Saturday 6 June 2015

राहुल के पैंतरों मे कितना दम

राहुल गांधी ने 58 दिनों की छुट्टी के बाद अपनी नई टीम के साथ जिस नये अन्दाज मे भा ज पा सरकार के विरूद्ध अभियान छेड़ा है। वह राहुल को जानने समझने वालों को चौकाने वाला है। अनेक वर्षों तक संसद मे मौन रहने वाला अचानक संसद और जनता के बीच इतना क्रियाशील कैसे हो गया। यह दीगर बात है कि वह जो मुद्दे उठा रहे हैं, जिस तरह उठा रहे हैंं। उनके सिपहसालार इन मुद्दों का जो फॉलो अप कर रहे हैं, उसका लाभ कांग्रेस को कितना मिलता है, परन्तु जो बात तय है वह यह कि शीघ्र ही राहुल गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष बनाया जाने वाला है। यद्यपि लोकसभा चुनावों मे अभी चार वर्ष का समय है, परन्तु इस बीच होने वाले विभिन्न राज्यों के चुनाव उनकी परीक्षा लेंगे।

 राहुल ने कांग्रेस की पुर्नस्थापना के लिये मोदी द्वारा किये प्रयोग को ही रणनीति बनाया है। मोदी ने जिस प्रकार गुजरात का मुख्यमंत्री रहते हुये, स्वयं को सोनिया के विरूद्ध सीधे मैदान मे उतार कर, दोनो के बीच प्रतिस्पर्धा पैदा कर दी। यू पी ए शासनकाल मे राज्य के मुख्यमंत्री के रूप मे केन्द्र की विभिन्न बैठकों मे भाग लेते समय, केन्द्र की योजनाओं और गुजरात की परियोजनाओं को तुलनात्मक स्वरूप मे देश के सामने रखना प्रारम्भ कर दिया, उसने ही शनः शनः मोदी को राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने के साथ ही, सोनिया के प्रमुख प्रतिद्वन्दी रूप मे देश के सामने खड़ा कर दिया। राहुल कांग्रेस के मात्र 44 सांसदों के भरोसे स्वयं को मोदी के मुख्य प्रतिद्वन्दी के रूप मे स्थापित करने की रणनीति पर चल रहे हैं। इसीलिये वह मोदी को पानी पी पी कर कोसने का कोई अवसर नहीं छोड़ते, फिर चाहे महू मे बाबा साहब आंबेडकर के जन्म दिवस कार्यक्रमों को शुरू करने वाली सभा ही क्यों न हो।

राहुल की ताकत है कांग्रेस का विस्तृत नेटवर्क जो आज भी बिखरा नहीं है। साथ ही प्रत्येक कार्यकर्ता की गांधी परिवार मे आस्था, जो कांग्रेस की विभिन्न चुनावों मे इतनी बुरी स्थिति होते हुए भी हिली नहीं है। इन्ही के सहारे राहुल संसद मे और संसद के बाहर मोदी को घेरने का चक्रव्यूह रच रहे हैं। राहुल की रणनीति का मुख्य हिस्सा है मोदी सरकार को गरीब - किसान विरोधी साबित करना। मोदी सरकार के हर काम को रोकना। इसीलिये वह सूटबूट की सरकार, विदेशों मे घूमने वाले, बड़े उद्योजकों के हमदर्द जैसे वाक्य सभी जगहों पर उछाल रहे हैं। राहुल का यह प्रयोग आज बचकाना लग सकता है, परन्तु राहुल और कांग्रेस के नेता जिस प्रकार निरन्तर आक्रामकता बनाये हुये हैं, उसे देखकर लगता है कि यह मुहिम कभी भी गम्भीर रूख ले सकती है। राहुल की इन दलीलों पर भा ज पा क्या प्रतिक्रया देती है। जनता इसे किस रूप मे लेती है यह बाद की बात है, परन्तु यह सत्य है कि राहुल अपने मात्र 44 सांसदों के सहारे लोकसभा मे गतिरोध बनाने और अन्य विपक्षियों को भी सरकार के विरोध मे इकट्ठा रखने मे सफल रहे हैं। राज्य सभा मे सरकार का अल्पमत होना भी राहुल के लिये वरदान सिद्ध हो रहा है।
भा ज पा राज्यसभा मे अल्पमत होने के साथ साथ राष्ट्रीय स्तर से लेकर तालुका स्तर तक आंतरिक कलह भी जूझ है। मै साक्षी महाराज स्तर के नेताओं के बयानों को असंतोष की श्रेणी का नहीं मानता, परन्तु जोशी द्वय को गम्भीरता से लेने की आवश्यकता है। भा ज पा के रणनीतिकार इन बातों से अनजान नहीं हैं। दल की आन्तरिक व बाहरी चुनौतियों की बिसात पर गोटियां बिछाई जा रही हैं। राहुल के चक्रव्यूह के कमजोर द्वार हैं, राहुल मे राजनीतिक सूझबूझ की कमी, कांग्रेस का उन आरोपों से घिरा होना जिन्हे भाजपा पर थोप वह अपनी नैय्या पार लगाना चाहती है। लोग जानते समझते हैं कि 2G स्पैक्ट्रम और कोयला खदानें कांग्रेस सरकार गरीबों को लुटा रही थी या उद्योगपतिय़ों पर। यू पी ए शासन काल मे बैंक विजय माल्या पर क्यों मेहरबान हो रहे थे इत्यादि बहुत से प्रश्न हैं जिनके भूत राहुल को बहुत दूर तक दौड़ायेंगे और फिर मोदी की तुलना मे सोच, व्यक्तित्व, आत्मविश्वास और वाकपटुता मे राहुल दूर दूर तक नहीं बैठते।

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