Tuesday 21 July 2015

राहुल व कांग्रेस गांव प्रेम की नौटंकी कर रहे हैं

लोकसभा मे 44 सीटों पर सिमटने तथा अनेको राज्य सरकारें हाथ से निकल जाने के बाद कांग्रेस का गांव, गरीब, मजदूर और किसान प्रेम अचानक कुलांचे मारने लगा है। तभी तो राहुल कभी रेहड़ी वालों के बीच, कभी आटो वालों के बीच पँहुचकर उनके सबसे बडे हितैषी बनने की बात करते हैं, भूमि अधिग्रहण बिल पर ग्रहण लगाने के लिये किसानों के सबसे बडे मसीहा बनते हैं। गांव, किसानों की गरीबी, पिछडेपन का रोना रोते हैं। वर्तमान सरकार को सूटबूट व अदानी की सरकार बताते हैं। अफसोस है कि 67 वर्षों तक सत्ता से चिपके रहने के दौरान न तो उनके पुरखों, न ही उनको गांव व किसान की कभी याद आई। महात्मा गांधी के लाख समझाने के बाद भी नेहरू ने जिस दिन विकास के रूसी माडल अपनाया, देश मे गांव व किसानों की गरीबी व बदहाली की नींव तो उसी दिन रख दी गई थी।


भूमि अधिग्रहण बिल पर राहुल व कांग्रेस 67 सालों तक किसानों को लूटने के बाद आज जिस तरह छाती पीट रही है, उसका कच्चा चिट्ठा जॉन हापकिन्स विश्वविद्यालय के माइकल लेविन ने अपने शोध " From Punitive Accumulation to Regimes of Dispossession" भारत मे भूमिअधिग्रहण के 6 शोधपत्रों मे खोला है। मालूम हो कि 2013 क भूमिअधिग्रहण कानून कांग्रेस सरकार देश भर मे भूमिअधिग्रहण पर किसानों के भारी रोष प्रर्दशन और अदालत मे बढते मुकदमों के दबाव मे ही लाई थी। वरना् वह तो 1894 मे अंग्रेजों के बनाये कानून के आधार पर किसानो को लूटने मे मस्त थी। और तो और उसने 1984 मे इस कानून मे संशोधन कर निजी कम्पनियों के लिये भी भूमि अधिग्रहण करने की धारा जोड़ दी थी। इसी के तहत कांग्रेस सरकारों ने किसानों को जिस तरह नोचा, वही आक्रोश चारो ओर दिखाई दे रहा है।

गरीबों, किसानों का मसीहा होने का दम्भ कांग्रेस मुख्य रूप से जिन दो योजनाओं के आधार पर भरती है, वह हैं मनरेगा और सार्वजनिक वितरण प्रणाली, राहुल की सरकार मनरेगा पर 34000 करोड व सा.वि.प्र. पर 1,15,000 करोड रूपये वार्षिक खर्च किया करती थी। गरीबों, किसानों की इन दो योजनाओं पर कांग्रेस अक्सर अपनी पीठ थपथपाती है। परन्तु कांग्रेस कभी देश को यह नहीं बताती कि उन्होने सिर्फ 2006-07 से 2013-14 तक 9 वर्षों मे अपने शासन के दौरानअमीरों और उद्योगपतियों को 365 खरब या 36,50,000 करोड रूपयों की छूट दे डाली है अर्थात 107 सालों तक मनरेगा मे लगने वाली रकम 9 वर्षों मे अमीरों, उद्योगपतियों को दे डाली। इस रकम से सार्वजनिक वितरण प्रणाली को 32 वर्षों तक चलाया जा सकता था। यह कह सकते हैं कि राहुल की सरकार ने पिछले 9 वर्षों मे उद्योगपतियों को 7 करोड रूपये की प्रति घंटे या 168 करोड रूपये प्रतिदिन की छूट दी। सबब यह कि फिसल पडे तो हरिगंगा कहने वाली राहुल कांग्रेस का वास्तविक चेहरा यह है।है।                         



2006-07 से सरकार के बजट मे दिये इन आंकड़ों का और विश्लेषण करने से पहले यह बता दें कि अमीरों, उद्योगपतियों को यह छूट कार्पोरेट आयकर, उत्पादन शुल्क व आयात शुल्क पर दी जाती है। यदि उद्योगपतियों को दी जाने वाली विभिन्न छूटों को भी इसमे जोड दें तो यह आंकडा कहीं का कहीं पँहुच जायेगा। आपको आश्चर्य होगा 2013-14 मे उद्योगपतियों को 532 लाख करोड़ की छूट दी गई, जो 2012-13 मे सरकारी तेल कम्पनियों के कुल घाटे का चार गुना है, इस छूट मे 48,635 करोड की छूट हीरों, सोने जैसी वस्तुओं की खरीद पर दी गई है। साथ ही 76,116 करोड कार्पोरेट आयकर, 1,95,679 उत्पादन शुल्क व 2,60,714 करोड आयात शुल्क की माफी की गई है। 2005-06 से इस रकम को लगातार बढाया जा रहा है, 2005-06 की तुलना मे 2013-14 मे इस रकम की वृद्धि 132% है। 

हम देश के विकास मे उद्योगों के महत्व को समझते हैं, उद्योग विरोधी नही हैं, परन्तु बहुसंख्य आबादी के हितों की कीमत पर उद्योगों अमर्यादित छूट को उचित नहीं कहा जा सकता, जनगणना के अनुसार आज राहुल को देश की कुल आबादी के उसी 73 प्रतिशत हिस्से, गांवों मे रहने वाले किसान व खेतिहर मजदूरों की चिन्ता हो रही ह, जिन्हे लूटने मे उनकी सरकारों ने कोई कसर नहीं छोड़ी । जिसके कारण देश मे 39,961 रू प्रतिव्यक्ति की आय की तुलना मे देश की 74.5 प्रतिशत की आय 5000 रू पर सिमट कर रह गई । वर्षों पहले कलावती के यहां एक रात रहकर आये राहुल इतने वर्षों तक गांव, किसान का दर्द नहीं समझ पाये। 

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