Thursday 21 May 2015

मैगी नूडल्स सवालों के घेरे में ?

समाचार पत्रों, न्यूज चैनलों तथा सोशल मीडिया पर कल से उत्तर प्रदेश के बाराबंकी शहर से मिले मैगी नूडल्स के पैकेट मे लैड(सीसा) तथा मोनो सोडियम ग्लूटामेट की अधिक मात्रा पाई गई है। मैगी का यह उत्पादन ग्राहकों के स्वास्थ को हानि पँहुचाने वाला है। अतः मार्च 2014 बैच के मैगी उत्पादन को बाजार से वापस बुलाने के आदेश सरकारी खाद्य विभाग द्वारा जारी कर दिये गये हैं। समाचार चौंकाने वाला है, परन्तु सिर्फ समाचार न होकर देश में ग्राहकों के स्वास्थ से खिलवाड करने वाले उत्पादकों तथा इस प्रकार के उत्पादनो से ग्राहकों को बचाने वाली सरकारी व्यवस्थाओं पर बड़ा प्रश्न चिन्ह लगाने वाला है। आश्चर्य इस बात का है कि अनुत्तरित इन महत्वपूर्ण प्रश्नों पर किसी का ध्यान नहीं है।

मार्च 2014 के मैगी बैच को बाजार से वापस लेने का आदेश देकर सरकारी अमला अपनी पीठ चाहे जितनी थपथपा ले, वह न तो इस घटना से उठे प्रश्नों के उत्तर देने से बच सकता है, न अपनी जिम्मेदारी से। सरकारी अमले को यह निर्णय लेने मे सवा वर्ष लग गया कि मैगी नूडल्स का इस बैच का उत्पाद ग्राहकों के लिये हानिकारक है। इतने समय में मैगी नूडल्स का यह बैच यात्रा करता हुआ उ.प्र. के छोटे से शहर बाराबंकी और न जाने देश के किन किन गांव-शहरों तक और किन किन ग्राहकों के पेट तक जा पँहुचा। आश्चर्य इस बात का भी है कि केन्द्रीय तथा अन्य राज्यों की व्यवस्थायें सोती रही, इसे पकड न सकी।सवा वर्ष बाद इस लाट की कितनी मात्रा बाजार मे शेष होगी। और फिर बाजार से यह मैगी वापस उत्पादक तक पँहुचे और नष्ट की जाये इसकी क्या व्यवस्था सरकार के पास है। क्योंकि बहुत से मामलों मे देखा गया है कि माल फैक्ट्री जाकर नये पैक मे वापस चला आता है। ग्राहक को अपने हितों की देखभाल की गारन्टी चाहिये। महत्वपूर्ण यह भी है कि बहुराष्ट्रीय कम्पनियां भारत जैसे देश में ही इस तरह की गलतियां क्यों करती हैं। उनके सुरक्छा मानक कमजोर हैं या परीक्छण विधियां उपयुक्त नहीं हैं।

सबसे अधिक चिन्ता की बात यह है कि बाजार मे कौन से उत्पादन ग्राहकों के स्वास्थ से खिलवाड करने वाले हैं यह जानने समझने मे एक वर्ष से अधिक का समय लग जाता है। देश मे खाद्य पदार्थों की जांच करने वाली 4 सेन्ट्रल सरकारी प्रयोगशालायें हैं। साथ ही NABL से मान्यता प्राप्त तथा FSSAI से अधिकृत 72 निजी प्रयोगशालायें कार्यरत हैं। जिनमें खाद्य पदार्थों की जांच की जा सकती है, फिर निष्कर्ष तक पँहुचने में इतना समय कैसे लग जाता है। ग्राहकों के स्वास्थ से खिलवाड करने वाली इस देरी के लिये कौन जिम्मेदार है।

नैस्ले कम्पनी ने सरकार के इस निर्णय को विवादित बताने के साथ ही बचने की तरकीबें ढूंढनी शुरू कर दी है, उसका कहना कि वह उत्पाद मे मोनो सोडियम ग्लूटामेट प्रयोग नहीं करता, यह उत्पादन मे प्रयुक्त अन्य पदार्थों के विघटन से आ सकता है, हास्यास्पद बहाना है। जो यह सिद्ध करता है कि कम्पनी देश क़े ग्राहकों के स्वास्थ को गम्भीरता से नहीं लेती। खाद्य पदार्थों के मामले मे जितना महत्वपूर्ण यह है कि उसमें कौन कौन से घटक हैं, उतना ही महत्वपूर्ण यह है कि उन घटकों के संयोजन से कोई नवीन इस तरह का घटक तो उत्पन्न नहीं होता जो खाने वाले के लिये खतरनाक हो। विवाद के क्रम मे यह न हो कि दूषित मैगी बाजार मे बिकती रहे, ग्राहक बीमार होता रहे। कम्पनी को तुरन्त बाजार से उत्पाद हटाना चाहियेहै। कडे सार्वजनिक करने चाहिये कि कथित बैच के उत्पादन की मात्रा कितनी थी, कितना उत्पाद वापस आया, कितना ग्राहकों के पेट मे गया।

ग्राहक मन्त्रालय के लिये यह टैस्ट केस है, मन्त्रालय एक कमेटी गठित कर जांच कराये कि मैगी की जांच मे सवा वर्ष कैसे लग गया। खाद्य पदार्थों की जांच के रिजल्ट एक सप्ताह मे मिलने के लिये किस तरह के कौन से कदम उठाने की आवश्यकता है। कमेटी यह भी अध्यन कर सुझाव दे कि खाद्य पदार्थ निर्माता कम्पनियां उत्पाद बाजार मे भेजने के पूर्व कौन कौन से मानक किस तरह सुनिश्चित करें। बाजार मे इस तरह के उत्पाद चिन्हित होने की दशा मे इन उत्पादनो को बाजार से किस तरह की प्रक्रिया अपना कर हटाया जाये तथा नष्ट किया जाये। दूषित मैगी के मामले में जब तक यह तथ्य निकलकर जब तक सामने नहीं आते, कोई अर्थ नहीं। सरकार न तो सीखना ही चाहती है, न ही उसे 125 करोड़ ग्राहकों के स्वास्थ की कोई चिन्ता है। यदि सरकार ग्राहकों के हित मे कार्यरत है तो उसे तुरन्त यह कदम उठाने चाहिये।

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