Tuesday 26 May 2015

भारतीय दर्शन के सामने घुटने टेकता पाश्चात्य विचार


आज पाश्चात्य विचार को श्रेष्ठ बताने और भारतीय विचार को बिना जाने समझे पुरोगामी बताने की होड़ चल पड़ी है। मुख्यतः इसलिये क्योंकि पाश्चात्य विचार मे इस वर्ग को इहलौकिक प्रगति और सुखप्राप्ति अधिक नजर आती है, वही इस वर्ग की धारणा यह है कि भारतीय विचार सिर्फ  परलौकिक सुख और समृद्धि की अधिक बात करता है जबकि वास्तविकता इससे भिन्न है।
                                    यतोअभ्युदयनिः श्रेयससिद्ध स धर्मः।

हमारी भौतिकता की व्याख्या धर्म का पूरा विचार करके चलती है। इस श्लोक का यही अर्थ है। 'जिससे इस जीवन और परलोक मे उन्नति प्राप्त हो वही धर्म है'। इसी क्रम मे महर्षि चाण्क्य ने कहा है -
                                     सुखस्य मूलम धर्मः। धर्मस्यमूलमर्थः।

अर्थात सुख धर्ममूलक है तो धर्म अर्थमूलक। अर्थ के बिना धर्म नहीं टिकता। अर्थ या जीवन से संबन्धित किसी भी विषय का चिन्तन करते समय भारतीय मनीषी एकांगी विचार न करते हुये सम्पूर्ण ब्रह्मांड का ध्यान कर तदनुरूप विचार करते थे। पंडत दीनदयाल जी के चिन्तन मे भी यही झलक है।

पंडित जी भारतीय परिवेश पर पड़ते और बढ़ते पश्चिमी विचार को उचित नहीं मानते थे। क्योंकि उन्नीसवीं सदी की औद्योगिक क्रान्ति की छाया मे पनपा पश्चिमी विचार जीवन को भी यन्त्रों की भांति खंड खंड कर देखने समझने का अभ्यस्त हो चला था। जीवन के किसी भी आयाम पर विचार करते समय वहां के चिन्तकों को यह भान नहीं रहता था कि उस आयाम के आसपास के परिवेश मे उससे इतर अन्यअनेक संरचनायें हैं, जो उस आयाम से सम्बद्ध प्रत्येक गतिविधि को प्रभावित करती है। अतः उस आयाम का सटीक विचार आसपास मौजूद संरचनाओं और उनके उस आयाम पर पड़ने वाले प्रभाव को ध्यान मे रखे बिना नहीं किया जा सकता। अतः इन सभी घटकों को ध्यान मे रखकर ही आर्थिक विकास की संकल्पना, संरचना की जानी चाहिये। इस प्रकार किया गया विचार मानव को प्रगति पथ पर अग्रसरित करने के साथ साथ सम्पूर्ण विश्व एवं सृष्टि के लिये हितकारी तथा चिरंतन काल तक स्थायित्व वाला होगा।

भारतीय विचार के इस महत्व को अन्य अनेक पश्चिमी विचारक भी समझ चुके थे। पंडित जी, जे स्टु मिल का उद्धरण लिखते हैं - "संभवतः कोई भी व्यवहारिक प्रश्न ऐसा नहीं होता जिसका निर्णय आर्थिक सीमाओं के अन्दर ही दिया जा सके। अनेक आर्थिक प्रश्नों के महत्वपूर्ण राजनीतिक एवं नैतिक पहलू होते हैं जिनकी उपेक्षा नहीं की जा सकती।" दीनदयाल जी का स्पष्ट मत था, पश्चिमी अर्थशास्त्र अपने मे परिपूर्ण नहीं है।एक बिन्दु तक पँहुचते पँहुचते उसमें भटकाव आने लगता है। जीवन के प्रश्न सुलझाने की उसकी क्षमता चुकती दिखाई देती है। दीनदयाल जी पाश्चात्य अर्थशास्त्र की मान्यताओं के बारे मे एक स्थान पर लिखते हैं -

१. इसमे राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था मुख्यतः वैयक्तिक है जिसका अलग से कोई सामाजिक पहलू नहीं है।
२. इसमे व्यक्तियों की निर्बाध और असीम प्रतिस्पर्धा ही सामाजिक जीवन की स्वाभाविक एवं सुरक्षापूर्ण नियामक है।
३. इसमे राजकीय एवं प्रथा द्वारा लागू नियमन सभी स्वाभाविक स्वतन्त्रता का अतिक्रमण करते हैं ।

समय के साथ पश्चिमी चिन्तकों विचारकों की दिशा बदली है। पश्चिमी विचारों के देश व समाज पर पड़ने वाले प्रभावों के अनुभवों से वह ऊब चुके हैं। आज पश्चिम के अनेको विचारक वहां की एकाकी खंडित सोच से अलग हटकर दीनदयाल जी के "एकात्म मानववाद" चिन्तन का परोक्ष समर्थन करते दिखाई दे रहे हैं। पश्चिमी अर्थशास्त्रियों को नवीन ढंग से सोचने के लिये प्रेरित करने वाले Nash Equilibrium के जनक जॉन नैस। दुर्भाग्य से 82 वर्षीय गणित के नोबल पुरस्कार विजेता जॉन की कुछ दिन पूर्व ही अमेरिका में एक सड़क हादसे मे मृत्यु हुई है। उनका विचार भी दीनदयाल जी से प्रभावित है जिसके अनुसार जब दो प्रतिस्पर्धी किसी एक विषय पर अलग अलग बैठकर विचार करते हैं तो उनके हित उनके विचारों का अतिक्रमण करते हैं, आवश्यकता अनुसार वह अपनी स्थितियाों मे भी परिवर्तिन करते हैं । नैस के अनुसार यह विचार सामाजिक व सामूहिक हितों के प्रतिकूल होते हैं, उन्हें नुकसान पँहुचाने वाले होते हैं । Nash Equilibrium के इस सिद्धान्त को एक उदाहरण के द्वारा आसानी से समझा जा सकता है।

पुलिस ने हत्या के सन्देह मे दो आरोपियों को पकड़ा। परिस्थितियां इस प्रकार की थी कि यदि दोनो आरोपी कबूल न करें तो दोनो को छोड़ना पड़े। दोनो कबूल कर लें तो दोनो को सजा मिले। दोनो को अलग अलग कोठरी मे बन्द कर दिया गया। अब यदि कोई एक आरोपी कबूल कर लेता है तो उसे गवाह माफी बनाकर दूसरे को सजा दी जा सकती है। दोनो अलग अलग बैठकर यह विचार करते हैं कि यदि दूसरे ने कबूल कर लिया तो वह बच जायेगा परन्तु मै फंस जाऊंगा। यदि मै कबूल करता हूं तो मेरे बचने के अवसर अधिक हैं। दोनो सिर्फ अपने हित के विषय मे सोचते हैं, दूसरे के नहीं। दोनो को ही दूसरों के हित से अपना हित ऊपर नजर आता है। अतः दोनो ही अपने आप को बचाने के लिये गुनाह कबूल कर लेते हैं और दोनो फंस जाते हैं। सामाजिक हितों के मामलों मे भी पूरे विश्व मे यही कुछ हो रहा है।

जान नैस का यह विचार भारतीय चिन्तन से प्रभावित है। परम पूज्यनीय गुरू जी ने न जाने कब कहा था - मै नहीं, तू ही। पंडित दीनदयाल जी ने सम्पूर्ण सृष्टि के साथ तादात्म स्थापित कर आगे बढ़ने को सुखी जीवन का आधार बताते हुये "एकात्म मानववाद दर्शन" विश्व के सामने रखा था।

Sunday 24 May 2015

'भूमि अधिग्रहण कानून' जो तमाशा बन गया ?

सड़क, बिजली, पानी, उद्योग, रेल, हवाई अड्डों, निर्यात जोन, बाँध और न जाने किन किन नामों से जिन्होने 67 वर्षों तक किसानों से कौड़ियों के मूल्य मे उनकी उपजाऊ जमीनें छीनी। जिन्होने किसान को बेरोजगार ही नहीं बल्कि भिखारी बना दिया। जिन नेताओं की कई पीढ़ियां इस भूमि अधिग्रहण के साये मे तर गईं, फटेहाल घूमने वाले अरबपति - खरबपति बन गये। दिल्ली, गुड़गांव, फरीदाबाद, नोयडा, ग्रोटर नोयडा, नवी मुंबई, लवासा ही नहीं देश के प्रत्येक भाग की अधिग्रहीत जमीनें जिस लूट की गवाह हैं। कुल मिलाकर यदि कहें तो भूमि अधिग्रहण की आड़ में 67 वर्षों तक कपड़े को भिगोकर इतना निचोड़ा गया कि अब वह एक भी ऐंठन बरदास्त करने की स्थिति में नहीं है, जरा सा घुमाते ही कपड़ा फटने लगता है।


सत्ता से दूर फेंके गये, हाशिये पर अपनी बिसात बिछाये बैठे राजनैतिक दल, जिन्होने अब तक इसी कानून के सहारे मौका मिलते ही अपनी गिद्ध चोंच से किसान को नोचने का कोई मौका नहीं चूका। विदेशी चन्दे पर मौज उड़ाने वाले NGO के वह नेता, जो यह सोचकर विदेशी धुन पर नाचने मे व्यस्त हैं कि उनकी तो मजे में कटी है, कट जायेगी। बस कुछ आन्दोलन चलाने, कुछ लोगों को भड़काने की विदेशी नौकरी ही तो करनी है। जिसके लिये विदेशी आका आवश्यकता से कहीं अधिक धन मुहैय्या करा रहे हैं। इन सभी श्रेणियों के लोग भूमि अधिग्रहण जैसे महत्वपूर्ण, उपयोगी और आवश्यक कानून को छाती पीट पीट कर तमाशा बनाने की सफल स्थिति में पँहुचते नजर आ रहे हैं।

हवाई घोड़े पर सवार वर्तमान सरकार भी इन परिस्थितियों को बनाने की कम दोषी नहीं है। 67 वर्षों बाद आज देश के जो हालात हैं, एक या दो वर्षों मे उसमे कोई खास अन्तर नहीं पड़ने वाला है। अतः आवश्यकता इस बात की थी कि पहले छोटी छोटी लोक लुभावन योजनायें बनाकर देश की जनता का विश्वास जीता जाये। दिल्ली मे सभी कुॉछ मुफ्त देने वाले वादों का असर नहीं देखा क्या ? एक बार 2014 के चुनावों मे छुटभैय्ये नेता के रूप मे तब्दील नेताओं की दुकानें ठप्प पड़ जाती, जन सामान्य का विश्वास पक्का हो जाता, फिर विकास के ऊबड़ खाबड़ रास्तों पर भी गाड़ी सरपट दौड़ाई जा सकती थी। आज नेताओं का यही वर्ग गरीबों, किसानों को भड़काने में कामयाब होता दिख रहा है। यह वर्ग इसलिये नहीं कामयाब हो रहा कि गरीब, किसान को इन नेताओं पर, इनके कथन पर विश्वास है। गरीब और किसान तो अपने विगत 67 वर्षों के अनुभव के आधार पर भड़क रहे हैं। जिसमे उन्हे हमेशा धोखा ही मिला है। सरकार के पास इस वर्ग को समझाने के लिये कुछ ठोस नहीं है, बयानबाजी के अतिरिक्त। सिर्फ बयानबाजी से यह वर्ग समझने, बहलने को तैयार नहीं है। क्योंकि इसी तरह समझाकर, मौखिक सान्त्वनायें, बयान दे देकर लगातार उसे लूटा गया। वह भी नेता थे, तुम भी नेता हो, बिना कुछ देखे अनुभव लिये तुम पर विश्वास कैसे कर लें।

बेशक नया भूमि अधिग्रहण कानून पुराने सभी कानूनों से कहीं अधिक अच्छा और किसानों के हितों का पोषक है। परन्तु दूध के जले को छाछ पीना है, फूंक फूंक कर ही पियेगा और फिर यह सिद्ध हो चुका है कि नेताओं के लिये देशहित राजनीतिक रोटियां सेंकने से बड़ा नहीं है। कानून की बात करें तो देश का कौन सा कानून है जिसकी चार लाईनें पढ़कर 36 अर्थ न निकाले जा सकते हों, इस कानून के विषय मे भी यही किया जा रहा है। सभी अपने लिये अनुकूल व्याख्या कर रहे हैं। आप चिल्लाते रहिये सही अर्थ वह नहीं, यह है। गरीब, किसान तो अपने अब तक के अनुभव की कसौटी पर घिस कर ही परखेगा। दुर्भाग्य से इतने वर्षों मे कसौटी इस तरह की बन चुकी है कि उस पर 99.9% शुद्ध सोना भी घिसकर देखा जाये तो पीतल ही बतायेगी।

अतः सभी को भेड़िया आया, भेड़िया आया चिल्लाने दें। गांव वालों को बार बार लाठी डंडे लेकर पहाड़ी पर दौड़ने दें। प्रयासरत रहें कि सभी बार बार भेड़िया आया चिल्लाने को मजबूर हों। यकीन रखें  वह दिन दूर नहीं जब गांव वाले इन चिल्लाने वालों पर ही बरस पड़ेंगे, विजय तुम्हारी ही है बस कुछ कदम दूर है।

Saturday 23 May 2015

बिल्डर से कैसे पायें अपनी फ्लैट बुकिंग का पैसा वापस ?

WRITTEN BY PUNE KARYKARTA VIJAY SAGAR JI
(पूना के कार्यकर्ता विजय सागर जी का लेख)


Dear Consumers,
Lot of complaints are coming to Akhil Bhartiya Grahak Panchayat for the reason of non refund of booking amount by the builder.
Pl go through the format (This is format and you have to prepare notice as per this and send it to builder and keep one copy with your self. Please not that We are not taking any legal responsibility you have to take your  own responsibility)
If any flat buyer wants his booking amount back due to his own wish or due to builders problem then following type of notice to be issued by flat buyer to the builder on his own
 ( without lawyer ). Type it and send by speed post or by register acknowledge.
   
                                     Format of  Notice
From
Name of flat buyer and his complete postal order
Date
To
Shri/Madam................
Propriter/Partner
M/s.....................
Address..............
Subject: Refund of booking amount and compensation
Dear Sir/Madam,
I have booked flat in your scheme ........... located at ............ having flat no........carpet/builtup/salabel area of ......... sqft/sq.m on .............
and the rate of flat was fixed to Rs.......... per sqft and total cinsideration was fixed as under
Flat cost :- Rs .........
Parking - Rs........
Society charges Rs ......
Legal charges Rs.......
Electricity charges Rs...
Infrastructure charges..
Club charges Rs .....
One time maintenance charges Rs ......
Other charges Rs .........
And I have paid total Rs................. As under :-
S.No.      Amount   Date             receipt no.
1.        500000    01/03/2013.      By cheque/cash
Total Rs...........
After payment you have made/not made MOU/Agreement for the said flat.
As per the virbal/writen  promises/advertise given by you the work was suppose to start by date......... and to be finished by date ........
Also as a per pre launch offer  you are suppose to start construction as per the sanctioned plan and layout by the Corporation/Collector /Town planning.
Or
you have not taken sanction of Corporation/Town planning for start of project. No plan and layout has been sanctioned by the competent authority.
Or
I am not interested to go ahead with the project for ................. reasons.
The construction has not been started or started but it is in uncompleted form since last ........ months.
Hence you are requested to refund my entire amount alongwith 18% intrest from the date of payment. Also you are liable to pay compensation of increased flat cost as i have to book flat with anither builder and the booking cost is Rs ....... per sqft I.e. increase of Rs ...... per sqft. Hence you are liable to pay me Rs........ As increased cost charges.
Hence within 15 days from receipt of this notice refund me amount as under
1. booking amount Rs..
2. 18% intrest amount on the above booking amount Rs.....
3. Escalated cost I.e. difference of flat cost Rs......... for ......... sqft as compensation
4. Refund of legal expenses Rs......
5. Mental harassment charges of Rs...........
6. Refund of cash amount paid for ........
Total Rs..............
If you fail to pay the above amount within 15 days then I will take appropriate legal action against you at your cost. Also I will file FIR as per IPC and as per MOFA  act against you
Thanking you
Yours faithfully
Name ........
SIGNATURE
Date
Copy to
The president Akhil Bhartiya Grahak Panchayat(Concerned city branch)

As per the advice given by you I am writing this notice and further you will guide me if required to take further steps.              

Thursday 21 May 2015

मैगी नूडल्स सवालों के घेरे में ?

समाचार पत्रों, न्यूज चैनलों तथा सोशल मीडिया पर कल से उत्तर प्रदेश के बाराबंकी शहर से मिले मैगी नूडल्स के पैकेट मे लैड(सीसा) तथा मोनो सोडियम ग्लूटामेट की अधिक मात्रा पाई गई है। मैगी का यह उत्पादन ग्राहकों के स्वास्थ को हानि पँहुचाने वाला है। अतः मार्च 2014 बैच के मैगी उत्पादन को बाजार से वापस बुलाने के आदेश सरकारी खाद्य विभाग द्वारा जारी कर दिये गये हैं। समाचार चौंकाने वाला है, परन्तु सिर्फ समाचार न होकर देश में ग्राहकों के स्वास्थ से खिलवाड करने वाले उत्पादकों तथा इस प्रकार के उत्पादनो से ग्राहकों को बचाने वाली सरकारी व्यवस्थाओं पर बड़ा प्रश्न चिन्ह लगाने वाला है। आश्चर्य इस बात का है कि अनुत्तरित इन महत्वपूर्ण प्रश्नों पर किसी का ध्यान नहीं है।

मार्च 2014 के मैगी बैच को बाजार से वापस लेने का आदेश देकर सरकारी अमला अपनी पीठ चाहे जितनी थपथपा ले, वह न तो इस घटना से उठे प्रश्नों के उत्तर देने से बच सकता है, न अपनी जिम्मेदारी से। सरकारी अमले को यह निर्णय लेने मे सवा वर्ष लग गया कि मैगी नूडल्स का इस बैच का उत्पाद ग्राहकों के लिये हानिकारक है। इतने समय में मैगी नूडल्स का यह बैच यात्रा करता हुआ उ.प्र. के छोटे से शहर बाराबंकी और न जाने देश के किन किन गांव-शहरों तक और किन किन ग्राहकों के पेट तक जा पँहुचा। आश्चर्य इस बात का भी है कि केन्द्रीय तथा अन्य राज्यों की व्यवस्थायें सोती रही, इसे पकड न सकी।सवा वर्ष बाद इस लाट की कितनी मात्रा बाजार मे शेष होगी। और फिर बाजार से यह मैगी वापस उत्पादक तक पँहुचे और नष्ट की जाये इसकी क्या व्यवस्था सरकार के पास है। क्योंकि बहुत से मामलों मे देखा गया है कि माल फैक्ट्री जाकर नये पैक मे वापस चला आता है। ग्राहक को अपने हितों की देखभाल की गारन्टी चाहिये। महत्वपूर्ण यह भी है कि बहुराष्ट्रीय कम्पनियां भारत जैसे देश में ही इस तरह की गलतियां क्यों करती हैं। उनके सुरक्छा मानक कमजोर हैं या परीक्छण विधियां उपयुक्त नहीं हैं।

सबसे अधिक चिन्ता की बात यह है कि बाजार मे कौन से उत्पादन ग्राहकों के स्वास्थ से खिलवाड करने वाले हैं यह जानने समझने मे एक वर्ष से अधिक का समय लग जाता है। देश मे खाद्य पदार्थों की जांच करने वाली 4 सेन्ट्रल सरकारी प्रयोगशालायें हैं। साथ ही NABL से मान्यता प्राप्त तथा FSSAI से अधिकृत 72 निजी प्रयोगशालायें कार्यरत हैं। जिनमें खाद्य पदार्थों की जांच की जा सकती है, फिर निष्कर्ष तक पँहुचने में इतना समय कैसे लग जाता है। ग्राहकों के स्वास्थ से खिलवाड करने वाली इस देरी के लिये कौन जिम्मेदार है।

नैस्ले कम्पनी ने सरकार के इस निर्णय को विवादित बताने के साथ ही बचने की तरकीबें ढूंढनी शुरू कर दी है, उसका कहना कि वह उत्पाद मे मोनो सोडियम ग्लूटामेट प्रयोग नहीं करता, यह उत्पादन मे प्रयुक्त अन्य पदार्थों के विघटन से आ सकता है, हास्यास्पद बहाना है। जो यह सिद्ध करता है कि कम्पनी देश क़े ग्राहकों के स्वास्थ को गम्भीरता से नहीं लेती। खाद्य पदार्थों के मामले मे जितना महत्वपूर्ण यह है कि उसमें कौन कौन से घटक हैं, उतना ही महत्वपूर्ण यह है कि उन घटकों के संयोजन से कोई नवीन इस तरह का घटक तो उत्पन्न नहीं होता जो खाने वाले के लिये खतरनाक हो। विवाद के क्रम मे यह न हो कि दूषित मैगी बाजार मे बिकती रहे, ग्राहक बीमार होता रहे। कम्पनी को तुरन्त बाजार से उत्पाद हटाना चाहियेहै। कडे सार्वजनिक करने चाहिये कि कथित बैच के उत्पादन की मात्रा कितनी थी, कितना उत्पाद वापस आया, कितना ग्राहकों के पेट मे गया।

ग्राहक मन्त्रालय के लिये यह टैस्ट केस है, मन्त्रालय एक कमेटी गठित कर जांच कराये कि मैगी की जांच मे सवा वर्ष कैसे लग गया। खाद्य पदार्थों की जांच के रिजल्ट एक सप्ताह मे मिलने के लिये किस तरह के कौन से कदम उठाने की आवश्यकता है। कमेटी यह भी अध्यन कर सुझाव दे कि खाद्य पदार्थ निर्माता कम्पनियां उत्पाद बाजार मे भेजने के पूर्व कौन कौन से मानक किस तरह सुनिश्चित करें। बाजार मे इस तरह के उत्पाद चिन्हित होने की दशा मे इन उत्पादनो को बाजार से किस तरह की प्रक्रिया अपना कर हटाया जाये तथा नष्ट किया जाये। दूषित मैगी के मामले में जब तक यह तथ्य निकलकर जब तक सामने नहीं आते, कोई अर्थ नहीं। सरकार न तो सीखना ही चाहती है, न ही उसे 125 करोड़ ग्राहकों के स्वास्थ की कोई चिन्ता है। यदि सरकार ग्राहकों के हित मे कार्यरत है तो उसे तुरन्त यह कदम उठाने चाहिये।

Wednesday 20 May 2015

रोकी जा सकती थी डीजल - पैट्रोल की मूल्यवृध्दि

पैट्रोल डीजल की कीमतें मंहगाई मे विशेष भूमिका अदा करती हैं।सरकार द्वारा विगत दिनो बढाई गई पैट्रोल डीजल की कीमतों को मंहगाई की नवीन किश्त माना जा सकता है।यह तर्क कितना तर्कसंगत है कि अर्न्तराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की मूल्यवृध्दि देखते हुए यह कदम उठाना अनिवार्य हो गया था।सरकार सर्मथकों की यह युक्ति भी समझ से परे है कि लगातार एक वर्ष तक पैट्रोल डीजल की कीमतें कम करने के बाद यदि अर्न्तराष्ट्रीय कीमतों के दबाव मे कुछ मूल्यवृध्दि की जाती है तो इस पर चिल्ल पों मचाना गलत है।

महत्वपूर्ण है कि एक वर्ष के शासन के बाद सरकार देश में अपनी उपलब्धियां गिनाने के लिये भारत पर्व मनाने में जुटी है।इस अवसर पर क्या इस अप्रिय घटनाक्रम से बचा जा सकता था। वैसे भी ग्राहकों ने पैट्रोल डीजल के नाम पर सरकारी खजाने मे बहुत अतिरिक्त पैसा जमा किया है।पिछले एक वर्ष के कच्चे तेल के अर्न्तराष्ट्रीय बाजार और उस पर आधारित देश मे होने वाली उठापटक का यदि विश्लेषण करें तो यह बात सामने आती है कि सभी को मालूम था कि कच्चे तेल की कीमतें न तो स्थिर रहने वाली हैं, न ही सदैव नीचे खिसकने वाली हैं। अतः आगे की योजना बनाते समय पिछले एक वर्ष और वर्तमान घटनाक्रम का विश्लेषण करते हुये ही भविष्य की योजना बनानी चाहिये ।

वर्ष 2014 में कच्चे तेल की अर्न्तराष्ट्रीय कीमतें 107 डालर प्रति बैरल से लुढक कर 45 डालर प्रति बैरल आने के पीछे तेल उत्पादक देशों के घरेलू हालातों के साथ साथ अमेरिका द्वारा तेल उत्पादन में आत्मनिर्भर होने के लिये उठाये जाने वाले कदम थे।अमेरिका द्वारा तेल उत्पादन का निर्णय लेने के बाद एक तरफ जहां अरब के देशों ने अपना उत्पादन इसलिये बढा दिया क्योंकि उनकी उत्पादन लागत अमेरिकी लागत लगभग 70 डालर प्रति बैरल से काफी कम थी। परन्तु अमेरिका लगा रहा उसने अपना उत्पादन बन्द नहीं किया। दूसरी तरफ ईरान अमेरिकी तथा यूरोपीय समुदाय द्वारा प्रतिबन्ध लगाये जाने के बाद भी अपना उत्पादन पूर्ववत करता रहा।नतीजतन मांग और पूर्ति मे लम्बा अन्तराल आता चला गय, कच्चे तेल की कीमतें गिरती चली गई।

यदि आने वाले समय पर नजर डालें तो एक तरफ ईरान परमाणु निरस्त्रीकरण के समझौते पर दस्तखत कर चुका है, आने वाले कुछ माह मे ही यह लागू भी होगा, जिसके कारण उस पर लगे सभी प्रतिबन्ध हटने वाले हैं। अब तक तेल का उत्पादन कर उसने जो भण्डार बनाये हैं वह सभी बाजार मे आयेंगे। ओपेक देशों का समूह कमजोर हो चुका है, पहले यह जो तेल उत्पादन नियंत्रित कर बाजार भाव निर्धारित करने मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था, आज वह समाप्त हो चुकी है, सऊदी अरब लगातार अपना उत्पादन बढा रहा है, फ्रेकिंग की तमाम आशंकाओं और अधिक लागत को पीछे छोड अमेरिका आगे निकल चुका है। रही बात यूक्रेन पर हमले के बाद रूस को प्रतिबन्धित करने की, आर्थिक रूप से कमजोर पडा रूस भी यूक्रेन पर हमले की उन स्थितियों से बाहर निकलता जा रहा है ।उधर चीन भी लगातार तेल उत्पादन बढाता जा रहा है। इन परिस्थितियों में निकट भविष्य मे कच्चे तेल की कीमतें 60 - 70 डालर के बीच ही रहने का अनुमान है। देश की सरकार के लिये आर्थिक उन्नति के रास्ते पर तेजी से बढने और मंहगाई नियन्त्रित रखने के लिये परिस्थितियां सर्वथा अनुकूल हैं।

ग्राहकों के लिये ध्यान रखने की बात यह है कि डीजल-पैट्रोल की कीमतें कच्चे तेल के भावों से तो प्रभावित होती हैं, साथ ही डालर/रूपये की विनिमय दर भी उसे प्रभावित करती है।सरकार द्वारा पैट्रोल/डीजल की कीमत बढाने के पीछे यही तर्क दिये जा रहे हैं, कच्चे तेल के दामों का 50 डालर प्रति बैरल से ऊपर जाना और रूपये की तुलना में डालर का मजबूत होना।परन्तु सरकार बडी आसानी से यह भूल गई कि उसने 2015 के बजट मे पैट्रोल/डीजल पर लगने वाले उत्पादन शुल्क को 6 रू कर दिया था। दरअसल सरकार के हाथ सोने का अण्डा देने वाली यह मुर्गी लगी है, जिसे वह सहेजना चाहती है। इसी के कारण तो सरकार अप्रैल 2014 मे 8665 करोड की तुलना में अप्रैल 2015 में 18373 करोड एक्साईज ड्यूटी वसूल कर सकी है। विशेष बात यह कि इसका 26% हिस्सा पैट्रोल/डीजल से आया है। इन सब बातों से लगता है कि देश भर मे अपनी उपलब्धियां गिनाने के भारत पर्व अवसर पर सरकार को देश के ग्राहकों को मंहगाई का यह ईन्जेक्शन देने से बचना चाहिये था।