Thursday 9 June 2016

धनुर्धर बैठा रहा युद्ध हार गये।

२ जनवरी २०१६ को यह ब्लाग लिखा गया था, तब और अब की स्थितियों मे अन्तर आया है। राष्ट्रीय स्तर पर भी और अर्न्तराष्ट्रीय स्तर पर भी। असम मे सरकार बनाकर, बहंगाल मे स्थिति मजबूत कर तथा केरल मे घुसपैठ ने भाजपा को निश्चय ही दिल्ली और बिहार की हार से उबारा है। मोदी की अर्न्तराष्ट्रीय छवि भी मजबूत हुई है। परन्तु यह सब बिहार और उत्तर प्रदेश के वोटरों के लिये बेमानी है (बिहार चुनावों के सम्बन्ध मे लिखे मेरे ब्लाग दि २३ जून २०१५ के अनुसार जातिगत समीकरणें ही हावी रही)। उत्तर प्रदेश मे भी स्थितियां भिन्न नहीं होंगी। दलगत समीकरणें भी बदलेंगी। मै अपने पुराने ब्लाग को यहां उद्धृत कर रहा हूं, जो स्थितियों की समीक्षाा मे सहायक होगा। 



(दिल्ली, बिहार के चुनावों मे भाजपा ने अपने सभी शस्त्रों को परखे बगैर ही हार मान ली। भाजपा के पास अर्जुन के गाण्डीव की शक्ति थी, परन्तु न जाने क्यों गांडीव पर प्रत्यंचा चढे बिना ही युद्ध के शंखनाद के साथ अस्त भी हो गया और युद्ध विद्या का एक कुशल धनुर्धर पराक्रम दिखाये बगैर अपने शिविर मे लौट गया, दूसरे सेनानियों की तरह पराजय का दंश झेलने, वह भी बिना एक शब्द बोले, बिना उफ किये, एक संगठित सिपाही की तरह। हम यहां भाजपा के पूर्व संगठन मन्त्री संजय जोशी की बात कर रहे हैं।

संगठन मे एक नहीं अनेक योद्धाओं की आवश्यकता पडती है। मोदी, अमित शाह और संगठन के अन्य नेताओं की क्षमताओं पर प्रश्न चिन्ह लगाना गलत है। सभी अपनी अपनी विधाओं मे पारंगत होते हैं। शायद दिल्ली और बिहार को जिन विधाओं मे पारंगत सेनानी की आवश्यकता थी, वह संजय के पास हो। संजय जोशी के संगठन मन्त्री का कार्यकाल आज भी लोगों को भूला नहीं है। निर्वसित जीवन जीते हुये संगठन मे अपनी छाप बनाये रखना, अनुशासनबद्ध सैनिक की तरह होंठ बन्द किये हुये संगठन साधना करने वाले कार्यकर्ता बहुत भाग्य से मिलते हैं। अत: उनकी क्षमताओं का संगठन हित मे देश और संगठन के लिये उपयोग किया जाना चाहिये।

आसाम, उत्तर प्रदेश तथा कर्नाटक चुनाव सामने हैं। भाजपा संगठन मे नवीन प्राण संचार करने की आवश्यकता है। वैसे भी वरिष्ठ होते अनेको कार्यकर्ताओं द्वारा रिक्त किये जाने वाले स्थानों के लिये वरिष्ठ अनुभवी कार्यकर्ताओं की संगठन मे बहुत कमी है।

देश की राजनीति जिस प्रकार के बवंडर का स्वरुप लेती जा रही है। उससे निपटने के लिये भाजपा पूरी तरह सुसज्ज नहीं है। इन परिस्थितियों मे संजय जोशी जैसे कुशल संगठनकर्ता को देश, समाज और दीनदयाल जी के संकल्पों की हित रक्षा मे अनिवार्य हो जाता है। सभी इस पर गम्भीरता से विचार करें, यही प्रार्थना।)पुरानी ब्लाग ।

२०१४ के लोकसभा चुनावों और राज्य के चुनावों के  अन्तर के साथ, प्रदेश स्तर पर भाजपा मे सक्षम नेतृत्व का अभाव ही राजनाथ को प्रदेश नेतृत्व की बागडोर सौंपने की अटकलों को जन्म दे रहा है। याद रहे बिहार मे भी नाम चीन नेताओं की कमी नहीं थी, परन्तु सभी के किलो भरभरा कर ढह गये, वह भी चारा चोरी के मामले मे सजायाफ्ता नेतृत्व से। इसीप्रकार उतर प्रदेश के वर्तमान हालात चाहे जो हों, चुनावी गणित बैठाने प्रदेश के चुनावों को जीतने के लिये नीचे के स्तर पर मजबूत संगठनात्मक पकड़ की जबरदस्त आवश्यकता है, जिसका अभी अभाव है। राष्ट्रीय संगठन मन्त्री रामलाल जी की उत्तर प्रदेश मे संगठन पर पकड़ है, परन्तु इन परिस्थितियों मे संजय जोशी की उपेक्षाा मंहगी साबित हो सकती है। 

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