Thursday, 17 July 2014

कब तक इन्सानियत को कत्ल होते देखेगी दुनिया

इस बात में कोई शक नहीं कि वह लोग महान हैं जो साँपों को पालते हैं दूध पिलाते हैं। बाद में जब कभी भी मौका मिलता हे यही साँप कई निर्दोष लोगों को डसकर मौत की नींद सुला देते हैं।  यही नहीं कभी घात लगी तो सांप  इन दूध पिलाने वाले लोगों को भी मारने में कोई कसर नहीं छोड़ता। अब इसे इन लोगों की महानता कहा जाये या मूर्खता यह बताने की स्थिति में तो हम नहीं हैं पर हम यह जरूर कह सकते हैं कि मौत की इबारतों को सहेज कर रखना किसी के लिए भी फायदेमंद नहीं हो सकता। इससे होने वाले नुकसान को हम अपना या दूसरे का नहीं कह सकते।  अंततोगत्वा यह नुकसान समाज का होता है , ऐसे समय में निर्णय लेने में समाज के हितों की अनदेखी नहीं की जानी चाहिए। परन्तु आजकल हो यही रहा है, अपने निजी या राजनीतिक स्वार्थों के चलते हम समाज के इन दुश्मनों को हवा दे रहे हैं ,पाल रहे हैं।  

इंदिरा गांधी और राजीव गांधी इसी तरह के सांपों द्वारा डसे जाने के विश्व के सामने उदाहरण हैं।  भिंडरनवाले और प्रभाकरण को पालते वक्त इंदिरा, राजीव  ने यह नहीं सोचा होगा कि वह सामाजिक हित को किस बलिवेदी पर चढ़ा रहे हैं। दुर्भाग्य की ही बात है कि आज समाज में इन लोगों का झंडा उठाने वाले लोग काफी तादाद में पैदा हो गए हैं। जरा सी हवा चली नहीं की सड़क से लेकर संसद तक इन लोगों की तरफदारी की आवाजें सुनाई देने लगती हैं। इन लोगों को न तो इराक का नरसंहार दिखाई देता है ,न गाजा में बच्चों की चीखती आवाजें सुनाई देती हैं। मलेशिया के विमान में सफर करने वाले उन 80  बच्चों व् 250 लोगों का क्या कसूर था जो उन्हें उक्रेनी आतंकवादियों ने मौत की नींद सुला दिया, अगर इन लोगों को जीने का अधिकार है तो फिर किसको मरना पड़ेगा यह सारी दुनिया देख रही है झेल रही है। मैं एक और विचित्र बात इन दिनों देख रहा हूँ , दुनिया के सभी मानवतावादी इन दिनों खामोश हैं , उन्हें लगता है सांप सूंघ गया है। मानवता के प्रति ये कैसा दृष्टिकोण है। इन लोगों को भी क्या खा जाये आप ही सोचिये, यह किन लोगों के इशारे पर किसके लिए काम कर रहे हैं।   

आज लगभग पूरी दुनिया इस तरह के लोगों की गिरफ्त में है। जो किसी को भी कहीं भी मौत की नींद सुलाने को तैयार बैठे हैं। कोई कारण नहीं है उन लोगों को मारने का जिन्हें ये मारने को तैयार बैठे हैं, ठीक उसी तरह जैसे साँप को नहीं मालूम होता वह किसे काटेगा। जो लोग इन्हे दूध पिला रहे हैं उन्हें भी आज सोचना है और सोचना उन्हें भी है जो मरने वालों की लाइन में खड़े हैं। क्या इलाज होना चाहिए इस बीमारी का, उन्हें किश्तों में तबाही चाहिये जैसे आजकल हो रही है या फिर एक बार गुलशन से काँटों को उखाड फेको बाद में उसे बेहतर बना लेंगे। जो बात तय है वह यह कि इस तरह से वही मरेंगे जो किसी दूसरे को मारने के लिए जी रहे हैं, इसमें भी बड़ी बात यह कि ये लोग यह नही जानते कि इन्हे लोगों को क्यों मारना है। 

आतंक के साये से निकलने के लिए कम से कम आज तो दुनिया में वह छटपटाहट नहीं दिखाई दे रही जो दिखाई देनी चाहिए। शायद इस इंतजार में कि कोई दूसरा ही मरेगा मैं नहीं। जो लोग दुनिया को खून से रंगने का डर दिखाते हैं ,जो दूसरा रास्ता निकालने की बात सुझाते हैं वह दिवास्वप्न देख रहे हैं।उन्हें भी यह मालूम है कि दुनिया किश्तों में मर रही है और वह इसे रोक नहीं सकते। कुछ भी हो कोई भी रास्ता निकला जाये दुनिया को इस बीमारी से निजात दिलाना जरूरी हो गया है।  सभी को इस विषय पर कम से कम खुलकर अपने विचार रखने की आज जरूरत है।

Saturday, 12 July 2014

अच्छे दिन आने वाले हैं - मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी योजना



मोदी सरकार ने १० जुलाई को जबसे अपना पहला आंशिक बजट संसद में रखा है , देश भर के सभी मीडिया में यह गहन चर्चा का विषय बना हुआ है। तमाम टी वी चैनलों पर पेनलिस्ट बजट की चीरफाड़ में व्यस्त हैं। इस बार 6 माह के बजट पर कुछ इस तरह लोग पिले हैं कि लगता है इसके बाद दुनिया नहीं है।  लेकिन सभी एक महत्वपूर्ण बात को छोड़ रहे हैं या फिर इस तरफ उनका ध्यान ही नहीं है। जिसके आधार पर निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि अच्छे दिन जरूर आएंगे।  अर्थव्यस्था ठीक पटरी पर आयेगी।  देश के सूखे जैसे हालात कुछ समय के लिए लोगों को विचलित कर सकते हैं, परन्तु अंतिम बाज़ी मोदी सरकार के हाथ में ही होगी।  अपने बजट भाषण में वित्तमन्त्री ने एक जिक्र सामान्य सा किया था, या तो लोगों ने उसे सुना नहीं या फिर उसे अनसुना कर दिया. क्योंकि कहीं भी उस बात का जिक्र बजट की चीरफाड़ करने में सुनाई नहीं दिया।  वित्तमंत्री ने कहा था कि हर परिवार के 2 बैंक खाते खोले जायेंगे। यह छोटी सी घोषणा आने वाले दिनों में देश की अर्थव्यस्था में क्रन्तिकारी परिवर्तन लाने वाली है। वित्तमंत्री ने चाहे अत्यंत सहजता से यह घोषणा की, परन्तु  पूरी गंभीरता से इस योजना पर काम शुरू कर दिया है।

सभी जानते हैं देश में लोगों के पास सरकारी पैसा एक रूपये के स्थान पर 10 से 20 पैसे ही पहुँचता है।  बाकी का 80 से 90  पैसा रास्ते में ही खा लिया जाता है।जिसके कारण 66 वर्षों से देश में कोई भी योजना बना लो, उसमें पलीता लग जाता है।  भ्रष्टाचार की इस दलदल से सभी परेशान हैं , इस पर नकेल चाहते हैं। इस पर नकेल तभी कसी जा सकती है जब कोई फुलप्रूफ तरीका निकाला जाये कि जिसको जितना पैसा पहुँचाना है उतना ठीक उसी के हाथ में जाय। इधर होता यह है कि सरकार किसी वर्ग विशेष को वित्तीय अनुदान देती है, जिसको अनुदान दिया जाता है ,उस तक पहुँचने के स्थान पर पैसा रास्ते में ही गायब हो जाता है । 

काफी समय से यह बात चर्चा में है कि सरकार जिसको मदद देना चाहती है ,पैसा सीधे उसके बैंक खाते में सरकार द्वारा ही स्थानान्तरित किया जाये।  परन्तु यह बात जितनी सरल दिखाई देती है उतनी है नहीं।  6,00,000 से अधिक गावों वाला विविधता भरा हमारा देश। साक्षरता बहुत कम, इसे किस तरह किया जाये।  कठिन असम्भव काम को करने का नाम ही मोदी है।  वित्तमन्त्री ने सहजता से जिस बात का उल्लेख किया , जिसे दिग्गज पकड़ नहीं पाये वह यही असंभव काम था। सिर्फ घोषणा ही नहीं हुई है, सरकार ने इस पर गंभीरता से काम भी शुरू कर दिया है , इस काम को पूरा करने का लक्ष्य भी तय कर दिया है। जो असम्भव को चुटकी बजाते करने की सामर्थ्य रखता हो, उसके नेतृत्व में अच्छे दिन आने में किसी को संदेह भला हो सकता है ,सिर्फ उनको छोड़कर जो देख समझ रहे हैं कि यह लम्बी दौड़ का घोडा आ गया है और बाज़ी उनके हाथ से निकल गई है। 

अब बात करते हैं इस योजना की,सरकार देश के सभी परिवारों को बैंक से जोड़ने जा रही है, सरकार ने 200 मिलियन नए बैंक खाते 1 वर्ष में खोलने का लक्ष्य रखा है, प्रत्येक परिवार के 2 बैंक खाते खोले जायेंगे। 'सम्पूर्ण वित्तीय समावेशन योजना' नाम की इस योजना के अन्तर्गत अन्य वित्तीय सेवाओ तथा पेंशन को भी समाहित करने की योजना है। यह काम ढंग से तय समय सीमा में पूरा हो इसके लिए वित्तमन्त्री ,रिजर्व बैंक के गवर्नर ,बीमा नियामक आयोग के अध्यक्ष तथा पेन्सन बोर्ड के अध्यक्ष को इस काम के देखरेख की जिम्मेदारी भी दे दी गई है। 2011 की जनगणना को आधार मानते हुए देश के 246.7 मिलियन परिवारों में से सिर्फ 144. 8 मिलियन परिवारों की ही बैंकों तक पहुँच है।सभी परिवारों को बैंक से जोड़ने वाली इस योजना को सफल बनाने वाले यह सभी बैंक खाते 15 अगस्त 2014 से खुलना प्रारम्भ होकर 14 अगस्त 2015 तक पूरे कर लिए जायेंगे। सभी जिलों को सहायक सेवा क्षेत्र योजना के अन्तर्गत 1000 से 1500 परिवारों तक इस योजना से इस तरह जोड़ा जायेगा कि किसी भी परिवार को बैंक के लिए 5 कि. मी. से अधिक दूर न जाना पड़े। मार्च 2016 तक देश के सभी 6,00,000 गावों को इस योजना का अंग बना लिया जायेगा। यही नहीं इस योजना को समय से पूरा करने के लिए 60,000 बैंक संवाददाताओं की नियुक्ति, भी की जाएगी जिसके लिए सरकार और बैंकों के सेवानिवृत्त कर्मचारी ,डाकघर कर्मचारियों तथा किराना दुकानदारों की मदद ली जाएगी। 

इस योजना का सीधा अर्थ है की देश में चलने वाले सभी पैसे के लेनदेन बैंकों के माध्यम से करना।पैसों का गायब होना रोकना, एक बार यह योजना पूरी हो गई तो शायद सरकार द्वारा दी जाने वाली वित्तीय सहायता में कटौती करने की जरूरत ही न पड़े , क्योंकि पैसा सीधा उन तक पहुंचेगा जिनको देना है , बीच में भ्रष्टाचार के सभी रस्ते बंद हो जायेंगे। शायद इस योजना के गर्भ में बहुत कुछ छिपा है,शायद सरकार जो बहुचर्चित टैक्स सुधार  लागू करना चाहती  है। वह रास्ता भी इसी से निकलने वाला होगा।  जिस पर अभी से कुछ कहना उचित नहीं है वह समय समय पर बाहर आयेगा, परन्तु एक बात तय है, यह रास्ता देश को खुशहाल बनायेगा - अच्छे दिन लायेगा।

Thursday, 5 June 2014

क्यों नहीं लिख रहे डाक्टर जेनरिक दवाइओं के प्रिस्क्रिप्शन

दवाई कंपनियों और दवाई के दामों पर चर्चा कोई नई नहीं है। पेटेन्टेड दवाइओं और जेनेरिक दवाइओं की कीमतों में अन्तर पर चर्चा वर्षों से चल रही है। अब तो यह पूरे विश्व में फ़ैल चुकी है। बड़ी कम्पनियाँ अपनी दवाइओं के दाम उनकी उत्पादन लागत से हज़ारों  गुना ज्यादा वसूलती हैं। इन कम्पनियों ने इस बात पर भी बहुत हो हल्ला मचाया कि भारतीय कम्पनियां वही दवाईयां जेनेरिक नाम से बहुत ही कम कीमतों पर बेचती हैं अतः उन पर प्रतिबन्ध लगाया जाय। नोवार्टिस नाम की कम्पनी तो इस लड़ाई को उच्चतम न्यायालय तक खींच ले गई। यह दूसरी बात है कि नोवार्टिस इस लड़ाई को उच्चतम न्यायालय में जीत नहीं सकी।बाजार में दवाएं तो दोनों तरह की मिलती हैं। परन्तु डाक्टर अपने मरीजों को कौन सी दवायें लिख कर देते हैं, यह बात महत्वपूर्ण है। इसके बारे में भी बहुत सी कहानियां प्रचलित हैं। आज की महंगाई में ग्राहकों की मुसीबत यह है की वह महंगी दवायें कैसे खरीद कर खाए। इस ऊहापोह की स्थिति में सिर्फ डाक्टर ही मरीजों की मदद कर सकते हैं। परन्तु विभिन्न कारणों से यह हो नहीं रहा है।  अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत इस बारे में विचार कर रही थी कि किस तरह से डाक्टरों में इस बात को फैलाया जाये कि वो मरीज़ों को जेनरिक दवाएं ही लिख कर दें। 

महंगाई के इस दौर में मरीजों की मदद के लिए भारतीय चिकत्सा परिषद (इंडियन मेडिकल काउन्सिल ) आगे आई है।  यह संस्था देश में डाक्टरों का रजिस्ट्रेशन करती है तथा उनके लिए आचार संहिता तय करती है। इस संस्था में पंजीयन कराये बिना कोई भी डाक्टर मरीजों का इलाज नहीं कर सकता है और यदि इस संस्था को लगे कि डाक्टर ने इलाज में आचार संहिता का पालन नहीं किया है तो डाक्टर का लाइसेंस रद्द किया जा सकता है। इस संस्था ने व्यावसायिक आचरण,शिष्टाचार तथा सहिंता नियमावली 2002 की धारा 1 - 5 में स्पष्ट उल्लेख किया है - "जहां तक सम्भव हो सभी फिजिशियन ,जेनेरिक नाम से दवाइओं को लिख कर दें।  वह सुनिश्चित करें कि उनके द्वारा लिखा दवाई का पर्चा दवाओं के प्रयोग के बारे में संतुलित है।"

इंडियन मेडिकल काउन्सिल ने तो नियम बना दिया परन्तु अभी देश में यह अच्छी तरह से लागू नहीं है। अतः अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत के कार्यकर्ताओं का यह कार्य है कि वो डाक्टरों से मिलकर प्रार्थना करें कि डाक्टर अधिक से अधिक जेनेरिक दवाइयाँ ही लिखें।  देश भर में फैले इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पदाधिकारियों से मिलकर अनुरोध करें कि वह अपने सदस्यों को जेनरिक दवाइओं के अधिक से अधिक उपयोग के लिए प्रेरित करें 

Saturday, 12 April 2014

जब मुलायम के गुरु लोहिया संघ की मदद से चुनाव लड़े

डा राममनोहर लोहिया  का खुद को चेला  बताकर ,समाजवादी होने का ढोंग रचाकर ,परिवारवाद की राजनीति करने वाले मुलायम सिंह का न तो लोहिया  से कुछ लेना देना है ,न ही समाजवाद से। हमेशा मुलायम उसी कांग्रेस की गोद में बैठने को तैयार रहते हैं ,जिसके विरुद्ध उनके गुरु डा राममनोहर लोहिया कदम कदम पर लड़ने को तैयार रहते थे। एक तरफ जहाँ डा राममनोहर लोहिया कांग्रेस के विरोध में सभी विरोधी दलों को एक साथ लेने के लिए तत्पर रहते थे ,मुलायम उनके साथ सिर्फ अपना मतलब सिद्ध करने के लिए जाते हैं। ऐसा नहीं कि कांग्रेस में अब कोई बहुत बड़ा परिवर्तन आ गया है , वह तो पहले से अधिक स्वार्थी और भृष्ट हो गई है.अपने साथ साथ उसने मुलायम को भी भृष्ट कर दिए है और समाजवाद को भी।

60 के दशक में विभिन्न प्रदेशों में संविद सरकारें देश में पहली बार बनी थीं। इसके पीछे की लोहिया की भूमिका को मुलायम भूल सकते हैं देश नहीं। उस समय डा राममनोहर लोहिया  ने किन राजनैतिक दलों को साथ लिया था उसे जानबूझ कर मुलायम इसलिए नहीं याद करना चाहते क्योंकि इससे उनके परिवार की राजनैतिक महत्वकाँक्षाऐं प्रभावित होती हैं यह सभी बातें उनके दिमाग में इस तरह घुस गई हैं की वह देश समाज सभी को भूलकर अनर्गल प्रलाप करने लगे हैं ,सामाजिक विखंडन करने में लग गए हैं।

संघ और बी जे पी को पानी पानी पी पी कर कोसने वाले मुलायम के गुरु राममनोहर लोहिया राष्ट्रीय स्वयम सेवक संघ की सहायता से ही कांग्रेस के नेहरू को चुनौती देने में सक्षम हुए वह संघ की ताकत पर ही चुनाव लड़ने को तैयार हुए। बात 1962 चुनाव की है ,लोहिया प्रयाग प्रभुदत्त ब्रह्मचारी जी से यह अनुरोध करने के लिए आये थे कि ब्रह्मचारी जी नेहरू जके खिलाफ प्रयाग से चुनाव लड़ें ,ब्रह्मचारी जी ने कहा कि 1952 में वह चुनाव दूसरे प्रश्नों के कारण लड़े थे अभी जो प्रश्न हैं उन पर आप अच्छा काम कर सकते हैं। यही नहीं ब्रह्मचारी जी ने लोहिया को प्रयाग से नेहरू के खिलाफ चुनाव लड़ने को कहा। लोहिया का कहना था कि प्रयाग सीट पर उनका बहुत कम काम है अतः वह कैसे लड़ सकते हैं।  इस पर ब्रह्मचारी जी ने उन्हें प्रयाग के जिस व्यक्ति से मिलने को कहा वह थे राष्ट्रीय स्वयम सेवक संघ के चतुर्थ सरसंघचालक श्री रज्जु भैया जी ,लोहिया रज्जु भैया जी से मिले जो उन दिनों वहीँ पर संघ कार्य करते थे , रज्जूभैया जी ने लोहिया को सभी बातें विस्तार से समझाईं कि ब्रह्मचारी जी का चुनाव कैसे लड़ा गया ,क्या मुद्दे थे ,कैसे वोट मिले ,क्या बातें सामने आयीं , नेहरू को कैसे अच्छी टक्कर दी जा सकती है आदि आदि। लोहिया का कहना था कि उस क्षेत्र में उनकी 2 ,3 स्थानों पर भी कमेटियां नहीं हैं ,जनसंघ से भी कभी कभी ही बात होती है , इस स्थिति में काम कौन करेगा। रज्जू भैया जी ने उन्हें समझाया की संघ की उस क्षेत्र में 60 शाखाएं हैं अतः संपर्क का लाभ उठाया जा सकता है ,यदि आप खड़े होते हैं तो उन लोगों के लिए काम करने में कोई कठिनाई नहीं होगी। रज्जु भैया जी की इस बात से लोहिया जी खुश हो गए और कहने लगे यदि 60 जगह पर आपका संपर्क है तो ठीक है सभी जगह कह देना। लोहिया जी प्रयाग से राष्ट्रीय स्वयम सेवक संघ की सहायता से चुनाव लड़े , अच्छा लड़े। नेहरू जो उन दिनों सबकी जमानत जब्त करवा देते थे लोहिया की जमानत जब्त नहीं करा पाये।

आज मुलायम के पास न तो समाजवाद का सिद्धान्त है न ही कोई विचारधारा। एक भीड़ है जिसके सहारे वह वह तमाम हथकंडे अपनाकर सत्ता में रहना चाहते हैं। जहाँ विचारधारा समाप्त हो जाती है ,देश समाज के विषयों का महत्व ख़त्म हो जाता है। इसका स्पष्ट चित्र देश के सामने है ,इस तरह के दल और व्यक्ति का क्या करना चाहिए सब जानते हैं विशेष रूप से आज का प्रबुद्ध युवा मतदाता। 

Wednesday, 9 April 2014

जीवनावश्यक वस्तुओं कि कीमतें स्थिर रखी जाएँगी।

अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत ने भा ज पा सहित सभी राजनैतिक दलों को ग्राहकों की मांगों से सम्बन्धित एजेंडा घोषणापत्र में शामिल करने को भेजा था। सबसे अहम् मांग जीवनावश्यक वस्तुओं की कीमतों के बारे में थी।  ग्राहकों ने बीते 10 सालों की सरकार के कार्यकाल में भुगता है ,हर दूसरे दिन कीमतें बढ़  जाती थी , डीजल ,पेट्रोल और रसोई गैस ने तो हद ही कर दी थी। मुख्य मांग थी बजट से बजट तक जीवनावश्यक वस्तुओं की कीमतें स्थिर रखी जाएँ। भा ज पा ने अपने घोषणा पत्र में ग्राहक पंचायत की इस मांग को प्रमुखता दी है। वादा किया है कि जीवनावश्यक वस्तुओं कि कीमतें स्थिर रखी जाएँगी।


ग्राहक पंचायत भा ज पा के घोषणा पत्र का स्वागत करती है।हम चुनाव में भा ज पा का समर्थन करने कि सभी ग्राहकों से अपील करते हैं तथा यह भी विश्वास दिलाते हैं कि  ग्राहक पंचायत यहाँ रुकने वाली नहीं है। दिन रात सर्कार पर निगाह रखेगी और ग्राहकों से किये वादों को पूरा करने के लिए दबाव बनाएगी।

Thursday, 3 April 2014

कांग्रेस जानबूझकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बारे में ग़लतफ़हमी फैला रही है

स्वतन्त्रता पूर्व से ही कांग्रेस नेता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ  प्रति विद्वेष पाले हुए थे। यद्यपि उन्हें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बारे  में तनिक भी जानकारी नहीं थी। न जाने किन राजनैतिक कारणों से उनमें यह ग़लतफ़हमी थी। जबकि संघ के कई पुराने स्वयंसेवक आज़ादी से पूर्व
कांग्रेस के साथ मिलकर स्वतन्त्रता की लड़ाई में लगे हुए थे। संघ की प्रारम्भ से ही प्रचार विमुख रहने की आदत रही है , जिसके कारण संघ ने कभी समाज को अपने बारे में अधिक कुछ बताया नहीं और कांग्रेस के नेता दुस्प्रचार करते हुए समाज के मन में विष का बीजारोपण करते रहे , संघ के स्वयंसेवकों द्वारा राजनैतिक दल जनसंघ कि स्थापना के बाद से तो उनका संघ और जनसंघ पर हमला और तेज हो गया। दूसरे कांग्रेस के नेहरू इस बात का खास ख्याल रख रहे थे कि उनके लिए कोई भी राजनैतिक दल चुनौती न बन पाये , आतः उन्होंने धर्मगत, जातिगत सभी समीकरण बैठा ली थी। उन्हें अन्य किसी दल से तो खतरा था ही नहीं ,सिर्फ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों के जनसंघ से खतरा था कि कालान्तर में यही दल कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती बन सकता है। अतः उन्होंने प्रारम्भ से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और जनसंघ पर साम्प्रदायिकता कि मुहर लगानी शुरू कर दी थी। आज भी देश में कांग्रेस और अन्य दल इसी साम्प्रदायिकता के आरोप के सहारे जनसंघ के संवर्धित स्वरुप भा ज पा से चुनाव में मुकाबला करते हैं। 

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के चतुर्थ सरसंघचालक प्रो रज्जू भैया के बारे में पड़ते हुए एक प्रकरण सामने आया जिससे पता चलता था कि कांग्रेस के बड़े नेता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बारे में कुछ भी नहीं जानते थे फिर भी उसके विरुद्ध विष वमन करते थे। गांधी जी की हत्या के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया था , अन्य स्वयंसेवकों के साथ रज्जू भैया भी जेल में थे , उनकी माता जी उनसे मिलने आती थी , उन्होंने लगभग ५ महीने बाद रज्जू भैया के पिताजी से जो कि चीफ इंजीनियर थे और बहुत व्यस्त रहते थे से कहा कि आप भी एक बार अपने बेटे से जेल में मिल आइये। जब रज्जू भैया के पिता जी उनसे मिलने रेल से जा रहे थे ,शास्त्री जी भी उसी डिब्बे में थे। उन्होंने पूछा कि कहाँ जा रहे हो। रज्जू भैया के पिताजी ने कहा मेरा बड़ा बेटा राजेन्द्र जेल में है ,उसीसे मिलने जा रहा हूँ। शास्त्री जी ने कहा आपका बेटा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का बड़ा कार्यकर्ता  है। उसे समझाईये कि संघ जैसे खतरनाक संगठन में न जाये। रज्जू भैया के पिताजी ने थोडा रूककर कहा कि मैं संघ के बारे में तो अधिक नहीं जानता ,परन्तु अपने पुत्र को अच्छी तरह जनता हूँ , अगर मेरा पुत्र उस संस्था में है तो वह संस्था ख़राब नहीं हो सकती। तब शास्त्री जी ने कहा कि अपने पुत्र से कहिये कि संघ के विषय में बताते हुए एक पत्र मुझे लिखे।  रज्जू भैया ने शास्त्री जी को पत्र लिखा, यह पत्र बाद में पाञ्चजन्य में भी छापा था। शास्त्री जी ने 2 - 3 दिन बाद ही 5 - 6 स्वयंसेवकों के रिलीज आर्डर भिजवा दिए। इस घटना से स्पष्ट है कि कांग्रेस के बड़े नेता भी संघ के बारे में नहीं जानते थे , जिसे पता चल जाता था वह संघ के प्रति आदर भाव से भर जाता था। संघ कि प्रचार विमुखता इसमें और बाधक बनी। कांग्रेस के नेता समाज को संघ के बारे में उल्टी सीधी बातें बता कर भ्रमित करते रहे , बाद में तो राजनैतिक कारणों से सम्प्रदाय विशेष को अपने से मिलाने के खेल में,  यह कांग्रेस के लिए शिगूफा ही बन गया।तब से आज तक कांग्रेस के नेताओं ने संघ के खिलाफ साम्प्रदायिकता की गेंद उछालने में लगे हुए हैं , दूसरे दलों को भी यह बात अपेक्षाकृत सरल लगती है , इसीलिए वह भी इस में शामिल हो जाते हैं।  आज भी बहुत से लोग संघ के विषय में न जानते हैं, न समझते हैं। कांग्रेस के नेता अपनी राजनेतिक रोटियां सेंकने के लिए समाज को भ्रम में बनाये रखने में लगे हुए हैं।  

2014 का जो चुनाव महंगाई , भृष्टाचार को केन्द्र में रख कर लड़ा जाना चाहिए , वह आज साम्प्रदायिकता पर केंद्रित हो रहा है। कोई भी दल कांग्रेस से महंगाई , भृष्टाचार को केंद्र में न रख कर सवाल नहीं पूछ रहा है।  सभी भा ज पा को सांप्रदायिक ठहराने में जी जान से जूटे  हैं। और तो और जिनका जन्म ही भृष्टाचार का विरोध करने के लिए हुआ था ,वह भी इसी राग का रियाज करने में जुट गए हैं। यह तो बात चुनाव के समय की  है। संघ के स्वयंसेवकों के सामने, समाज की ग़लतफ़हमी दूर करने का यह बहुत बड़ा कार्य है।  अब समय भी अधिक नहीं है , कार्य बढ़ने के लिए और देश की प्रगति के लिए यह बहुत ज़रूरी है। 

Wednesday, 2 April 2014

अन्ना ने केजरीवाल को उसकी औकात बता दी ,अपने अपमान का बदला ले लिया

अन्ना हज़ारे ने केजरीवाल को आईना दिखा दिया। अन्ना की भ्रष्टाचार विरोधी छवि का फायदा उठाकर ,पहले अन्ना  के साथ अपना नाम चमकाने और फिर अन्ना से अलग होकर राजनैतिक दल बनाने वाले केजरीवाल की हरकतों से अन्ना हतप्रभ ही नहीं क्षुब्ध भी थे।सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में विख्यात ,बेदाग छवि के अन्ना राजनीति से कोसों दूर थे। वह ठगा महसूस कर रहे थे जब केजरीवाल अन्ना  के  नाम का दिल्ली में भ्रम फैलाकर,रात दिन कांग्रेस को कोसने के बाद भी कांग्रेस की  ही मदद से दिल्ली का मुख्यमन्त्री  बन गया। शासन में आने के बाद केजरीवाल ने कभी बंगले के नाम पर ,कभी सुरक्षा के नाम पर तो कभी आम लोगों के काम करने के नाम पर जिस तरह की उछल कूद मचाई उससे अन्ना की जिंदगी भर में कमाई छवि को नुकसान पहुँच रहा था। दूसरे अन्ना यह भी समझ चुके थे कि केजरीवाल अपने विदेशी आकाओं के इशारे पर, देश के खिलाफ षड्यंत्र कर रहा है।  अतः उनके लिए यह ज़रूरी हो गया था कि न सिर्फ केज़रीवाल से दूरी बढ़ाएं बल्कि  केजरीवाल का कद बढ़ाने में मदद करके उन्होंने जो पाप किया था उसका प्रायश्चित भी करें। अन्ना के लिए यह बहुत ज़रूरी हो गया था कि केजरीवाल को उसकी औकात बतायें।

अन्ना समझ गए थे कि शीर्ष पर बने रहने के लिए दो रास्ते होते हैं ,पहला लगातार आगे आगे बढ़ते जाना ,दूसरा जो आगे बढ़ रहा है उसकी टांग खींचकर उसे पीछे धकेलना। आजकल विश्व के शीर्षस्थ देश दूसरा रास्ता अपना रहे हैं। चारो और दुनिया के देशो में जो अराजकता तेजी से बढ़ी है उसके पीछे यही कारण है। यह करने के लिए शीर्षस्थ देशों की कार्यप्रणाली भी अजीब है ,वह उसी देश के लोग चुनते हैं जिसकी टाग खींचनी
होती है।शीर्षस्थ देश उस देश के एन जी ओ को धन देकर उनके माध्यम से उसी देश की जनता को विरोध करने के लिए खड़ा करते हैं।  एक उद्धरण है सभी  जानते हैं कि देश में बिजली की कितनी कमी है ,इसे पूरा करने के लिए हमे तेजी से पॉवर प्लांट लगाने होंगे , यदि हम इस दिशा में तेजी से बढ़ना चाहते हैं तो परमाणु पॉवर प्लांट से बेहतर कोई विकल्प नहीं है। कुछ दिन पहले तमिलनाडु के कुडानकुलम में परमाणु बिजली घर लगाया गया था। शीर्षस्थ देश नहीं चाहते कि हमारा देश जल्दी जल्दी उन्नति करे ,उन्होंने खड़ा कर दिया अपने धन से पलने वाले एन जी ओ को विरोध करने के लिए। आप सभी जानते हैं किस तरह से विरोध हुआ था। दूसरी तरफ 2009 से कांग्रेस पार्टी अपनी पकड़ खोती जा रही थी। जो खेमा मज़बूत होकर उभर रहा था वह उसी अटल बिहारी बाजपेयी के दल से सम्बंधित था जिसने अमेरिका के लाख विरोध के बाद भी पोखरण परमाणु परीक्षण करवा दिया था।यही नहीं अमेरिका के प्रतीबन्धो की परवाह न करते हुए प्रतिबन्ध समाप्त करवाने में उसे घुटने टेकने पर मज़बूर कर दिया था। देश में स्वाभिमान जागने लगा था। बाद में कारगिल युद्ध के समय जब अमेरिका ने भारत और पाकिस्तान के प्रधानमन्त्रियों को समझौते के लिए बुलाया था ,भारत ने मना कर दिया था। अमेरिका उस समय खून के घूंट  पीकर रह गया था। इस बार तो मोदी आगे था ,जो हट में अटल जी से कहीं आगे हैऔर अमेरिका ने वीसा मामले में उनसे पहले ही पंगा पाल रखा है।

 अतः अमेरिका ने फोर्ड फाउंडेशन के माध्यम से 2005  से 2010 तक करोड़ों रुपया खाने वाले केजरीवाल को तलब किया। तय यह हुआ कि भ्रष्टाचार का शोर मचाकर भीड़ जुटाई जाये। केजरीवाल कि औकात नहीं थी कि लोगों को इकठ्ठा कर सके। तलाश शुरू हुई ,अन्ना जो महाराष्ट्र में काफी काम कर चुके थे, साफसुथरी छवि के गाँधीवादी थे ,उन्हें केजरीवाल ने पटाया ,अन्ना सीधे साधे गांव  के  निवासी थे झांसे में आ गए।और भी लोगों को जोड़ा गया ,अधिकतर एन जी ओ वाले ही थे।  दिल्ली में अनशन शुरू हुआ भीड़ बढ़ी। केजरीवाल खुश हो गया। उसने तो अन्ना का बलिदान करने के योजना बना ली थी ताकि देश में अशांति फ़ैल जाये ,उस समय रामलीला मैदान पर अन्ना के खींचते अनशन के बारे में सोचिये ,अग्निवेश द्वारा किये खुलासे के बारे में सोचिये और बाद के घटनाक्रम जिसमे अन्ना कि परवाह करे बिना राजनैतिक पार्टी बना ली गई ,अन्ना को दूध कि मक्खी की तरह निकाल कर जिस तरह फेंक दिया,गया पूरे  घटनाक्रम को एक साथ रखकर सोचिये। योजना तो दूसरी थी। शुरू में अन्ना चुप रहे ,अन्ना के चुप रहने का शातिर केजरीवाल ने फायदा उठाया और दिल्ली के चुनावों में अन्ना के नाम का उपयोग करके आगे बढ़ने में सफलता प्राप्त कर ली।

इसीलिए ज़िन्दगी भर राजनीति से दूर रहने वाले अन्ना ने भी केजरीवाल की तरह ही एक चाल चली.उन्होंने मुख्यमन्त्री केजरीवाल पर  कटाक्ष करना शुरू किया , बंगाल की मुख्यमन्त्री ममता बनर्जी कि तारीफ करनी  शुरू कर दी ,यही नहीं ममता को हर मामले में केजरीवाल से अच्छा बताया और तो और खुद भी ममता का प्रचार करने के लिए आगे बढे ,मंच साझा किया ,वह सब किया जो उन्होंने ज़िंदगी में कभी नहीं किया था। पूरा देश उन्हें हतप्रभ सा देख रहा था ,कुछ तो यह भी कह रहे थे कि अन्ना सठिया गए हैं , पर अन्ना चुपचाप प्रायश्चित करने में लगे थे। कुछ बोले बिना केजरीवाल की औकात देश को बता रहे थे। देश के लोगों  को केजरीवाल की असलियत दिखा रहे थे। सबने देखा होगा कि इन्ही दिनों केजरीवाल का विरोध ही नहीं बढ़ा बल्कि दिल्ली के लोग भी तरह तरह की आलोचनाएं करने लगे। ममता की दिल्ली रैली तक अन्ना ने यह सब चलने दिया ,उसी दिल्ली तक जहाँ उन्होंने देश को समझाया था कि वह तो सामाजिक कार्यकर्ता हें  ,राजनीति से उनका कोई लेना देना नहीं है।जिन  दिल्ली के नागरिकों को केजरीवाल ने उनके नाम पर गुमराह किया था , उन्हें इशारों इशारों में समझा दिया कि केजरीवाल नौटंकी है ,उससे उनका कोई लेना देना नहीं है, वापस रालेगाव सिद्धी लौट गए अपने उसी पुराने सामाजिक परिवेश में।अब पूरा देश समझ चुका है ,सामाजिक कार्यकर्ताओं को धोखा देने वाला मदांध केजरीवाल कितनी भी उठा पटक कर ले. देश कि जनता समझ गयी है। अन्ना  ने अपना बदला ले लिया है। 16 मई को देश की जनता इस सामाजिक जरासन्ध का वध करने वाली है , केजरीवाल और उसकी आप पार्टी दोनों का विसर्जन होना है।