Thursday 17 July 2014

कब तक इन्सानियत को कत्ल होते देखेगी दुनिया

इस बात में कोई शक नहीं कि वह लोग महान हैं जो साँपों को पालते हैं दूध पिलाते हैं। बाद में जब कभी भी मौका मिलता हे यही साँप कई निर्दोष लोगों को डसकर मौत की नींद सुला देते हैं।  यही नहीं कभी घात लगी तो सांप  इन दूध पिलाने वाले लोगों को भी मारने में कोई कसर नहीं छोड़ता। अब इसे इन लोगों की महानता कहा जाये या मूर्खता यह बताने की स्थिति में तो हम नहीं हैं पर हम यह जरूर कह सकते हैं कि मौत की इबारतों को सहेज कर रखना किसी के लिए भी फायदेमंद नहीं हो सकता। इससे होने वाले नुकसान को हम अपना या दूसरे का नहीं कह सकते।  अंततोगत्वा यह नुकसान समाज का होता है , ऐसे समय में निर्णय लेने में समाज के हितों की अनदेखी नहीं की जानी चाहिए। परन्तु आजकल हो यही रहा है, अपने निजी या राजनीतिक स्वार्थों के चलते हम समाज के इन दुश्मनों को हवा दे रहे हैं ,पाल रहे हैं।  

इंदिरा गांधी और राजीव गांधी इसी तरह के सांपों द्वारा डसे जाने के विश्व के सामने उदाहरण हैं।  भिंडरनवाले और प्रभाकरण को पालते वक्त इंदिरा, राजीव  ने यह नहीं सोचा होगा कि वह सामाजिक हित को किस बलिवेदी पर चढ़ा रहे हैं। दुर्भाग्य की ही बात है कि आज समाज में इन लोगों का झंडा उठाने वाले लोग काफी तादाद में पैदा हो गए हैं। जरा सी हवा चली नहीं की सड़क से लेकर संसद तक इन लोगों की तरफदारी की आवाजें सुनाई देने लगती हैं। इन लोगों को न तो इराक का नरसंहार दिखाई देता है ,न गाजा में बच्चों की चीखती आवाजें सुनाई देती हैं। मलेशिया के विमान में सफर करने वाले उन 80  बच्चों व् 250 लोगों का क्या कसूर था जो उन्हें उक्रेनी आतंकवादियों ने मौत की नींद सुला दिया, अगर इन लोगों को जीने का अधिकार है तो फिर किसको मरना पड़ेगा यह सारी दुनिया देख रही है झेल रही है। मैं एक और विचित्र बात इन दिनों देख रहा हूँ , दुनिया के सभी मानवतावादी इन दिनों खामोश हैं , उन्हें लगता है सांप सूंघ गया है। मानवता के प्रति ये कैसा दृष्टिकोण है। इन लोगों को भी क्या खा जाये आप ही सोचिये, यह किन लोगों के इशारे पर किसके लिए काम कर रहे हैं।   

आज लगभग पूरी दुनिया इस तरह के लोगों की गिरफ्त में है। जो किसी को भी कहीं भी मौत की नींद सुलाने को तैयार बैठे हैं। कोई कारण नहीं है उन लोगों को मारने का जिन्हें ये मारने को तैयार बैठे हैं, ठीक उसी तरह जैसे साँप को नहीं मालूम होता वह किसे काटेगा। जो लोग इन्हे दूध पिला रहे हैं उन्हें भी आज सोचना है और सोचना उन्हें भी है जो मरने वालों की लाइन में खड़े हैं। क्या इलाज होना चाहिए इस बीमारी का, उन्हें किश्तों में तबाही चाहिये जैसे आजकल हो रही है या फिर एक बार गुलशन से काँटों को उखाड फेको बाद में उसे बेहतर बना लेंगे। जो बात तय है वह यह कि इस तरह से वही मरेंगे जो किसी दूसरे को मारने के लिए जी रहे हैं, इसमें भी बड़ी बात यह कि ये लोग यह नही जानते कि इन्हे लोगों को क्यों मारना है। 

आतंक के साये से निकलने के लिए कम से कम आज तो दुनिया में वह छटपटाहट नहीं दिखाई दे रही जो दिखाई देनी चाहिए। शायद इस इंतजार में कि कोई दूसरा ही मरेगा मैं नहीं। जो लोग दुनिया को खून से रंगने का डर दिखाते हैं ,जो दूसरा रास्ता निकालने की बात सुझाते हैं वह दिवास्वप्न देख रहे हैं।उन्हें भी यह मालूम है कि दुनिया किश्तों में मर रही है और वह इसे रोक नहीं सकते। कुछ भी हो कोई भी रास्ता निकला जाये दुनिया को इस बीमारी से निजात दिलाना जरूरी हो गया है।  सभी को इस विषय पर कम से कम खुलकर अपने विचार रखने की आज जरूरत है।

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