Friday 11 November 2016

500 - 1000 के पुराने नोट बन्द, कैशलैस इकनामी की तरफ कदम

500-1000₹ के पुराने नोट बन्द होते ही, एक बात जोर शोर से प्रचारित हुई। सरकार बड़े नोटों का अर्थव्यवस्था में प्रचलन बन्द कर छोटे नोटों को ही अब रखेगी। धीरे धीरे स्पष्ट हुआ कि सरकार पुराने 500-1000₹ के नोट तो रद्द कर रही है, पर साथ में 500-2000₹ के नोट अभी तथा 1000₹ का नोट बाद में ला रही है। इसके कारण अपने रोजमर्रा के खर्चों से जूझते लोगों के बीच भ्रम फैला, जब 500-1000₹ के नोट बन्द ही नहीं हो रहे हैं, फिर यह उपक्रम क्यों ? इससे नोट बन्दी के कारण कोमा में गये विपक्षी नेताओं को आक्सीजन मिली। उन्होने लोगों के भ्रम का फायदा उठाते हुये, जनता की परेशानियों का हवाला देते हुये, जनता के कन्धे पर बन्दूक रख मोदी पर गोले दागने शुरू कर दिये। भ्रम में होने के बावजूद जनता को समझ नहीं आ रहा था, पर अहसास हो रहा था कि उसके लिये कुछ अच्छा हुआ है। नेताओं के एक स्वर में विलाप से वह समझ गया कि गहरी चोट कहां लगी है। उसने कहना शुरू कर दिया कि तकलीफ हम झेल लेंगे, कदम अच्छा है।

अर्थव्यवस्था में सिर्फ छोटे नोट रखने की बात करने वाले, पहले यह समझ लें 13,069 बिलियन रूपयों वाली अर्थव्यवस्था का आकार बहुत बड़ा है, इसमें 86% मूल्य के 500-1000₹ के नोटों का चलन इस  बात का स्पष्ट संकेत है कि बड़े नोटों के बिना यह नहीं चलने वाली। उस पर भी इसमें प्रतिवर्ष 17% के नकली नोट बढ़ते जा रहे हैं। इसमें से बैंको के पास सिर्फ 620 बिलियन रूपयों की ही मुद्रा है। बाकी बची 12449 बिलियन रूपयों की मुद्रा कुछ चलन में है, बाकी लोगों की तिजोरी, गद्दों में दबी पड़ी है। जिसे बाहर निकालने का एक ही रास्ता था, उसका अन्तिम संस्कार कर दिया जाये, जो मोदी ने कर दिया। इतनी बड़ी नकद अर्थव्यवस्था का सुचारू संचालन बड़े नोटों के बिना सम्भव ही नहीं है। इसी कारण 500, 2000 और आगे 1000₹ का नोट सरकार को लाना पड़ रहा है। अब पुराने 500-1000₹ के नोट बन्द करने से इस विशालकाय नकद अर्थव्यवस्था के आकार में बड़ी कटौती करना सरकार के लिये सम्भव होगा। क्योंकि पुराने 500-1000₹ के नोटों को बैंकों के फिल्टर से निकालने की प्रक्रिया में इन नोटों का बहुत बड़ा हिस्सा बाहर होने वाला है। राजनेताओं की चिल्ल पों का यही मुख्य कारण है। एक अनुमान के अनुसार यदि सरकार नकद मुद्रा के संचार पर सही नियन्त्रण रखने में सक्षम रहती है तो देश की 13069 बिलियन रूपयों की नकद अर्थव्यवस्था, 9-10 हजार बिलियन रूपयों तक सिकुड़ सकती है। यदि देश में 500-1000 रुपये के नोटों के प्रचलन को समाप्त करना है तो इस नकद  के आकार को 4-5 हजार बिलियन रूपयों तक सीमित करना पड़ेगा। जिन देशों में 100-50 के नोट ही सबसे बड़े नोट के रूप में प्रचलित हैं। वहां की स्थितियां इसी प्रकार की हैं। इंग्लैण्ड की नकद अर्थव्यवस्था 60 बिलियन पौण्ड की है, जबकि अमेरिका की मात्र 1200 बिलियन डालर की ।

भारत में नकद नोटों के प्रचलन में कटौती करने का एक ही रास्ता है। कैश लैस इकनामी की तरफ बढ़ना, जिससे इतनी बड़ी नकद मुद्रा के रख रखाव खर्च में बड़ी कटौती के साथ ही भ्रष्टाचार और काले धन पर लगाम कसने में भी बहुत बड़ी मदद मिलेगी। इसी कैश लैस इकनामी का जिक्र मोदी दो माह पूर्व अपनी "मन की बात" में कर रहे थे, जिसमें आर्थिक लेन देन के व्यवहार में नकद मुद्रा की आवश्यकता ही न पड़े। यह काम क्रेडिट/डेबिट कार्ड, चेक, ई ट्रान्सफर आदि विभिन्न तकनीकों द्वारा सम्भव है, उसे अपनाने की आवश्यकता है। हम अभी इससे बहुत दूर हैं, हमारा 90% लेन देन नकद मुद्रा से ही होता है। यही मुख्य वजह है कि सिर्फ 2 नोट वह भी 500-1000₹ के बन्द करने पर दो दिन में ही बड़ी संख्या में लोग अपनी रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने के लिये जूझते दिखाई पड़ने लगे । वरना हफ्ते दस दिनों तक इसका प्रभाव पता ही नहीं चलता।

पूरी दुनिया कैशलैस अर्थव्यवस्था की तरफ बढ़ रही है। कुछ बहुत आगे निकल चुके हैं तो कुछ बहुत पीछे हैं, पर सभी प्रयास कर रहे हैं कि कैशलैस अर्थव्यवस्था को अधिकतम स्तर तक अपनाया जा सके।वर्तमान में विश्व के पांच देशों की अर्थव्यवस्था को कैशलैस अर्थव्यवस्था कहा जा सकता है। स्वीडन जहां नकद लेन देन का चलन मात्र 2%है, कनाडा जहां यह 10% तथा दक्षिण कोरिया में 20% है। अफ्रीका के सोमालीलैन्ड व केन्या की गिनती भी विश्व के कैशलैस अर्थव्यवस्था वाले देशों में है। आस्ट्रेलिया, सिंगापुर, हांगकांग, इंग्लैण्ड, अमेरिका तथा नाइजीरिया भी इस दिशा में प्रयत्नशील हैं।

500-1000₹ के पुराने नोट बन्द किये जाने के बाद हम भी इस दिशा में तेजी से बढ़ सकते हैं। परन्तु इसके लिये सरकार के उचित नियन्त्रण व प्रयास की जरूरत है। देश में कोई नई तकनीक आई नहीं कि व्यवसायिक संस्थान ग्राहकों को लूटना शुरू कर देते हैं। ग्राहकों को लूटने की दौड़ में सहकारी और सरकारी संस्थान भी बराबर के सहभागी रहते हैं। सभी जानते हैं कैशलैस अर्थव्यवहारों में व्यवसायिक संस्थानों के कैश के रख रखाव खर्च में बड़ी कमी आती है। अत: कैशलैस व्यवहार के माध्यमों का उपयोग करने वाले ग्राहकों को अतिरिक्त लाभ देकर प्रोत्साहित करना चाहिये, न कि रेल, पैट्रोल पम्प, ज्वैलरों व अन्य व्यवसायियों की तरह अतिरिक्त पैसा वसूल कर उसे हतोत्साहित करे।

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