग के जिस व्यक्ति से मिलने को कहा वह थे राष्ट्रीय स्वयम सेवक संघ के चतुर्थ सरसंघचालक श्री रज्जु भैया जी ,लोहिया रज्जु भैया जी से मिले जो उन दिनों वहीँ पर संघ कार्य करते थे , रज्जूभैया जी ने लोहिया को सभी बातें विस्तार से समझाईं कि ब्रह्मचारी जी का चुनाव कैसे लड़ा गया ,क्या मुद्दे थे ,कैसे वोट मिले ,क्या बातें सामने आयीं , नेहरू को कैसे अच्छी टक्कर दी जा सकती है आदि आदि। लोहिया का कहना था कि उस क्षेत्र में उनकी 2 ,3 स्थानों पर भी कमेटियां नहीं हैं ,जनसंघ से भी कभी कभी ही बात होती है , इस स्थिति में काम कौन करेगा। रज्जू भैया जी ने उन्हें समझाया की संघ की उस क्षेत्र में 60 शाखाएं हैं अतः संपर्क का लाभ उठाया जा सकता है ,यदि आप खड़े होते हैं तो उन लोगों के लिए काम करने में कोई कठिनाई नहीं होगी। रज्जु भैया जी की इस बात से लोहिया जी खुश हो गए और कहने लगे यदि 60 जगह पर आपका संपर्क है तो ठीक है सभी जगह कह देना। लोहिया जी प्रयाग से राष्ट्रीय स्वयम सेवक संघ की सहायता से चुनाव लड़े , अच्छा लड़े। नेहरू जो उन दिनों सबकी जमानत जब्त करवा देते थे लोहिया की जमानत जब्त नहीं करा पाये।

आज मुलायम के पास न तो समाजवाद का सिद्धान्त है न ही कोई विचारधारा। एक भीड़ है जिसके सहारे वह वह तमाम हथकंडे अपनाकर सत्ता में रहना चाहते हैं। जहाँ विचारधारा समाप्त हो जाती है ,देश समाज के विषयों का महत्व ख़त्म हो जाता है। इसका स्पष्ट चित्र देश के सामने है ,इस तरह के दल और व्यक्ति का क्या करना चाहिए सब जानते हैं विशेष रूप से आज का प्रबुद्ध युवा मतदाता। 

Wednesday 9 April 2014

जीवनावश्यक वस्तुओं कि कीमतें स्थिर रखी जाएँगी।

अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत ने भा ज पा सहित सभी राजनैतिक दलों को ग्राहकों की मांगों से सम्बन्धित एजेंडा घोषणापत्र में शामिल करने को भेजा था। सबसे अहम् मांग जीवनावश्यक वस्तुओं की कीमतों के बारे में थी।  ग्राहकों ने बीते 10 सालों की सरकार के कार्यकाल में भुगता है ,हर दूसरे दिन कीमतें बढ़  जाती थी , डीजल ,पेट्रोल और रसोई गैस ने तो हद ही कर दी थी। मुख्य मांग थी बजट से बजट तक जीवनावश्यक वस्तुओं की कीमतें स्थिर रखी जाएँ। भा ज पा ने अपने घोषणा पत्र में ग्राहक पंचायत की इस मांग को प्रमुखता दी है। वादा किया है कि जीवनावश्यक वस्तुओं कि कीमतें स्थिर रखी जाएँगी।


ग्राहक पंचायत भा ज पा के घोषणा पत्र का स्वागत करती है।हम चुनाव में भा ज पा का समर्थन करने कि सभी ग्राहकों से अपील करते हैं तथा यह भी विश्वास दिलाते हैं कि  ग्राहक पंचायत यहाँ रुकने वाली नहीं है। दिन रात सर्कार पर निगाह रखेगी और ग्राहकों से किये वादों को पूरा करने के लिए दबाव बनाएगी।

Thursday 3 April 2014

कांग्रेस जानबूझकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बारे में ग़लतफ़हमी फैला रही है

स्वतन्त्रता पूर्व से ही कांग्रेस नेता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ  प्रति विद्वेष पाले हुए थे। यद्यपि उन्हें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बारे  में तनिक भी जानकारी नहीं थी। न जाने किन राजनैतिक कारणों से उनमें यह ग़लतफ़हमी थी। जबकि संघ के कई पुराने स्वयंसेवक आज़ादी से पूर्व
कांग्रेस के साथ मिलकर स्वतन्त्रता की लड़ाई में लगे हुए थे। संघ की प्रारम्भ से ही प्रचार विमुख रहने की आदत रही है , जिसके कारण संघ ने कभी समाज को अपने बारे में अधिक कुछ बताया नहीं और कांग्रेस के नेता दुस्प्रचार करते हुए समाज के मन में विष का बीजारोपण करते रहे , संघ के स्वयंसेवकों द्वारा राजनैतिक दल जनसंघ कि स्थापना के बाद से तो उनका संघ और जनसंघ पर हमला और तेज हो गया। दूसरे कांग्रेस के नेहरू इस बात का खास ख्याल रख रहे थे कि उनके लिए कोई भी राजनैतिक दल चुनौती न बन पाये , आतः उन्होंने धर्मगत, जातिगत सभी समीकरण बैठा ली थी। उन्हें अन्य किसी दल से तो खतरा था ही नहीं ,सिर्फ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों के जनसंघ से खतरा था कि कालान्तर में यही दल कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती बन सकता है। अतः उन्होंने प्रारम्भ से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और जनसंघ पर साम्प्रदायिकता कि मुहर लगानी शुरू कर दी थी। आज भी देश में कांग्रेस और अन्य दल इसी साम्प्रदायिकता के आरोप के सहारे जनसंघ के संवर्धित स्वरुप भा ज पा से चुनाव में मुकाबला करते हैं। 

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के चतुर्थ सरसंघचालक प्रो रज्जू भैया के बारे में पड़ते हुए एक प्रकरण सामने आया जिससे पता चलता था कि कांग्रेस के बड़े नेता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बारे में कुछ भी नहीं जानते थे फिर भी उसके विरुद्ध विष वमन करते थे। गांधी जी की हत्या के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया था , अन्य स्वयंसेवकों के साथ रज्जू भैया भी जेल में थे , उनकी माता जी उनसे मिलने आती थी , उन्होंने लगभग ५ महीने बाद रज्जू भैया के पिताजी से जो कि चीफ इंजीनियर थे और बहुत व्यस्त रहते थे से कहा कि आप भी एक बार अपने बेटे से जेल में मिल आइये। जब रज्जू भैया के पिता जी उनसे मिलने रेल से जा रहे थे ,शास्त्री जी भी उसी डिब्बे में थे। उन्होंने पूछा कि कहाँ जा रहे हो। रज्जू भैया के पिताजी ने कहा मेरा बड़ा बेटा राजेन्द्र जेल में है ,उसीसे मिलने जा रहा हूँ। शास्त्री जी ने कहा आपका बेटा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का बड़ा कार्यकर्ता  है। उसे समझाईये कि संघ जैसे खतरनाक संगठन में न जाये। रज्जू भैया के पिताजी ने थोडा रूककर कहा कि मैं संघ के बारे में तो अधिक नहीं जानता ,परन्तु अपने पुत्र को अच्छी तरह जनता हूँ , अगर मेरा पुत्र उस संस्था में है तो वह संस्था ख़राब नहीं हो सकती। तब शास्त्री जी ने कहा कि अपने पुत्र से कहिये कि संघ के विषय में बताते हुए एक पत्र मुझे लिखे।  रज्जू भैया ने शास्त्री जी को पत्र लिखा, यह पत्र बाद में पाञ्चजन्य में भी छापा था। शास्त्री जी ने 2 - 3 दिन बाद ही 5 - 6 स्वयंसेवकों के रिलीज आर्डर भिजवा दिए। इस घटना से स्पष्ट है कि कांग्रेस के बड़े नेता भी संघ के बारे में नहीं जानते थे , जिसे पता चल जाता था वह संघ के प्रति आदर भाव से भर जाता था। संघ कि प्रचार विमुखता इसमें और बाधक बनी। कांग्रेस के नेता समाज को संघ के बारे में उल्टी सीधी बातें बता कर भ्रमित करते रहे , बाद में तो राजनैतिक कारणों से सम्प्रदाय विशेष को अपने से मिलाने के खेल में,  यह कांग्रेस के लिए शिगूफा ही बन गया।तब से आज तक कांग्रेस के नेताओं ने संघ के खिलाफ साम्प्रदायिकता की गेंद उछालने में लगे हुए हैं , दूसरे दलों को भी यह बात अपेक्षाकृत सरल लगती है , इसीलिए वह भी इस में शामिल हो जाते हैं।  आज भी बहुत से लोग संघ के विषय में न जानते हैं, न समझते हैं। कांग्रेस के नेता अपनी राजनेतिक रोटियां सेंकने के लिए समाज को भ्रम में बनाये रखने में लगे हुए हैं।  

2014 का जो चुनाव महंगाई , भृष्टाचार को केन्द्र में रख कर लड़ा जाना चाहिए , वह आज साम्प्रदायिकता पर केंद्रित हो रहा है। कोई भी दल कांग्रेस से महंगाई , भृष्टाचार को केंद्र में न रख कर सवाल नहीं पूछ रहा है।  सभी भा ज पा को सांप्रदायिक ठहराने में जी जान से जूटे  हैं। और तो और जिनका जन्म ही भृष्टाचार का विरोध करने के लिए हुआ था ,वह भी इसी राग का रियाज करने में जुट गए हैं। यह तो बात चुनाव के समय की  है। संघ के स्वयंसेवकों के सामने, समाज की ग़लतफ़हमी दूर करने का यह बहुत बड़ा कार्य है।  अब समय भी अधिक नहीं है , कार्य बढ़ने के लिए और देश की प्रगति के लिए यह बहुत ज़रूरी है। 

Wednesday 2 April 2014

अन्ना ने केजरीवाल को उसकी औकात बता दी ,अपने अपमान का बदला ले लिया

अन्ना हज़ारे ने केजरीवाल को आईना दिखा दिया। अन्ना की भ्रष्टाचार विरोधी छवि का फायदा उठाकर ,पहले अन्ना  के साथ अपना नाम चमकाने और फिर अन्ना से अलग होकर राजनैतिक दल बनाने वाले केजरीवाल की हरकतों से अन्ना हतप्रभ ही नहीं क्षुब्ध भी थे।सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में विख्यात ,बेदाग छवि के अन्ना राजनीति से कोसों दूर थे। वह ठगा महसूस कर रहे थे जब केजरीवाल अन्ना  के  नाम का दिल्ली में भ्रम फैलाकर,रात दिन कांग्रेस को कोसने के बाद भी कांग्रेस की  ही मदद से दिल्ली का मुख्यमन्त्री  बन गया। शासन में आने के बाद केजरीवाल ने कभी बंगले के नाम पर ,कभी सुरक्षा के नाम पर तो कभी आम लोगों के काम करने के नाम पर जिस तरह की उछल कूद मचाई उससे अन्ना की जिंदगी भर में कमाई छवि को नुकसान पहुँच रहा था। दूसरे अन्ना यह भी समझ चुके थे कि केजरीवाल अपने विदेशी आकाओं के इशारे पर, देश के खिलाफ षड्यंत्र कर रहा है।  अतः उनके लिए यह ज़रूरी हो गया था कि न सिर्फ केज़रीवाल से दूरी बढ़ाएं बल्कि  केजरीवाल का कद बढ़ाने में मदद करके उन्होंने जो पाप किया था उसका प्रायश्चित भी करें। अन्ना के लिए यह बहुत ज़रूरी हो गया था कि केजरीवाल को उसकी औकात बतायें।

अन्ना समझ गए थे कि शीर्ष पर बने रहने के लिए दो रास्ते होते हैं ,पहला लगातार आगे आगे बढ़ते जाना ,दूसरा जो आगे बढ़ रहा है उसकी टांग खींचकर उसे पीछे धकेलना। आजकल विश्व के शीर्षस्थ देश दूसरा रास्ता अपना रहे हैं। चारो और दुनिया के देशो में जो अराजकता तेजी से बढ़ी है उसके पीछे यही कारण है। यह करने के लिए शीर्षस्थ देशों की कार्यप्रणाली भी अजीब है ,वह उसी देश के लोग चुनते हैं जिसकी टाग खींचनी
होती है।शीर्षस्थ देश उस देश के एन जी ओ को धन देकर उनके माध्यम से उसी देश की जनता को विरोध करने के लिए खड़ा करते हैं।  एक उद्धरण है सभी  जानते हैं कि देश में बिजली की कितनी कमी है ,इसे पूरा करने के लिए हमे तेजी से पॉवर प्लांट लगाने होंगे , यदि हम इस दिशा में तेजी से बढ़ना चाहते हैं तो परमाणु पॉवर प्लांट से बेहतर कोई विकल्प नहीं है। कुछ दिन पहले तमिलनाडु के कुडानकुलम में परमाणु बिजली घर लगाया गया था। शीर्षस्थ देश नहीं चाहते कि हमारा देश जल्दी जल्दी उन्नति करे ,उन्होंने खड़ा कर दिया अपने धन से पलने वाले एन जी ओ को विरोध करने के लिए। आप सभी जानते हैं किस तरह से विरोध हुआ था। दूसरी तरफ 2009 से कांग्रेस पार्टी अपनी पकड़ खोती जा रही थी। जो खेमा मज़बूत होकर उभर रहा था वह उसी अटल बिहारी बाजपेयी के दल से सम्बंधित था जिसने अमेरिका के लाख विरोध के बाद भी पोखरण परमाणु परीक्षण करवा दिया था।यही नहीं अमेरिका के प्रतीबन्धो की परवाह न करते हुए प्रतिबन्ध समाप्त करवाने में उसे घुटने टेकने पर मज़बूर कर दिया था। देश में स्वाभिमान जागने लगा था। बाद में कारगिल युद्ध के समय जब अमेरिका ने भारत और पाकिस्तान के प्रधानमन्त्रियों को समझौते के लिए बुलाया था ,भारत ने मना कर दिया था। अमेरिका उस समय खून के घूंट  पीकर रह गया था। इस बार तो मोदी आगे था ,जो हट में अटल जी से कहीं आगे हैऔर अमेरिका ने वीसा मामले में उनसे पहले ही पंगा पाल रखा है।

 अतः अमेरिका ने फोर्ड फाउंडेशन के माध्यम से 2005  से 2010 तक करोड़ों रुपया खाने वाले केजरीवाल को तलब किया। तय यह हुआ कि भ्रष्टाचार का शोर मचाकर भीड़ जुटाई जाये। केजरीवाल कि औकात नहीं थी कि लोगों को इकठ्ठा कर सके। तलाश शुरू हुई ,अन्ना जो महाराष्ट्र में काफी काम कर चुके थे, साफसुथरी छवि के गाँधीवादी थे ,उन्हें केजरीवाल ने पटाया ,अन्ना सीधे साधे गांव  के  निवासी थे झांसे में आ गए।और भी लोगों को जोड़ा गया ,अधिकतर एन जी ओ वाले ही थे।  दिल्ली में अनशन शुरू हुआ भीड़ बढ़ी। केजरीवाल खुश हो गया। उसने तो अन्ना का बलिदान करने के योजना बना ली थी ताकि देश में अशांति फ़ैल जाये ,उस समय रामलीला मैदान पर अन्ना के खींचते अनशन के बारे में सोचिये ,अग्निवेश द्वारा किये खुलासे के बारे में सोचिये और बाद के घटनाक्रम जिसमे अन्ना कि परवाह करे बिना राजनैतिक पार्टी बना ली गई ,अन्ना को दूध कि मक्खी की तरह निकाल कर जिस तरह फेंक दिया,गया पूरे  घटनाक्रम को एक साथ रखकर सोचिये। योजना तो दूसरी थी। शुरू में अन्ना चुप रहे ,अन्ना के चुप रहने का शातिर केजरीवाल ने फायदा उठाया और दिल्ली के चुनावों में अन्ना के नाम का उपयोग करके आगे बढ़ने में सफलता प्राप्त कर ली।

इसीलिए ज़िन्दगी भर राजनीति से दूर रहने वाले अन्ना ने भी केजरीवाल की तरह ही एक चाल चली.उन्होंने मुख्यमन्त्री केजरीवाल पर  कटाक्ष करना शुरू किया , बंगाल की मुख्यमन्त्री ममता बनर्जी कि तारीफ करनी  शुरू कर दी ,यही नहीं ममता को हर मामले में केजरीवाल से अच्छा बताया और तो और खुद भी ममता का प्रचार करने के लिए आगे बढे ,मंच साझा किया ,वह सब किया जो उन्होंने ज़िंदगी में कभी नहीं किया था। पूरा देश उन्हें हतप्रभ सा देख रहा था ,कुछ तो यह भी कह रहे थे कि अन्ना सठिया गए हैं , पर अन्ना चुपचाप प्रायश्चित करने में लगे थे। कुछ बोले बिना केजरीवाल की औकात देश को बता रहे थे। देश के लोगों  को केजरीवाल की असलियत दिखा रहे थे। सबने देखा होगा कि इन्ही दिनों केजरीवाल का विरोध ही नहीं बढ़ा बल्कि दिल्ली के लोग भी तरह तरह की आलोचनाएं करने लगे। ममता की दिल्ली रैली तक अन्ना ने यह सब चलने दिया ,उसी दिल्ली तक जहाँ उन्होंने देश को समझाया था कि वह तो सामाजिक कार्यकर्ता हें  ,राजनीति से उनका कोई लेना देना नहीं है।जिन  दिल्ली के नागरिकों को केजरीवाल ने उनके नाम पर गुमराह किया था , उन्हें इशारों इशारों में समझा दिया कि केजरीवाल नौटंकी है ,उससे उनका कोई लेना देना नहीं है, वापस रालेगाव सिद्धी लौट गए अपने उसी पुराने सामाजिक परिवेश में।अब पूरा देश समझ चुका है ,सामाजिक कार्यकर्ताओं को धोखा देने वाला मदांध केजरीवाल कितनी भी उठा पटक कर ले. देश कि जनता समझ गयी है। अन्ना  ने अपना बदला ले लिया है। 16 मई को देश की जनता इस सामाजिक जरासन्ध का वध करने वाली है , केजरीवाल और उसकी आप पार्टी दोनों का विसर्जन होना है। 


Tuesday 1 April 2014

मिनिमम बैलेंस नहीं और सभी शुल्क भी ख़त्म करे रिज़र्व बैंक

बैंक उन ग्राहकों से पेनल्टी वसूल न करें जो अपने खातों में मिनिमम बेलेन्स सुचारु रूप से नहीं रख पाते हैं , रिजर्व बैंक का आज जारी किया गया यह निर्देश स्वागत योग्य है। अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत रिज़र्व बैंक द्वारा उठाये इस कदम के लिए उन्हें धन्यवाद देती है, बहुत से लोग जो देश को जानते पहचानते नहीं हैं ,इस बात को नहीं समझ पायेंगे कि देश का सामाजिक आर्थिक जीवन किस स्तर का है। विभिन्न आर्थिक गतिविधियों में उनका सहभाग रहे , इसके लिए क्या आवश्यक है। आजकल बैंक जिस तरह का आचरण अपना रहे हैं, उसे देखकर लगता है कि हम एक विकसित अर्थव्यस्था में रह रहे हैं। हमारे देश के ग्राहक खुशहाल हैं तथा किसी भी तरह का आर्थिक बोझ उठाने में सक्षम है। अतः वह विभिन्न सेवाओं के नाम पर तरह तरह के सेवा शुल्क ग्राहकों से वसूलने में लगे हैं। बैंक एक तथ्य को पूरी तरह नकार रहे  है कि सरकार चाहती है कि अधिकतर  आर्थिक लेन देन बैंकों के माध्यम से हों ताकि टैक्स की चोरी को रोका जा सके, काले धन पर काबू पाया जा सके। इसके लिए जरुरी है कि देश के बहुसंख्य लोग बैंकों के माध्यम से ही अपना आर्थिक व्यवहार करें, जिसके लिए आवश्यक है कि ग्राहकों को बैंक व्यवहार के लिए प्रोत्साहित किया जाये , परन्तु बैंकों का आचरण इसके ठीक विपरीत है, जब भी कोई साधारण ग्राहक बैंक व्यवहार के लिए जाता है, बैंक अपनी विभिन्न सेवाओं के माध्यम से उससे इतने पैसे वसूल लेते हैं कि ग्राहक बैंक को दूर से ही नमस्कार करने में अपनी बेहतरी समझता है। रिज़र्व बैंक को ऐसे समय में ग्राहक कि मदद करनी चाहिए, परन्तु वह भी अपने हाथ खड़े कर देता है। ग्राहक क्या करे ,इस तरह से देश का काले धन का कारोबार किस तरह रुकेगा।  अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत ने इस सम्बन्ध में एक पत्र रिज़र्व बैंक के गवर्नर को लिखा था ,परन्तु उनके कार्यालय ने विषय कि गम्भीरता को दर किनार करते हुए ,ग्राहक पंचायत को अपना रुटीन उत्तर भेज दिया।रिज़र्व बैंकों को ग्राहक पंचायत के प्रतिनिधियों को चर्चा के लिए बुलाना चाहिए, उनसे चर्चा करके बैंकों कि शुल्क नीति में बदलाव करना चाहिए था।  

देश के सामाजिक आर्थिक पक्ष को थोड़ी देर के लिए छोड़ भी दें , हालाँकि रिज़र्व बैंक का गठन इसी पक्ष के हित लाभ की  रक्षा करने के लिए हुआ है , तो भी बैंक व्यवहार एक द्विपक्षीय करार है जो बैंक तथा ग्राहक के बीच तब होता है जब ग्राहक बैंक में अपना खाता खोलता है।  सारी  शर्तें उसी वक्त तय हो जाती हैं , यदि उन शर्तों में किसी तरह का बदलाव लाना है तो यह बदलाव दोनों पक्षों कि सहमति से तय करके होना चाहिए। रिज़र्व बैंक को इसमें मध्यस्थ की भूमिका निभानी चाहिए ,परन्तु देश में हो उल्टा रहा है, रिज़र्व बैंक ने इस व्यवहार से हाथ धो लिए हैं, सभी बैंक ग्राहक को अपनी जागीर समझते हैं , जब जिस तरह का मन में आता है ग्राहक के खाते से पैसे काटने लगते हैं।  रिज़र्व बैंक को बैंकों द्वारा वसूले जाने वाले  सभी तरह के शुल्कों पर तुरंत प्रभाव से रोक लगनी चाहिए , पहले वह इन शुल्कों के विषय में ग्राहकों के प्रतिनिधि अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत से शुल्कों के विषय में चर्चा करें , सहमति बनने  कि दशा में ही शुल्कों को लागू किया जाये , यह ग्राहकों का सवैधानिक अधिकार है।     

ग्राहक पंचायत इस विषय को लेकर गम्भीर है, रिज़र्व बैंक से निवेदन करता है कि विषय की गम्भीरता को समझे।  विशेषकर इस संदर्भ में कि सरकार् देश के गरीब ग्राहकों को भी बैंक खाते खुलवाने के लिए मज़बूर कर रही है ,ताकि वह बैंकों के माध्यम से विभिन्न सरकारी योजनाओं के पैसे ग्राहकों के खातों तक पहुंचा सके। खुलने वाले बैंक खाते गरीब ग्राहकों के लिए सजा बनते जा रहे हैं। बैंकों द्वारा वसूले जाने वाले शुल्क अधिक, अतार्किक ,अनैतिक तथा गैरकानूनी हैं। ग्राहक पंचायत इस अन्याय के विरुद्ध ग्राहकों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए , विभिन्न प्लेटफॉर्मों पर अपनी लड़ाई लड़ने का विकल्प खुला रखती है।