Tuesday 7 March 2017

वित्त मन्त्री को ग्राहक पंचायत के राष्ट्रीय सचिव (पूर्व) का खुला पत्र


आदरणीय वित्त मंत्री जी,
नमस्कार।

कोई कह रहा था, सावन के अंधे को हरा ही हरा नजर आता है। लगता है आपने भी कुछ इसी प्रकार की धारणा बना ली है। आप उस बात को भी भूल चुके हैं, जिसमें कहा गया है कि किसी धागे को क्षमता से अधिक खींचने पर वह टूट जाता है। आज भारत के ग्राहक भी टूटने की स्थिति में ही पंहुचते जा रहे हैं। आप शायद नोटबंदी के बाद स्थानीय चुनावों में भाजपा की बेहताशा जीत से भ्रमित हो गये हैं।आप शायद यह जानना समझना भी नहीं चाहते कि देश के ग्राहक आज किन स्थितियों से गुजर रहे हैं। देश का ग्राहक आज आपके साथ एक पुण्यात्मा के पुण्यों व उसी तपस्वी की तपस्या के कारण खड़ा है। इसी कारण आपको चहुंओर सफलता मिल रही है। माननीय किसी पुण्य या तपस्या के फल को शिरोधार्य किया जाता है, न कि उसकी प्रतिक्रिया व्यक्त की जाती है या अपने व्यवहार को आक्रामक किया जाता है। नोटबंदी के लिए मिले जनता के समर्थन के बाद आई नवीन बैंक नीति आपका कुछ इसी तरह का कदम है। मान्यवर आप दोनों के बीच का अन्तर भी भूल चुके हैं या उसे अनदेखा कर रहे हैं। मंत्री जी नोट बंदी बड़ी मछलियों पर फेंका जाल था, उसका कोई प्रभाव सामान्य ग्राहकों पर नहीं पड़ना था, जबकि बैंको द्वारा व्यवहार पर लागू नई फीस छोटी मछलियों पर निशाना है। आज वही सबसे अधिक परेशान है, वही सबसे अधिक लुटने वाला है। आदरणीय यह बात सार्वजनिक करने के पहले कम से कम अपनी सरकार द्वारा खुलवाये करोडों जीरो बैलेंस के खाते याआद कर लेते। जिसके लिए आपने अपनी व अपनी सरकार की पीठ थपथपाई थी। अब यह खाता धारक न्यूनतम बैलेंस व फीसष के लिए आवश्यक रकम कहां से जुटायेंगे। अभी तक आपके विपक्षी यही झुनझुना बजाते थे, खाते में 15 लाख आये क्या, अब वह यह भी कहेंगे कि जमा तो कुछ कराया नहीं, आपका पैसा लूटकर उल्टी गंगा बहाने लगे।

मंत्री जी, आपने यह नीति लागू करनेपहले-पहले भारत की आर्थिक सामाजिक स्थिति का भी ख्याल नहीं किया। भारत की अधिसंख्य आबादी गरीब है, यहां के 74% संसाधनों पर 10% लोगों का कब्जा है। बाकी लोगों के हिस्से में 26% संसाधन ही आते हैं, उसमें भी 50% तो गरीबी रेखा के इर्द गिर्द ही हैं, जिनका जीवन व्यापन सुबह से शाम तक भटकने के बाद हाथ आई नकद राशि के सहारे ही चल रहा है। महोदय क्या आपको सचमुच याद नहीं कि आपकी साथी पुण्यात्मा ने ही इन लोगों की पंहुच बैंक तक जीरो बैलेंस खाते खुलवा कर बनाई। क्या आपको यह व्यवस्था पसंद नहीं, आप इसे समाप्त करना चाहते हैं। कम से कम ग्राहक पंचायत के कार्यकर्ताओं को आपकी यह नीति, इसीका अनुसरण करने वाली लगी। क्योंकि इस वर्ग को तो अभी यह आदत लगवानी थी, उसमें वित्तीय अनुशासन लाना था कि वह अपनी रोज की कमाई बैंक में जमा कराये। जब जितनी जरूरत हो उतनी रकम निकाले ताकि इस वर्ग को बचत की आदत लग सके, उसकी बचत देश के काम आ सके। आप तो इस वर्ग को डराने लगे, न्यूनतम बैलेंस रखने, पैसा जमा कराने, निकालने के नाम पर। मान्यवर, आज आप देश को सच सच बता दीजिए, आपने इस वर्ग के करोड़ों खाते क्यों खुलवाये थे। उन्हें वित्तीय अनुशासन सिखाने के लिए या उन्हें लुटवाकर बैंको की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए। आज महत्वपूर्ण यह नहीं है कि बैंक में कितनी बार पैसा जमा कराया जाये या निकाला जाये, महत्वपूर्ण देश के बहुत बड़े वर्ग को वित्तीय अनुशासन सिखाने की है और शायद आपकी सरकार भी यही चाहती है। आप तो छुरी लेकर इनकी ही गर्दन रेतने के लिए दौड़ पड़े। आप यह कदम उठाकर देश के बहुत बड़े वर्ग को डरा रहे हैं। उसे यह समझाने का प्रयास कर रहे हैं कि बैंक धनी लोगों के लिए है, वह बैंक के पास तभी फटकें जब उनमें बैंक के खर्च सहन करने की क्षमता हो। श्रीमान मै उस वर्ग की बात कर रहा हूं जिनकी आय आज भी 5000 से 15000 रुपये प्रतिमाह की है। इतनी रकम में ही अपना परिवार परिवार​ चलाते हैं, जिनको आपने इस आश्वासन के साथ बैंकों तक पंहुचाया कि उनका भला होगा।

मंत्री महोदय माफ कीजिए मैं यह भूल गया था कि नोट बंदी के कारण बैंकों के पास इतना भरमसाट पैसा आया कि आपको बैंकों में इतनी बड़ी संख्या में ग्राहकों की उपस्थिति नागवार लगने लगी। इनकी जरुरत भी नहीं रही, इसीलिए आपने इस वर्ग को बैंक से भगाने की योजना बना डाली। आपकी इस योजना से आपकी सरकार द्वारा जीरो बैलेंस से खुलवाये बैंक खाते ही जीरो हो जायेंगे। अब मुझे भी मालूम पड़ा, दुनिया गोल है, जहां से चले थे वहीं पंहुच गये। आपकी रफ्तार अधिक है इसलिए जल्दी पंहुच गये।

मान्यवर, एक बात कहूं, मैं कैशलैस अर्थव्यवस़्था का बहुत बड़ा समर्थक हूं, चाहता हूं देश तेजी से इस दिशा में आगे बढ़े। परन्तु अर्थक्षेेत्र का जमीन से जुड़ा कार्यकर्ता होने के कारण जानता हूं कि देश में कहां किस रंग व किस्म की जमीन है, इसीलिए कह रहा हूं देश में कैशलैस व्यवहार बढ़ाने व नकद व्यवहार हतोत्साहित करने के हजारों तरीके हैं, उन्हे अपनाइए। इस राह की कठिनाइयों को दूर कीजिए। सबसे बड़ी कठिनाई तो यही है कि कैशलैस व्यवहार करने पर ग्राहक को 2% अतिरिक्त बोझ उठाना पड़ता है। आपने इस सम्बन्ध में तो कुछ किया नहीं, ग्राहक की जेब पर कैंची और चला दी। मेरी आपसे प्रार्थना है, समाज के गरीब ग्राहकों की जेब काटने वाले कामों में सहायक मत बनिए। कम से कम उस पुण्यात्मा का ख्याल कीजिए, जिसकी तपश्या ने हमें यह दिन दिखलाये। आपकी जल्दी कहीं सरकार की तरफ लोगों के देखने का नजरिया ही न बदल दे। आपको चेतावनी या सलाह देने की हममें योग्यता नहीं, अनुरोध कर सकते हैं, कर रहे हैं कि बचत खातों पर बैंक फीस लगाने के निर्णय को तुरन्त वापस लीजिए।

आपका
अशोक त्रिवेदी

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