Thursday 2 July 2015

खाद्य पदार्थ, ग्राहक और बीमारियां


लखनऊ मे एक डाक्टर परिवार मे जाना हुआ, जिसमे बहुसंख्य वयस्क सदस्य एलोपैथिक डाक्टर थे। मस्तिष्क मे कई दिनों से एक बड़े डाक्टर की सलाह घूम रही थी जिसमे उसने एक वर्ष से कुछ कम आयु के बच्चे को गाय का दूध नहीं देकर डब्बा बन्द दूध और शिशु खाद्य देने की सलाह हाईजीन को आधार बना कर दी थी। डाक्टर सामने थे, नजदीक के थे, अवसर भी था, उनसे समझना माकूल लगा, अतः प्रश्न किया। प्रश्न का उत्तर न देकर वह मुस्कराये और बताने लगे कि उनके परिवार मे खान पान की क्या व्यवस्थायें हैं। आधुनिकता और फैशन के लेबल मे ढके बहुसंख्य समाज से अलग उनका कहना था कि मै डाक्टर हूँ, जानता हूँ कि कौन से पदार्थ खाने से स्वास्थ सुरक्षित रहेगा, अतः अपने परिवार के स्वास्थ को सुरक्षित रखना मेरी प्राथमिकता है। मेरा प्रयास है कि रोजमर्रा के खानपान मे क्रत्रिम खाद्य पदार्थों से बचा जा सके। डाक्टर साहब सिर्फ आरगेनिक अर्थात बिना कैमिकल, खाद, कीटनाशक तथा प्रिजर्वेटिव वाले अनाज, सब्जियों व अन्य खाद्य पदार्थों का उपयोग परिवार मे करते थे।

                                                       कैसे बचें

पूरे विश्व के जानकार आर्गेनिक खाद्य पदार्थों के सेवन को प्राथमिकता दे रहे हैं। उससे उलट क्रत्रिम खाद्य पदार्थ (Readymade or Ready to make) हमारी दिनचर्या का अभिन्न अंग बनते जा रहे हैं। देश मे मैगी जैसा खुलासा भी हमे यह समझाने मे असमर्थ है कि हम जाने अनजाने कितनी गम्भीर बीमारियां पैदा करने वाले खाद्य पदार्थ खा चुके हैं, खाते जा रहे हैं, अपने परिवार को गम्भीर बीमारियों के मुंह मे झोंकने का खतरा मोल ले रहे हैं। तथ्य है कि कैमिकल खाद(Fertilizers) व कीटनाशक (Pesticides) की सहायता से उत्पादित खाद्यान्नों से निर्मित तमाम पैक व डब्बा बन्द खाद्य पदार्थों को बनाने में विभिन तरह के कैमिकलों तथा प्रिजर्वेटिव (Preservatives) का उपयोग किया जाता है, जो स्वास्थ के लिये खतरनाक तो हैं ही, परन्तु इनकी तय मानकों से एक ग्राम भी अधिक मात्रा दुनियाभर की गम्भीर बीमारियों को आमन्त्रण देती है। जिस देश मे धडल्ले से हार्मोन के इंजैक्शन देकर गली गली मे गाय - भैंसों से दूध निकाला जाता हो। प्रत्येक फल बाजार मे कार्बाइड व अन्य कैमिकलों से फल पकाये जाते हों, वहां न तो इन सभी खाद्य पदार्थों के लिये आवश्यक मानक निर्धारित हैं, न ही उनको जांचने परखने के लिये पर्याप्त प्रयोगशालायें व अन्य व्यवस्थायें। अत: सरकार पर आश्रित रहना बेमानी है, जो कुछ भी करना है हमें ही करना है, यह सोचने, करने की आवश्यकता है। 

हम कर क्या सकते हैं सोचने वालों को इतना जान, समझ लेना चाहिये कि यह भारत हैं, जहां की रसोई विश्व के किसी भी देश से कहीं अधिक उन्नत एवं विकसित है। इसी रसोई ने विश्व की अनेको बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को अरबों खरबों का व्यापार देने के साथ साथ दुनिया को स्वाद और स्वास्थ का सही अर्थ समझाया है। गलती सिर्फ इतनी हो गई कि हम थोड़ा रंगीन पैकिंगों, विज्ञापनों के चक्कर मे फँस गये और थोड़े आलसी बन गये, कच्चे पदार्थों से व्यंजन बनाने के काम को हम झंझट समझने लगे। बस यहीं से हम अपने परिवार के स्वास्थ के प्रति उदासीन होते चले गये। जहां होना यह चाहिये था कि विश्व हमारी विकसित रसोई से सीखता, उसे अपनाता। चतुर व्यापारियों ने भरपूर विज्ञापनबाजी से हमें बहका लिया, हाईजीन जैसे शब्दों का उपयोग कर हमारे स्वच्छ, बेहतर कच्चे माल से ताजे बने खाद्य पदार्थों को निकृष्ट बताने के साथ, अपना कैमिकल युक्त महीनों पुराना, बेहतर लाभ हेतु, हल्के दर्जे के कच्चे माल से बने खाद्य पदार्थों का हमें आदी बना दिया। प्रश्न है कि अपने परिवार के स्वास्थ व बीमारीमुक्त जीवन के लिये क्या हम थोड़ा वक्त नहीं दे सकते, थोड़ा परिश्रम नहीं कर सकते। प्रश्न है तो फिर इतनी व्यस्तता, इतनी भागदौड़, इतने संसाधनों का जखीरा किस लिये, किसके लिये। डाक्टर साहब ने इस प्रश्न का उत्तर पा लिया, आपको खोजना है।

                                       आ अब लौट चलें

यदि आरगैनिक खाद्य पदार्थों जिनमें विटामिन और आक्सीडेन्ट का स्तर अधिक होता है की उपलब्धता सम्भव नहीं, तो कम से कम इतना तो किया ही जा सकता है कि बाजार से तैयार आटा या खाद्य सामग्री न खरीदकर कच्चा माल खरीदें, घर मे उसकी सफाई-धुलाई कर खाद्य पदार्थ बनायें। अपनी रसोई को ही परिवार के उपयोग मे लिये जाने वाले विभिन्न खाद्यों का केन्द्र बनायें, जहां का प्रत्येक अवयव आपकी आंखों के सामने से गुजरेगा, जिसमें उसे महीनों तक ठीक व सुगन्धित रखने के लिये कैमिकलों का प्रयोग नहीं होगा, आपके परिवार को उन कैमिकलों से निजात मिलेगी जिनकी उपस्थिति अनावश्यक रूप से शरीर मे बीमारियों पैदा करती हैं। शिशुओं के लिये तो यह और भी जरूरी है, उनका आहार कुछ भुने हुये अनाजों का पाउडर, कुछ उबले हुये फल, सब्जियों, अनाजों का मिश्रण होता है। जिसे बनाने के तमाम तरीके हमारे देश के सभी क्षेत्रों मे प्रचुर मात्रा मे उपलब्ध हैं। 

आज आवश्यकता कैमिकलयुक्त खाद्य पदार्थों से छुटकारा पाने की है। इसलिये क्योंकि यह खाद्य आपको व आपके परिवार को गम्भीर बीमारियों की तरफ धकेल रहे हैं। आपसे सुखी व खुशीभरा परिवार छीननें को आतुर हैं।यह सब इसलिये किया जा रहा है ताकि वह आपसे धन छीनकर करोड़ों अरबों कमा सकें। अन्धाधुन्ध पैसा खर्चकर भी आपको क्या मिल रहा है यह सोचने की आवश्यकता है। विशेषकर हम जिस समाज मे रहते हैं, जहां की रसोई से निकलकर हजारों खाद्य पूरे विश्व मे गये हैं, जहां हर तरह के स्वाद और गुणवत्ता की भरमार है। बस थोड़ा सा श्रम, थोड़ा सा समय, अपने परिवार के लिये, अपनों के लिये, जिनको सुखी व रोगमुक्त जीवन देने की जिम्मेदारी आपकी है। बहुत कर ली पश्चिमी सभ्यता, आदतों व खान-पान की नकल़़.....   आ अब लौट चलें............

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