Thursday 25 August 2016

गडकरी जी !! यह कैसा संशोधन

9 अगस्त 2016 को परिवहन मन्त्री नितिन गडकरी ने लोकसभा में मोटर वाहन बिल 2016 प्रस्तुत किया। सम्भवतः मोटर कानून बनने के बाद यह सबसे बड़ा संशोधन विधेयक है। जिसमें अनेकों नवीन धाराओं को जोड़ा गया है। कहा यह गया है कि देश में सडक पर बढती मौतों और बेलगाम मोटर वाहनों को नियन्त्रित करने के लिये यह संशोधन विधेयक लाया गया है। बात ठीक भी है, बढती वाहन संख्या, नई तकनीक, बेहतर सड़कें, बढ़ती स्पीड और बेलगाम मोटर चालकों पर लगाम कसने की जरूरत भी थी। परन्तु यह क्या, सिर्फ अधिक अर्थदंड देने से स्थितियां सुधर जायेंगी। मोटर वाहन व्यवस्था में क्या आमूलचूल परिवर्तन की जरूरत नहीं थी। लोगों को बचपन से सड़क सम्बन्धित व्यवहार सिखाने से लेकर, लाईसेन्स, रजिस्ट्रेशन और पुलिस प्रक्रिया तक। मै नितिन गडकरी अध्यनशील व्यक्तित्व है, मै उनको व्यक्तिगत स्तर पर जानता हूं। अतः कुछ बातें पच नहीं रही।

सड़क पर वाहन सम्बन्धित अपराधों के दंड मे जबरदस्त बढोत्तरी की गई है। अब दंड 500रू से शुरू होकर 10,000रू तक होगा। अपराध के लिये दंड तो ठीक है, परन्तु देश के पुलिस प्रशासन की जो स्थिति है, उसमे अभी तो यह वसूली योजना ही अधिक लगती है जब तक दूसरे पक्ष की भी ओवरहालिंग न की जाये। नया नियमन लागू करने से पहले, इ्स स्थिति को स्पष्ट करना ग्राहकों और सरकार दोनो के हित मे होगा।

हिट एन्ड रन से सम्बन्धित संशोधन (धारा 161) स्वागत योग्य है, जिसमें मृत्यु की स्थिति में अनुदान 25000रू से बढ़ाकर 2 लाख तथा गम्भीर घायल अवस्था में 12500 रू से बढ़ाकर 500000 रू कर दिया गया है। इससे निश्चित तौर पर प्रभावितों को मदद मिलेगी।

मोटर कानून मे नेक आदमियों से सम्बन्धित नवीन धारा 134A जोड़ना भी सराहनीय कदम है। अब किसी को भी सड़क पर दुर्घटना मे घायल व्यक्ति की मदद कर उसे अस्पताल पंहुचाने से गुरेज नहीं होगा, क्योंकि ऐसे व्यक्ति पर किसी भी प्रकार की दीवानी या फौजदारी कार्यवाही नहीं की जा सकेगी।

गोल्डन आवर (महत्वपूर्ण समय) से सम्बन्धित नई धारा 12A भी स्वगत योग्य कदम है, जिसके लिये सरकार नियमन बाद मे करेगी। यह धारा दुर्घटना के बाद तुरन्त ईलाज के सम्बन्ध मे है, ताकि प्रभावित की जान बचाई जा सके। यह सच है कि दुर्घटना मे घायल की जान बचाने के लिये, पहला घंटा बहुत अधिक महत्वपूर्ण होता है। परन्तु फिर भी इसमें एक बड़ी कमी है, जो इस धारा के उद्देश्य को ही निरस्त कर देती है। गोल्डन आवर घायल होने के बाद से एक घंटे का समय माना गया है। दुर्घटना शहर मे भी किसी अस्पताल के पास हो सकती है, शहर से बाहर सुनसान स्थान पर भी, जहां से घायल को वाहन से निकालने, अन्य वाहन की व्यवस्था करने तथा अस्पताल पंहुचने मे अधिक समय लगना सम्भव है। अतः गोल्डन आवर का प्रारम्भ घायल का प्राथमिक उपचार शुरू करने से प्रारम्भ होना चाहिये। इस धारा मे संशोधन किया जाना चाहिये। प्राथमिक उपचार के लिये घायल को पर्याप्त समय मिलना चाहिये।

वाहन बीमा से सम्बन्धित धारा 164(1) मे संशोधन ग्राहकों पर बहुत बड़ा अन्याय है। इस संशोधन को निरस्त कर पहले की तरह ही रखा जाना चाहिये। इस तरह के संशोधन जब भी लाये जाते हैं शक का वातावरण पैदा करते हैं। बीमा कम्पनियां व्यापार ही नहीं कर रही हैं, बल्कि अच्छा खासा लाभ कमा रही हैं व अपना प्रीमियम रिस्क के आधार पर ही ग्राहकों से वसूल रही हैं, फिर ग्राहकों की कीमत पर उन्हे संरक्षण देने की क्या जरूरत आ पड़ी। ग्राहक और बीमा कम्पनियों के बीच सरकार क्यों आ रही है, वह भी बीमा कम्पनियों के पक्ष में। नये संशोधन के अनुसार दुर्घटना की स्थिति में बीमा कम्पनियां मृत्यु की स्थिति में अधिकतम 10 लाख तथा गम्भीर घायल अवस्था में 5 लाख रुपये ही क्षतिपूर्ति देंगी। यदि क्षतिपूर्ति की रकम अधिक निर्धारित होती है तो वाहन के मालिक को शेष रकम का भुगतान करना होगा। इस धारा के बाद वाहन बीमा का क्या अर्थ रह जायेगा। बीमा कम्पनियां मलाई काटेंगी। मृत्यु या गम्भीर चोट की स्थिति मे इस सीमित रकम का क्या अर्थ है। कानून मे इस संशोधन का विरोध होना चाहिये। अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत परिवहन मन्त्री व सरकार से मांग करती है कि इस संशोधन को निरस्त कर पूर्ववत किया जाये, जिसके अनुसार दुर्घटना की स्थिति मे बीमा कम्पनियों पर ही पूरे भुगतान की जिम्मेदारी है।