Thursday 16 July 2015

प्रकृति मे घुले कैमिकलों से माँ का दूध भी नहीं बचा शुद्ध

नेचुरल रिसोर्स डिफेन्स काउन्सिल (NRDC) के अनुसार अमेरिका मे लगभग 85000 मानव निर्मित (Man made) कैमिकल रजिस्टर्ड हैं। इन सभी कैमिकलों का उपयोग विभिन्न क्षेत्रों में किया जाता है, अतः इनके अंश किसी न किसी रूप में प्रकृति के साथ मिश्रित हो रहे हैं। सभी को मानव जीवन के लिये खतरनाक कहना उचित नहीं होगा, परन्तु इनमे से बहुत से हमारे लिये कम या अधिक नुकसानदायक हैं, जो शरीर की प्रतिरोध क्षमता को प्रभावित करने के साथ विभिन्न गम्भीर रोगों का कारण बनते हैं। प्रकृति से विभिन्न माध्यमों द्वारा इनमे से अनेको कैमिकल हमारे शरीर मे पँहुच रहे हैं। मानव निर्मित कैमिकलों की इतनी अधिक संख्या पर अमेरिका मे भी न तो नियन्त्रण रखना संभव है, न ही उनका उपयुक्त, संरक्षित प्रयोग करना। यदि अन्य कैमिकलों को दुर्लक्षित भी कर दें तो विश्व मे सिर्फ खेती के लिए प्रतिवर्ष 190.4 मिलियन टन रासायनिक उर्वरक और 2.3 मिलियन टन कीटनाशक प्रकृति में मिलाये जा रहे हैं, जो हमारे शरीर मे जहर घोल कर हमारे स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहे हैं।

NRDC के अनुसार कैमिकलों का अन्धाधुन्ध उपयोग वातावरण, पानी, हवा, मिट्टी, जानवरों, मछलियों व पृथ्वी पर उपलब्ध बनस्पतियों तथा जीवों को प्रदूषित कर रहा है। 1940-50 के दशक मे DDT के भारी उपयोग के कारण DDT के अंश प्रत्येक जगह बहुतायत मे पाये जाने लगे थे जिसके कारण विश्व मे काफी हो हल्ला मचा था, जिसके कारण विश्व के अनेक देशों ने ओरगेनोक्लोरीन कीटनाशकों के प्रयोग पर प्रतिबन्ध लगाया था। आज मानव निर्मित कैमिकलों का असीमित उपयोग हमारे जीवन के लिये खतरा बन चुका है। हमारे शरीर मे हानिकारक कैमिकल हमारे भोजन व अन्यान्य माध्यमों से पँहुच कर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहे हैं। यहां तक कि गर्भ मे पलने वाले शिशु तथा माताओं द्वारा शिशुओं को पिलाया जाने वाला दूध भी इन कैमिकलों के प्रभावों से नहीं बचा है। विश्व के अनेक देशों मे किये परीक्षणों मे मां के दूध (Brest Milk) में भी कैमिकलों तथा कीटनाशकों का अंश मिला है। भारत मे भी राजस्थान विश्वविद्यालय तथा हरियाणा मे यह परीक्षण किये गये। जिनमे मां के दूध मे विभिन्न कीटनाशक, DDT, डाईआक्सीन्स PCB's (पालीक्लोरीनेटेड बाईफिनाइलस्) मिले, जो बच्चों मे कैन्सर की संभावनाओं को बढ़ाने के साथ मानसिक विकास को प्रभावित कर सकते है।




खाद्य पदार्थों मे हानिकारक कैमिकलों की उपस्थिति के विषय मे हमारे देश मे मैगी कांड के बाद थोड़ी चेतना अवश्य दिखाई दी, परन्तु यह चेतना ऊँट के मुँह मे जीरे से अधिक नहीं है। काफी शोर शराबे के बाद हमने बाजार मे बिकने वाले खाद्य पदार्थों के लिये मानक तो बना दिये। पर FSSI द्वारा निर्धारित इन मानकों पर नियन्त्रण रखने की न तो हममे इच्छा शक्ति है, न ही हमारी केन्द्र तथा राज्य सरकारों के पास इस कार्य के लिए पर्याप्त बुनियादी ढांचा है। प्राकृतिक प्रदूषण के कारण हमारे शरीर मे  प्रवेश करने वाले रासायनिक जहर पर नियन्त्रण तो दूर की बात है। टाईम्स आफ इन्डिया मे छपी एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले दिनों हैदराबाद मे चलने वाली कई रेस्टोरेन्ट श्रंखलाओं मे बिकने वाले पदार्थों की खाद्य विभाग ने जांच की तो पाया कि बिकन वाले खाद्यपदार्थ पदार्थ मानव उपयोग के योग्य ही नहीं हैं, बच्चों के लिये तो इनका उपयोग खतरनाक है। कई ब्रान्ड के दूध की जांच करने पर उनमे पैथोजन और ई कोली बैक्टीरिया पाया गया। सिर्फ हैदराबाद की बात नही है। देश के किसी भी छोटे बड़े शहर मे  इसी प्रकार की स्थितियां हैं। 

केन्द्रीय खाद्य प्रसंस्करण मन्त्री सिमरनजीत कौर इन हालातों मे बयान देती हैं कि खाद्य इन्सपेक्टर निर्माताओं को परेशान कर 'इन्सपेक्टर राज' लाने के प्रयास मे हैं। मन्त्री जी का बयान वास्तविकता से दूर ही नहीं हास्यास्पद भी हैं। खाद्य पदार्थों के उत्पादन से अधिक महत्वपूर्ण है, ग्राहकों के लिये उत्पादनों का सुरक्षित होना और फिर टाईम्स आफ इन्डिया की यही रिपोर्ट बताती है कि सरकारी विभागों मे इन्सपेक्टर राज लाने के लिए उचित संख्या मे फूड इन्सपेक्टर ही नहीं हैं। हैदराबाद मे मात्र 4 इन्सपेक्टर हैं, नई दिल्ली की स्थितियां भी अलग नहीं हैं। वहां सिर्फ 12 इन्सपेक्टर हैं। देशभर मे यही हालात हैं। इन हालातों मे मंत्री का बयान ग्राहकों के स्वास्थ से खिलवाड़ करने वाला है।
                                 

ग्राहकों के जीवन से सम्बन्धित यह लड़ाई  ग्राहकों को ही लड़नी पड़ेगी। यह लड़ाई दो मोर्चों पर लड़ी जानी है। बाजार मे बिकने वाले खाद्य पदार्थों मे FSSI के मानदण्डों का कड़ाई से अनुपालन। दूसरा प्रकृति से हमारे शरीर मे पँहुचने वाले हानिकारक कैमिकलों पर नियन्त्रण। विषय तथा क्षेत्र व्यापक है, पूरा विश्व ही इस समस्या से ग्रसित है अतः निराकरण के लिये सिर्फ सरकारों पर आश्रित रहने से काम नहीं चलेगा। सरकारों पर ग्राहकों को दबाव तो बनाना पड़ेगा, नहीं तो सरकारें उत्पादकों के दबाव में ग्राहक हितों से समझौता कर लेंगी, इन्ही समझौतों के कारण ही तो हमने हवा, पानी, मिट्टी, वनस्पति, पशु, जीवों में खतरनाक कैमिकलों का जहर घोला है। हमें जागरूक रहने के साथ अपने क्षेत्र के लोगों को भी जागरूक करना होगा, अपने खानपान की आदतें बदलनी होंगी, तथाकथित हाईजीन के नाम पर चमकीले आवरणों मे लिपटेसजे हुये खाद्य पदार्थों पर पारंपरिक पध्दति से उत्पादित उत्पादनों को प्राथमिकता देनी होगी। कुछ भी खाने से पहले हम क्या खा रहे हैं, कब खा रहे हैं, क्यों खा रहे हैं, कहाँ खा रहे हैं, जैसे प्रश्नों के उत्तर स्वयं से पूछने होंगे। प्रश्न हमारे जीवन का है, अतः सरकार से अधिक ग्राहकों को सजग रह कर पृथ्वी, जल व आकाश को क्रत्रिम रसायनों के जहर से मुक्त करने की आवश्यकता है। 

No comments:

Post a Comment