Wednesday 20 May 2015

रोकी जा सकती थी डीजल - पैट्रोल की मूल्यवृध्दि

पैट्रोल डीजल की कीमतें मंहगाई मे विशेष भूमिका अदा करती हैं।सरकार द्वारा विगत दिनो बढाई गई पैट्रोल डीजल की कीमतों को मंहगाई की नवीन किश्त माना जा सकता है।यह तर्क कितना तर्कसंगत है कि अर्न्तराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की मूल्यवृध्दि देखते हुए यह कदम उठाना अनिवार्य हो गया था।सरकार सर्मथकों की यह युक्ति भी समझ से परे है कि लगातार एक वर्ष तक पैट्रोल डीजल की कीमतें कम करने के बाद यदि अर्न्तराष्ट्रीय कीमतों के दबाव मे कुछ मूल्यवृध्दि की जाती है तो इस पर चिल्ल पों मचाना गलत है।

महत्वपूर्ण है कि एक वर्ष के शासन के बाद सरकार देश में अपनी उपलब्धियां गिनाने के लिये भारत पर्व मनाने में जुटी है।इस अवसर पर क्या इस अप्रिय घटनाक्रम से बचा जा सकता था। वैसे भी ग्राहकों ने पैट्रोल डीजल के नाम पर सरकारी खजाने मे बहुत अतिरिक्त पैसा जमा किया है।पिछले एक वर्ष के कच्चे तेल के अर्न्तराष्ट्रीय बाजार और उस पर आधारित देश मे होने वाली उठापटक का यदि विश्लेषण करें तो यह बात सामने आती है कि सभी को मालूम था कि कच्चे तेल की कीमतें न तो स्थिर रहने वाली हैं, न ही सदैव नीचे खिसकने वाली हैं। अतः आगे की योजना बनाते समय पिछले एक वर्ष और वर्तमान घटनाक्रम का विश्लेषण करते हुये ही भविष्य की योजना बनानी चाहिये ।

वर्ष 2014 में कच्चे तेल की अर्न्तराष्ट्रीय कीमतें 107 डालर प्रति बैरल से लुढक कर 45 डालर प्रति बैरल आने के पीछे तेल उत्पादक देशों के घरेलू हालातों के साथ साथ अमेरिका द्वारा तेल उत्पादन में आत्मनिर्भर होने के लिये उठाये जाने वाले कदम थे।अमेरिका द्वारा तेल उत्पादन का निर्णय लेने के बाद एक तरफ जहां अरब के देशों ने अपना उत्पादन इसलिये बढा दिया क्योंकि उनकी उत्पादन लागत अमेरिकी लागत लगभग 70 डालर प्रति बैरल से काफी कम थी। परन्तु अमेरिका लगा रहा उसने अपना उत्पादन बन्द नहीं किया। दूसरी तरफ ईरान अमेरिकी तथा यूरोपीय समुदाय द्वारा प्रतिबन्ध लगाये जाने के बाद भी अपना उत्पादन पूर्ववत करता रहा।नतीजतन मांग और पूर्ति मे लम्बा अन्तराल आता चला गय, कच्चे तेल की कीमतें गिरती चली गई।

यदि आने वाले समय पर नजर डालें तो एक तरफ ईरान परमाणु निरस्त्रीकरण के समझौते पर दस्तखत कर चुका है, आने वाले कुछ माह मे ही यह लागू भी होगा, जिसके कारण उस पर लगे सभी प्रतिबन्ध हटने वाले हैं। अब तक तेल का उत्पादन कर उसने जो भण्डार बनाये हैं वह सभी बाजार मे आयेंगे। ओपेक देशों का समूह कमजोर हो चुका है, पहले यह जो तेल उत्पादन नियंत्रित कर बाजार भाव निर्धारित करने मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था, आज वह समाप्त हो चुकी है, सऊदी अरब लगातार अपना उत्पादन बढा रहा है, फ्रेकिंग की तमाम आशंकाओं और अधिक लागत को पीछे छोड अमेरिका आगे निकल चुका है। रही बात यूक्रेन पर हमले के बाद रूस को प्रतिबन्धित करने की, आर्थिक रूप से कमजोर पडा रूस भी यूक्रेन पर हमले की उन स्थितियों से बाहर निकलता जा रहा है ।उधर चीन भी लगातार तेल उत्पादन बढाता जा रहा है। इन परिस्थितियों में निकट भविष्य मे कच्चे तेल की कीमतें 60 - 70 डालर के बीच ही रहने का अनुमान है। देश की सरकार के लिये आर्थिक उन्नति के रास्ते पर तेजी से बढने और मंहगाई नियन्त्रित रखने के लिये परिस्थितियां सर्वथा अनुकूल हैं।

ग्राहकों के लिये ध्यान रखने की बात यह है कि डीजल-पैट्रोल की कीमतें कच्चे तेल के भावों से तो प्रभावित होती हैं, साथ ही डालर/रूपये की विनिमय दर भी उसे प्रभावित करती है।सरकार द्वारा पैट्रोल/डीजल की कीमत बढाने के पीछे यही तर्क दिये जा रहे हैं, कच्चे तेल के दामों का 50 डालर प्रति बैरल से ऊपर जाना और रूपये की तुलना में डालर का मजबूत होना।परन्तु सरकार बडी आसानी से यह भूल गई कि उसने 2015 के बजट मे पैट्रोल/डीजल पर लगने वाले उत्पादन शुल्क को 6 रू कर दिया था। दरअसल सरकार के हाथ सोने का अण्डा देने वाली यह मुर्गी लगी है, जिसे वह सहेजना चाहती है। इसी के कारण तो सरकार अप्रैल 2014 मे 8665 करोड की तुलना में अप्रैल 2015 में 18373 करोड एक्साईज ड्यूटी वसूल कर सकी है। विशेष बात यह कि इसका 26% हिस्सा पैट्रोल/डीजल से आया है। इन सब बातों से लगता है कि देश भर मे अपनी उपलब्धियां गिनाने के भारत पर्व अवसर पर सरकार को देश के ग्राहकों को मंहगाई का यह ईन्जेक्शन देने से बचना चाहिये था।

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