Friday 16 October 2015

दालें दुर्लभ वस्तुओं मे शामिल

भारतीय दलहन शोध संस्थान के अनुसार वर्ष 2030 तक देश की जनसंख्या 1.6 बिलियन पँहुच जायेगी और उसे 32 मिलियन टन दालों की आवश्यकता पडेगी। इस लक्ष्य के अनुसार देश को प्रतिवर्ष दलहन के उत्पादन मे 4.2% बढोत्तरी करने की जरूरत है। देश मे दलहन उत्पादन का अब तक का इतिहास बहुत निराशाजनक रहा है। पिछले 40 वर्षों मे दलहन का उत्पादन देश मे 1% वार्षिक से भी कम गति से बढा है। जबकि देश की जनसंख्या इससे दुगनी गति से बढी है।

दशकों से हमारे नेताओं द्वारा इस क्षेत्र की उपेक्षा ही वर्तमान हालातों की जिम्मेदार हैं। बलराम जाखड और शरद पवार जैसे कृषि मन्त्री यह योजनायें तो बनाते रहे कि हम अफ्रीका, बर्मा और उरूग्वे जैसे देशों मे दाल की खेती करवाकर वहां से दाल आयात करें। परन्तु उन्होने यह कभी नहीं सोचा कि देश का किसान दाल की खेती से क्यों भाग रहा है। उसे कैसे प्रोत्साहित किया जाये। दालों का जोत क्षेत्र कैसे बढाया जाये। दालों की प्रति हेक्टयर उपज बढे, इसके लिये क्या किया जाये। अतः हम आज जिस स्थिति मे हैं, उसके बीज हमने वर्षों पूर्व बोये थे। मजे की बात यह कि दालों का उपभोग करने वाला बडा देश होने के बावजूद हम इसके महत्व को नहीं समझे, आस्ट्रेलिया समझ गया, 1970 मे हमसे 400 ग्राम दाल के बीज लेकर गया। 10 वर्ष बाद उसका दलहन का जोत क्षेत्र था 90 लाख हेक्टयर, आज वह हमारे देश को दाल निर्यात कर रहा है। मालाबी जैसे छोटे देश भी हमे 5000 टन दाल आयात करने की स्थिति मे हैं। ।

यद्यपि दालों के लिये हमारा देश विश्व का सबसे बडा उत्पादक, उपभोक्ता व आयातक है। दुनिया की कुल दाल की खेती के एक तिहाई भाग मे हम दाल की खेती करते हैं। दुनिया के दाल उत्पादन का 20 प्रतिशत उत्पादन हमारे यहां होता है। परन्तु हम अपनी जरूरत से काफी पीछे हैं और हमने इसपर उचित ध्यान भी नहीं दिया, क्योंकि आजादी के बाद भी हमारे शासक नेता अंग्रेजों की मानसिकता मे जी रहे थे। अंग्रेज दाल का उपयोग करते नहीं हैं, इसे दूसरे दर्जे का अनाज मानते हैं। हमारे नेताओं ने भी यही किया दाल को दूसरे दर्जे का अनाज मानकर इसके विकास पर समुचित ध्यान ही नहीं दिया। गेंहू - चावल मे ही लगे रहे, देश मे दाल की कमी को आयात के सहारे पूरा करते रहे।

देश मे दाल उत्पादन की तरफ उचित ध्यान न देने के कारण किसान इस फसल की ओर आकर्षित नहीं हुये क्योंकि लम्बी अवधि की फसल होने साथ इसमे कीटों व बीमारियों का खतरा अधिक था, अच्छे बीजों की कमी भी थी, दूसरे किसान को बाजार मे दलहन की फसल के खरीदार भी नहीं मिलते थे। 2008 से सरकार ने दालों के समर्थन मूल्य की घोषणा जरूर शुरू कर दी, परन्तु सरकार द्वारा खरीद न करने के कारण किसान को व्यापारियों पर ही आश्रित रहना पडता है। इन कठिनाईयों की तरफ सरकार ने ध्यान नहीं दिया, किसान दलहन की फसलों से किनारा करते रहे। नतीजतन 1980 - 81 मे 22.46 मिलियन हेक्टयर मे 10.63 मिलियन टन के उत्पादन को 35 वर्ष बाद 2013 - 14 मे हम 19.7 मिलियन टन तक ही पँहुचा पाये। सरकार द्वारा इस ओर देर से ध्यान देने के कारण हम काफी पिछड चुके हैं। कुछ दिन पहले ही चने और तुवर की 100 दिनों मे तैयार होने वाली फसल खोजने मे हमे सफलता मिली, दक्षिण भारत के लिये JG-11 नाम की किस्म भी तैयार की गई है। परन्तु 760 किलो प्रति हेक्टयर की  पैदावार को अन्य देशों की तरह 1200 किलो प्रति हेक्टयर तक ले जाना शेष है। संक्षेप मे कहें तो दलहन उत्पादन के लिये देश मे अनुसन्धान, किसानों को प्रोत्साहन, बुआई के क्षेत्र को बढाना, पैदावार को बढाना आदि महत्वपूर्ण चुनौतियां देश की सरकार के सामने हैं।

वर्तमान बाजार को देखें तो अनियमित वर्षा ने  30% फसल बरबाद कर दी। 2013-14 मे 19.25 मिलियन टन की तुलना मे 17.3 टन दलहन का ही उत्पादन हुआ। दूसरे देशों मे भी फसल खराब हुई है, जिससे कीमतों मे 20 से 30 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। डालर की तुलना मे रूपये की गिरावट ने स्थिति को और बिगाडा है। यद्यपि सरकार द्वारा आयात की गई 10,000 टन तुवर, उडद दाल प्रक्रिया मे है। 5000 टन दाल और आयात की जा रही है। कठिन हालातों के बावजूद इस तरह की परिस्थितियों का अनैतिक लाभ उठाने वालों की भी कमी नहीं है। जमाखोरों द्वारा मुनाफाखोरी के लिये माल बाजार से गायब करने के चलते हालात अधिक खराब हुये हैं। सरकार को जमाखोरों पर कठोर कार्यवाही करने की जरूरत है, तभी ग्राहक को थोडी बहुत राहत मिलनी सम्भव है। वरना ग्राहक की दाल गलनी कठिन है।

Thursday 15 October 2015

सावधान रहकर ऑनलाईन मार्केटिंग का लाभ उठायें

अॉन लाईन शापिंग कम्पनियों  की आजकल बाढ आई हुई है। घर पर बैठकर फुर्सत से खरीदारी वह भी दुनिया भर के ब्रान्डों की, बाजार से सस्ते दामों पर, घर पँहुच सेवा और न जाने क्या क्या। आज के  समय मे यदि आप अॉनलाईन शॉपिंग से परिचित नहीं, अॉनलाईन शॉपिंग नहीं करते तो आप पिछडते जा रहे हैं। इस आधुनिक मार्केटिंग तकनीक का लाभ उठाने से वंचित हैं।

समय परिवर्तनशील है। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र मे नये नये प्रयोग हो रहे हैं। एल्विन टॉफलर की 3rd वेव थ्योरी रंग ला रही है। अब तक के निर्धारित नियम व व्यवस्थायें ध्वस्त हो रही हैं, उनके स्थान पर नवीन व्यवस्थायें जन्म ले रही हैं। नये सिद्धान्त बन रहे हैं। जिनके चिन्ह हमे अपने आसपास प्रचुरता मे दिखाई देते हैं। हम किसी भी नयी  व्यवस्था को अपनाने से सिर्फ इसलिये मना नहीं कर सकते, क्योंकि अबसे पहले की व्यवस्था अलग तरह की थी। समाज, उत्पादन तथा बाजार मे जो paradigm shift हो रहा है, हमे उससे ताल जरूर मिलानी है। यह दीगर बात है कि हम उस नवीन व्यवस्था का कितना और कैसे उपयोग करते हैं। अतः ऑनलाईन मार्केटिंग का जड़ से विरोध करना बेमानी है।

बाजार मेे ग्राहक को उत्पादन मंहगे मिलने के सम्बन्ध मे अधिकतर अर्थशास्त्रियों का अभिमत बाजार मे बडी संख्या मे बिचौलियों का होना बताया जाता था। कहा जाता था इसीकारण बाजार मे उत्पादन अपनी उत्पादन लागत से बहुत अधिक दामों पर बिकता था।अॉन लाईन कम्पनियों ने एक बात तो स्पष्ट कर दी कि इसने व्यापारी या बिचौलियों को जो ग्राहकों को 9 रु की वस्तु 90रु मे बेचकर बेहिसाब लूट रहे थे, किनारे बैठाकर, ग्राहकों को अतिरिक्त लाभ का हिस्सेदार बना  दिया। बाजार मे सम्पत्तियां अत्यधिक मंहगी होने का लाभ भी ऑनलाईन कम्पनियों को मिला। जब तक यह लाभ ग्राहक को मिलता है, इसे लेेने मे कोई हर्ज नहीं। वैसे ऑनलाईन कम्पनियों मे भी यह विचार तेजी से पनप रहा है कि जो दिखता है वह बिकता है। इसलिये ऑनलाईन कम्पनियां बडे बडे शहरों मे अपने शो रूम खोलने परभी विचार करने लगी हैं। उनका यह भी मानना है कि इस प्रकार वह अपने ग्राहकों को और बेहतर सेवायें दे सकेंगी।

अॉन लाईन कम्पनियों ने उत्पादन मूल्य और विक्रय मूल्य के विशालकाय अन्तर को देश के सामने स्पष्ट कर दिया है। वस्तुओं की कीमतों मे बाजार और अॉन लाईन कम्पनियों मे विशालकाय अन्तर इसीलिये दिखाई देता है, क्योंकि उत्पादक उत्पादन लागत से बहुत अधिक कीमत एम आर पी मे लिखते हैं। टैक्स चोरी जैसी बातें अॉन लाईन व्यवसाय मे तथ्यहीन हैं। इतनी जगह लिखापढी होती है कि टैक्स  वसूलने वाले विभागों की ये आसान पकड मे हैं। ग्राहक कानून भी इन कम्पनियों पर पूरी तरह लागू है। ग्राहक उपभोक्ता फोरम मे जा सकता है।

परन्तु प्रत्येक चमकने वाली वस्तु जिस तरह सोना नहीं होती, उसी तरह थोडी सी असावधानी ग्राहक के लिये समस्या भी खडी कर सकती है। अत: ग्राहकों को इन कम्पनियों से खरीदारी करते समय अलग तरह की सावधानियां अपनाने व सतर्क रहने की आवश्यकता है।

१. बाजार की खरीदारी की तरह इसमे भी समय लगायें। सिर्फ उत्पादन की फोटो देखकर वस्तु न खरीदें।
२. कई बार देखा गया है कि वस्तु का चित्र ब्रान्डेड कम्पनी का होता हैै, परन्तु विवरण दूसरा लिखा होता है। अत: पूरा विवरण पढने के बाद, चित्र से उसे मिलाकर सुनिश्चित होनेो के बाद ही आर्डर दें।
३. वस्तु के साथ दी जानकारी को पूरा पढें, समझें। यदि फिर भी वस्तु के विषय मे कोई शंका है तो आर्डर देने से पूर्व कम्पनी से लिखकर पूछ लें।
४. किसी ब्रान्ड की वस्तु और उसके जैसी वस्तु मे बहुत अन्तर होता है। अत: like, type या as जैसे शब्दों के चक्र मे न उलझें।
५. वस्तु के मूल्य को आर्डर देने से पूर्व स्थानीय बाजार मे सुनिश्चित कर लें। अनेको बार वस्तु उसी दाम पर या सस्ती स्थानीय बाजार मे मिल जाती है।
६. जहां तक सम्भव हो payment on delivery option का उपयोग करें।
७. वस्तु सन्तोषप्रद न होने पर शिकायत तुरन्त करें।
८. आप जिस कम्पनी को आर्डर कर रहे हैं, उसके बारे मे अच्छी तरह समझ लें। आजकल बहुत सी नकली कम्पनियां भी धोखाधडी करने के लिये सक्रिय हैं।